निराशा के तिमिर से उदय हुआ नव वर्ष!

नूतन वर्ष 2023 का प्रथम आलेख प्रस्तुत करने से पहले मैं अपने समस्त सुधी पाठकों के प्रति ह्रदय से आभार व्यक्त करती हूँ, जिनके स्नेह, आशीर्वाद, सराहना, (आलोचना तो मिली नहीं अब तब) तथा सतत उत्साहवर्द्धन के फलवस्वरूप ही यह अकिंचन ईश्वर कृपा से अपने विचार लिखने की चेष्टा करती रही है। और उससे भी महत्वपूर्ण बात विभिन्न लोकप्रिय अखबारों के सभी संपादकों का मैं विशेष आभार करती हूँ जिन्होंने अपने अख़बारों के ललाट से लेकर संपादकीय व अन्य विविध पृष्ठों पर मेरी लेखनी को विशेष स्थान प्रदान कर मुझे सम्मानित करते रहें हैं व लिखने को प्रेरित करते रहे हैं। आशा करती हूँ आने वाले वर्षों में भी मुझ पर आप सबका आशीर्वाद यूं ही बना रहे व आंतरिक ह्रदय में विद्यमान ईश तत्व हमें सार्थक जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करते रहें।

अब जब नए साल का श्री गणेश हो चुका है और आगामी 365 दिन, इसी वर्ष का दामन थामे रहना है। निसंदेह यह एक लम्बी अवधि है और इसीलिए सभी एक दूसरे के लिए दुआएं करते हैं, शुभकामनाएं देते हैं। और नयी आशा, नई उमंग, नए विचारों, नए उद्देश्यों के साथ हम फिर से एक नयी शुरूवात करते है। और शायद यही कारण है जब नए साल में बधाई देने के लिए कोई फ़ोन आता है या किसी से प्रत्यक्ष वार्ता होती है तो सबसे बड़ा सवाल “और सुनाओ, नए साल में क्या नया करने जा रहे हो?”
इसका मतलब हम आपस में एक दूसरे को जीवन में कुछ बेहतर करने के लिए प्रेरित करते हैं। सभी के जीवन में कई उतार-चढ़ाव तो चलता ही रहता है ऐसे में ये सोचना कि क्या मैं वाकई ज़िन्दगी में खुश हूँ, प्रभु की कृपाओं को समझने में सक्षम हूँ, क्या मैं संतुष्ट हूँ? इस सवाल के जवाब में बहुत ही कम लोग हाँ कह पायेंगे। क्योंकि यह एक बेहद अस्पष्ट अवधारणा है, शायद अधिकतर लोग यही नहीं जानते कि वे ज़िन्दगी में आखिर चाहते क्या हैं, उन्हें क्या हासिल करना है, और किस मुकाम को छूने के बाद संतुष्टि का अनुभव होने की संभावना है। इसलिए स्वयं के भीतर से असंतोष कारक तत्वों को तिरोभूत करते हुए प्रतिदिन “जो मिला, जैसा मिला मेरे लिए पर्याप्त है, मुझे अपने ध्येय पर अडिग रहते हुए अपने काम में बिना कोई कोताही बरते, सतत प्रवाहमय बने रहना है।” का भाव ही हमें ऊर्जावान बनाये रखने का ब्रम्हास्त्र है। पर इस गूढ़ रहस्य को समझने के लिए हमारी चेतना का सक्रिय होना आवश्यक है। उम्र के साथ चेतना भी जागृत हो ये जरूरी नहीं, इसलिए व्यक्तित्व के समग्र उन्नयन के प्रति ध्यान, जीवन की सच्चाईयों की तरफ़ रूझान, हर हाल में जीवित रखते हुए मन में आशा, सूक्ष्म से सूक्ष्म बातों का रहस्य जानने की हो जिज्ञासा, ये सब के बिना भिन्नता से भरे अनोखे संसार में विचारों का विस्तार कतई मुमकिन नहीं। हमें भ्रमित नहीं होना है और यह जानना आवश्यक है कि कब हमें किस चरण में ऊहापोह से दूर रहना है यही प्रवृति हमें मानसिक स्थिरता देता है और हमारे मन, मस्तिष्क और आत्मा को शांति देता है। नव वर्ष की मंगल कामनाएं।

शशि दीप ©✍

विचारक/ द्विभाषी लेखिका

मुंबई

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