साइकिल की रफ्तार ने महाराजपुर में बिगाड़े समीकरण
रवीन्द्र व्यास
मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले का महराजपुर _48 विधान सभा क्षेत्र पारंपरिक रूप से बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है। 5 दशक तक अजा के लिए यह सीट सुरक्षित रही | यह बुंदेलखंड की ऐसी इकलौती विधान सभा सीट है जहाँ से 1952 में भी जनसंघ के प्रत्यासी नाथूराम अहिरवार चुनाव जीते थे | 1977 से अब तक हुए विधानसभा के 10 चुनाव में से 6 बार बीजेपी और 3 बार कांग्रेस और एक बार निर्दलीय प्रत्यासी चुनाव जीता | परिसीमन के बाद यह क्षेत्र सामान्य हो गया,सामान्य सीट बनने के बाद हुए पहले चुनाव में यहां कांग्रेस से बगावत कर मानवेंद्र सिंह निर्दलीय रूप से विधायक चुने गए। उनके द्वारा शुरू की गई परम्परा अब तक जारी है,2023 के चुनाव में अब बीजेपी से खड़े हुऐ उनके पुत्र को और कांग्रेस विधायक नीरज दीक्षित को भी बगावत का असर झेलने को मजबूर होना पड़ रहा है।

महाराजपुर विधानसभा क्षेत्र में 13 उम्मीदवार चुनावी रण में हैं जिनमे 8 विभिन्न पार्टियों से हैं तो वहीँ पांच निर्दलीय भी चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं | यहाँ मुख्य मुकाबला इंडियन नेशनल कांग्रेस के नीरज दीक्षित, भारतीय जनता पार्टी से कामाख्या प्रताप सिंह, और समाजवादी पार्टी के अजय दौलत तिवारी, के मध्य माना जा रहा है | जबकि बहुजन समाज पार्टी से इंजी. महेश चन्द्र कुशवाहा, मुकाबले में आये प्रत्याशियों के समीकरण बनाने और बिगाड़ने में अहम भूमिका अदा करेंगे | आम आदमी पार्टी से इंजी. के.आर. पटेल,आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) परसराम पाल, जन अधिकार पार्टी से गिरजा प्रसाद कुशवाहा भागीदारी पार्टी से राकेश प्रजापति, निर्दलीय सचिन चौरसिया, पुष्पेन्द्र अग्रवाल, , पुरूषोत्तम नायक पुजारी, रामपाल अहिरवार और नृपत कुशवाह निर्दलीय प्रत्यासी के तौर पर मैदान में हैं | इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला 235771 मतदाता १७ नवम्बर को कर देंगे | जिनमे 124088 पुरुष और 111676 महिला जबकि ७ अन्य मतदाता हैं | बीजेपी सरकार की लाड़ली बहना योजना के बाद हर प्रत्याशी का ध्यान महिला मतदाता पर कुछ ज्यादा है |

वर्तमान कांग्रेस विधायक नीरज दीक्षित 2018 का चुनाव 14005 मत से बीजेपी के मानवेन्द्र सिंह से जीते थे | इस बार भी त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है | फर्क इतना है कि 2018 में त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस के बागी राजेश मेहतों बहुजन समाज पार्टी से मुख्य भूमिका में थे | इस बार कांग्रेस के अजय दौलत तिवारी ने समाजवादी पार्टी से प्रत्यासी बन कर कांग्रेस और बीजेपी प्रत्यासी के सामने जीत पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है | सियासत के जानकारों का मानना है कि 2018 में कांग्रेस के बागी राजेश मेहतों गढ़ीमलहरा क्षेत्र के रहने वाले होने के कारण एवं चौरसिया समाज के कारण उन्होंने बीजेपी के वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाईं थी | इस बार हालात विपरीत हैं जिस क्षेत्र से कांग्रेस के नीरज जीते थे ,इस बार उसमे बड़ी सेंध कांग्रेस के दौलत तिवारी लगा रहे हैं |

क्यों नीरज से नाराज दौलत :

अपनी नाराजगी का उन्होंने सार्वजनिक खुलाशा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की सभा के दौरान किया | उन्होंने कहा कि एक साल पहले क्षेत्रीय विधायक नीरज दीक्षित की एक धोखेबाजी के कारण ही इस चुनावी महाभारत का बीजारोपण हुआ था। उन्होंने लोगों को बताया कि कांग्रेस ने उन्हें नौगांव नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए अधिकृत प्रत्याशी बनाया था, हमारे पार्षद भी बहुमत से जीतकर आए थे फिर भी कांग्रेस विधायक नीरज दीक्षित ने भाजपा के लोगों से मिलकर नौगांव नगर पालिका का अध्यक्ष नहीं बनने दिया। जिस तरह कृष्ण ने पाण्डवों के लिए सिर्फ पांच गांव मांगे थे उसी तरह मैंने भी इनसे सिर्फ नौगांव नगर की सेवा मांगी थी लेकिन नीरज दीक्षित ने छलकपट दिखाकर मुझसे वह सेवा भी छीन ली तभी इस क्षेत्र की जनता ने तय कर लिया था कि अब याचना नहीं रण होगा, जीवन जय या कि मरण होगा। आज क्षेत्र की जनता ऐसे दुर्योधन को सबक सिखाना चाहती है। इसी मंच पर अखिलेश यादव ने कहा अजय दौलत तिवारी को जिस कांग्रेस ने धोखा दिया है उसी कांग्रेस ने हमें भी धोखा दिया है। हमें मिलकर इन धोखेबाजों को सबक सिखाना है।

दरअसल देखा जाए तो कांग्रेस नेता चाहे कितना भी ऊपर उठ जाए वह अपने ही लोगों से अपने को असुरक्षित मानता है | यही कारण है कि किसी भी सार्वजनिक संस्था पर ऐसे लोगों को नहीं बैठने देना चाहता है जो भविष्य में उनके विकल्प बन जाएँ , ऐसे में वे अपनी ही पार्टी के निर्देशों की अवहेलना करने से नहीं चूकते |

सपा का असर

इस विधान सभा क्षेत्र की अधिकाँश सीमाएं उतर प्रदेश के जिलों से लगती हैं | कुछ गाँव तो ऐसे हैं जो उत्तर प्रदेश के गाँवों से सीधे मिलते हैं | वहीँ उत्तर प्रदेश के कुछगाँवों का पोस्ट ऑफिस नौगांव के नाम से जाना जाता है | हरपालपुर ,नौगांव और गढ़ीमलहरा ऐसे इलाके हैं जहाँ उत्तरप्रदेश के कई लोग अपना व्यापारिक कारोबार करते हैं | इसके साथ ही इस विधान सभा क्षेत्र में जिस वर्ग विशेष को टारगेट किया जा रहा है वह सपा के अंकुल माना जा रहा है | उत्तर प्रदेश से सटे इस इलाके में सपा 1998 से सक्रीय हुई है | 2008 में सपा को 8. 45 फीसदी 2013 में 7. 39 फीसदी मत मिले थे दोनों ही बार अंजुल सक्सेना प्रत्यासी थे | २०१८ में सपा ने प्रीतम यादव को प्रत्यासी बनाया था उन्हें मात्र 3.79 फीसदी मत ही मिले थे | 2023 में सपा ने ब्राम्हण बाहुल्य इस विधानसभा सीट पर ब्राम्हण प्रत्याशी उतारकर कांग्रेस के समीकरण बिगाड़े हैं |

विस क्षेत्र का इतिहास-

विधानसभा क्षेत्र महराजपुर कभी जिले की प्रमुख आर्थिक गतिविधियों का केंद्र माना जाता रहा है | महराजपुर जिसका नाम सुनते ही “पान” की चर्चा होने लगती है |खनिज सम्पदा से भरपूर है , उद्योग के नाम पर यहां देश की सबसे पुरानी डिस्लरी आज भी संचालित है | इसी विधान सभा क्षेत्र में सैन्य छावनी भी है | यहाँ के प्राचीन रेलवे स्टेशन हरपालपुर में कभी उद्योगिक गतिविधियां भी संचालित होती थी | यहाँ बने तीन बाँध लहचूरा ,पहाड़ी बंधा और उर्मिल बाँध एक बड़े आकर्षण का केंद्र हैं | इन सबके बावजूद यह इलाका अपने देशी पान उत्पादन के कारण देश भर में जाना जाता है | इस विधान सभा क्षेत्र का नौगांव नगर अंग्रेजो के समय का पोलिटिकल एजेंट का केंद्र रहा | उस समय इसे एक विशिष्ट शैली में बसाया गया था , जो सर्वाधिक चौराहा वाले क्षेत्र में जाना जाता है | वर्तमान में हरपालपुर में उद्योग गतिविधयां और हाथ करधा उद्योग सरकार की रीति नीति के कारण ठप्प हैं | ये जरूर हरपालपुर अब जिले के सबसे बड़े अवैध आवसीय विद्यालय संचालित करने का केंद्र बन गया है | स्मार्ट सिटी के रूप में दशकों तक अपनी पहचान बनाने वाला नौगांव इन दिनों अवैध अतिक्रमण की चपेट में है, यहाँ बने इंजिनयरिंग कॉलेज में अधिकाँश फेकल्टी संचालित नहीं होती , | पान किसानो की दशा बदहाल है अब वे देशी पान की जगह कपूरी पान लगाने को मजबूर हो रहे हैं | बने हुए बांधों का अधिकाँश पानी उत्तर प्रदेश चला जाता है |

1952 से अस्तित्व में आई महराजपुर विधानसभा सीट बुंदेलखंड इलाके की ऐसी इकलौती सीट है जहाँ से 1952 में जनसंघ के नाथूराम अहिरवार विधायक चुने गए थे | पांच दशक तक यह विधान सभा क्षेत्र अजा के लिए सुरक्षित रहा | 1977 से अब तक हुए विधानसभा के 10 चुनाव में से 6 बार बीजेपी और 3 बार कांग्रेस और एक बार निर्दलीय प्रत्यासी चुनाव जीता | 1977,1990 ,1993 ,1998 ,औऱ 2003 में बीजेपी के राम दयाल अहिरवार चुनाव जीते | |

यह ऐसी विधान सभा सीट है जिसका राजनैतिक मिजाज शुरू से ही कोंग्रेसी विरोधी रहा है | 1977 के बाद यहाँ से कांग्रेस जीत के लिए तरसती रही | 1977,1990 ,1993 ,1998 ,औऱ 2003 में बीजेपी के राम दयाल अहिरवार 2013 में मानवेन्द्र सिंह चुनाव जीते | 1980 ,1985 और 2018 में कांग्रेस ,ने चुनाव जीता | 2008 में परिसीमन के बाद यह विधान सभा क्षेत्र सामान्य हुआ था | 2008 में कांग्रेस ने अपने पूर्व मंत्री मानवेन्द्र सिंह का टिकिट काट दिया था | उन्होंने बगावत कर निर्दलीय प्रत्यासी के तौर पर चुनाव जीता | 2018 में कांग्रेस ने सिंधिया खेमे के सबसे कम उम्र के नीरज दीक्षित को प्रत्यासी बनाया | । नीरज ने 2018 में बीजेपी के विधायक मानवेन्द्र सिंह को 14005 मतों के बड़े अंतर से हराया था | दरअसल इस विधान सभा के राजनैतिक मिजाज में एक बड़ा परिवर्तन परिसीमन के बाद देखने को मिल रहा है | पांच दशक बाद जब सामान्य वर्ग के पार्टी कार्यकर्ताओं को मौका मिला तो वे इस अवसर का लाभ लेने से वंचित नहीं रहना चाहते हैं | नतीजतन कांग्रेस और बीजेपी दोनों में ही अंतरकलह जम कर देखने को मिलता है | वर्तमान विधायक नीरज दीक्षित के लोक व्यवहार से लोग संतुष्ट हैं | पर विधायक के रूप में उनके द्वारा की जा रही पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की कीमत उन्हें चुनाव में चुकाना पढ़ सकती है | विधायक निधि के बंटन को लेकर ग्राम स्तर पर भी नाराजगी देखने को मिल रही है |

2008 में जब कांग्रेस ने अपने सशक्त दावेदार और प्रदेश सरकार में मंत्री मानवेन्द्र सिंह को महराजपुर से टिकिट काट दिया | दरअसल मानवेन्द्र सिंह के पूर्वज इसी क्षेत्र के आलीपुरा रियासत के राजा रहे | अपने रियासती और राजनैतिक रसूख को साबित करने के लिए उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा | तमाम वोट कटवा नेताओं के खड़े होने के बाद वे 1391 मतों से ही बीजेपी के गुड्डन पाठक को हरा पाए |

दूसरी बड़ी चुनावी उठा पटक 2013 के चुनाव में देखने को मिली थी | जब मानवेन्द्र सिंह को बीजेपी ने अपना प्रत्यासी बनाया था | इस चुनाव में बीजेपी के प्रमुख राकेश पाठक ने बगावत कर दी | बीएसपी के टिकट पर राकेश पाठक चुनावी रण में कूदे तो जरूर किन्तु 15427 मतो से पराजित हो गए | मानवेन्द्र सिंह को बीजेपी से टिकिट दिए जाने पर पार्टी में भारी विरोध भी देखने को मिला था | यह ऐसा चुनाव था जिसमे जितने और हारने वाले दोनों ने ही अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी थी | इस बार बीजेपी ने मानवेन्द्र सिंह (भंवर राजा ) के पुत्र कामख्या प्रताप सिंह को प्रत्यासी बनाया है | जिसको लेकर भी पार्टी में अंतरकलह देखने को मिल रहा है , पर बीजेपी से ज्यादा अशंतोष कांग्रेस में देखने को मिल रहा है |

 

मुद्दे-

महराजपुर विधान सभा क्षेत्र मुख्यतः पान फसलों के उत्पादन के लिए जाना जाता है | देशी पान उत्पादन के सबसे बड़े क्षेत्र में इसकी गिनती होती है | यह इलाका आज भी बुनियादी सुविधाओं का मोहताज है | स्वास्थ्य और शिक्षा, रोजगार ,बिजली जैसी सुविधाओं के लिए भी इलाके के लोग परेशांन हैं | महराजपुर विधान सभा क्षेत्र में तीन बड़े बाँध होने के बावजूद ग्रामीण इलाके जल समस्या से जूझ रहे हैं | आर्थिक पिछड़ापन , और तंत्र में बढ़ता भष्टाचार के साथ कमर तोड़ महंगाई ने लोगों को त्रस्त किया है | सबसे बड़ी बात है कि लोगों का जनप्रतिधियों और प्रशासनिक तंत्र से विश्वास उठता जा रहा है | |

विधायक

1952 नाथूराम अहिरवार जनसंघ
1967 लक्ष्मणदास अहिरवार कांग्रेस
1972 नाथूराम अहिरवार जनसंघ

1977 रामदयाल अहिरवार जनतापार्टी

1980 लक्ष्मणदास अहिरवार कांग्रेस

1985 बाबू लाल अहिरवार कांग्रेस

1990 रामदयाल अहिरवार भाजपा

1993 रामदयाल अहिरवार भाजपा

1998 रामदयाल अहिरवार भाजपा

2003 रामदयाल अहिरवार भाजपा

महराजपुर_जनरल_48

2008 मानवेन्द्र सिंह निर्दलीय

2013 मानवेंद्र सिंह भाजपा

2018 नीरज दीक्षित कांग्रेस