📝परवेज़ इक़बाल की क़लम से 

किसी भी देश में भले ही कितने भी राजनैतिक/सामाजिक/धार्मिक मतभेद हों लेकिन कुछ मोके ऐसे होते हैं जब सारे मतभेद भूल कर सारा देश एक सूत्र में बंधा नज़र आता है। भारत के 15 अगस्त यानी यौमे-आज़ादी का दिन भी ऐसा ही एक मौका है। लेकिन दुर्भाग्य से देश मे सौहार्द के इस अवसर को भी कुछ लोग अपने सामाजिक/राजनैतिक हित साधने के लिए इसे धर्मिक भेदभाव के नज़रिए से बांटने की साजिश करने से नहीं चूकते, और इसे तो विडम्बना ही कहा जाना चाहिए कि जिस सरकार ने संविधान के नाम पर पंथनिरपेक्ष/धर्मनिरपेक्ष होने की शपथ ली हो वही सरकार एक कट्टरपंथी साम्प्रदायिक विचारधारा वाले ‘संघ’ठन की कठपुतली बनकर अपने राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए आज़ादी के इस देशव्यापी पावन पर्व को धर्म/मज़हब के खेमे में बांट रही है। संघ और संघ प्रेरित सरकार देश के स्वतंत्रता-संग्राम में शामिल मुस्लिम सहित गैर-हिन्दू सेनानियों के योगदान को भुलाने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। जिसके तहत न सिर्फ इतिहास के पन्नो से उनके योगदान को हटाया जा रहा है बल्कि संघ की विचारधारा वाले उन लोगों को इतिहास में शामिल कर महिमामण्डित करने का काम जारी है जिनका जंगे-आज़ादी में नगण्य या संदिग्ध योगदान रहा है। इस प्रयास में भाजपा शासित प्रदेशों की सरकारें अग्रणीय हैं । गोवा की भाजपा सरकार अपनी किताबों से नेहरू को हटा कर सावरकर का पाठ शामिल कर चुकी है, राजस्थान में हल्दीघाटी युद्ध के तथ्यों में छेड़छाड़ का मामला सुर्खियां बटोर चुका है,इस मामले में म.प्र. की शिवराज सरकार भी पीछे नहीं है, कुछ दिन पूर्व राजधानी भोपाल में बने ‘शौर्य-स्मारक पार्क’ में देश पर शहीदों की सूची में पाकिस्तान युद्ध मे भारत की जीत के नायक हमीद खां सहित मुस्लिम शहीदों के नाम शामिल न करने की हिमाकत कर चुकी शिवराज सरकार ने एक बार फिर जंगे-आज़ादी में मुस्लिम क्रांतिकारियों के योगदान को भुलाने की साजिश की है । दरअसल शिवराज सरकार ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर म.प्र. के क्रांतिकारियों की तस्वीरों वाला एक विज्ञापन जारी किया है लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि शिवराज सरकार ने उस विज्ञापन में एक भी मुस्लिम क्रांतिकारी का उल्लेख करना मुनासिब नहीं समझा यहां तक कि प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर की जिस शहीद सआदत खां कोठी(रेसीडेंसी कोठी) में शिवराज तकरीबन हर हफ्ते आ कर रुकते हैं उनका नाम तक शहीदों की सूची में शामिल करने में शिवराज सरकार ने साम्प्रदायिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त वैचारिक कंजूसी का परिचय दिया..।
ये सर्व विदित ऐतिहासिक तथ्य है कि देश की आज़ादी में सभी धर्म/मज़हब के लोगों ने अपना बलिदान दिया है। आज अगर कोई कुंठित साम्प्रदायिक संघ या राजनैतिक समूह साजिश के तहत देश की आज़ादी में मुस्लिमो के योगदान को मिटाने पर आमादा है तो भी इतिहास में दर्ज कुछ तथ्य वो कैसे मिटा पाएंगे? क्या इस तथ्य को भुलाया जा सकता है कि अंग्रेजों के खिलाफ पहली जंग बिहार,बंगाल उड़ीसा के शासक नवाब सिराजुद्दोला ने 23 जुलाई 1757 को मुर्शिदाबाद के पास प्लासी में लड़ी थी जिसे “प्लासी की जंग” के नाम से जाना जाता है? क्या इस तथ्य को भुलाया जा सकता है कि जंगे-आज़ादी में उत्प्रेरक का काम करने वाले ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो” और “साइमन वापस जाओ” (साइमन गो बैक) जैसे नारे मुस्लिम क्रांतिकारी यूसुफ अली मेहर ने दिए थे ? क्या इतिहास के इस तथ्य को मिटा दिया जाएगा कि जंगे-आज़ादी से आज तक सड़कों से संसद तक गूंजने वाला नारा “जय हिंद” आबिद हसन साफरानी का दिया हुआ है ?
जंगे-आज़ादी की जान रहा “इंक़लाब ज़िंदाबाद” का नारा भी मुस्लिम हसरत मोहानी के दिमाग की उपज था ? ‘सारा जहां से अच्छा…हिन्दुस्तां हमारा..”जैसा क़ोमी तराना के रचयिता अल्लामा इक़बाल को भुलाया जा सकता है क्या ? राजनीतिक स्वार्थो की पूर्ति के लिए देश को साम्प्रदायिकता में झोंकने वालों को पता है कि जिस तिरंगे को देश की आन-बान-शान समझा जाता है उस तिरंगे को मुस्लिम क्रांतिकारी बदरुद्दीन तैयब को बीवी सुरैया तैयब ने डिजाइन किया है ? भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास से ये कैसे मिटाया जा सकता है कि आजादी के बाद लाल किले की प्राचीर पर अंग्रेजों का झंडा उतार कर पहली बार तिरंगा फहराने वाले आज़ाद हिंद फौज के जनरल शाहनवाज़ खान भी मुस्लिम ही थे जिनकी आवाज़ आज भी लाल किले में हर शाम 6 बजे आयोजित होने वाले ‘लाइट & साउंड” शो में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ गूंजती है ?
कुल मिला कर इस मुल्क की जंगे-आज़ादी से लेकर आज तक हर धर्म/मज़हब का योगदान है जिसे किसी भी कीमत पर नकारा नहीं जा सकता। राष्ट्रवाद का छद्म चोला ओढ़ कर अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षाओं की पूर्ति करने वाले ये कट्टरपंथी ‘संघ’ठन या संघी विचारधारा वाली सरकारों के मुखिया कितने भी कुत्सित प्रयास करलें वो भारत की मूल जड़ों में शामिल धरनिर्पेक्षता को समाप्त नहीं कर सकेंगे। देश की आज़ादी में शहीद हुए लोगों की चिंताओं पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले और शहीदों की क़ब्रों पर अपनी सत्ता-सिहासन रखने वाले ये कुंठित लोग इतिहास से अन्य मज़हबी क्रांतिकारियों के योगदान को निकाल कर इतिहास को एक धर्म विशेष आधारित गलत तथ्यों से भर तो देंगे लेकिन विश्व भर के कोने कोने में मौजूद इतिहास की अन्य किताबों में बदलाव कैसे करेंगे ? ऐसे में तथाकथित विश्वगुरु भारत की ऐतिहासिक विश्वसनीयता का क्या होगा ये विचार कभी किसी ने किया है ???
और वेसे भी धर्म/मज़हब के नाम पर बने देशों का बुरा हश्र किसी से छिपा नहीं है । आज अल्पसंख्यकों के डर दिखा कर बहुसंख्यकों का साम्प्रदायिक तुष्टिकरण बहुत आसानी से किया जा सकता है लेकिन ये तय है कि देश का अनेकता में एकता वाला चेहरा विभत्स करके हम विश्वगुरु तो हरगिज़ नहीं बन सकते।
(लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार एवं एनडीटीवी 18 के सलाहकार सम्पादक हैं )