मणिपुर हिंसा को भूल चुनाव में व्यस्त पंथ प्रधान देश को विश्व गुरु बनाने पर अडिग

डॉ.सैयद खालिद कैस

चिंतक,विचारक,लेखक

भोपाल।

 

 

आने वाले कुछ दिनों में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं । सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा प्रधानमंत्री,उनके मंत्री युद्ध स्तर पर चुनाव प्रचार में व्यस्त है। गत दिनों दिल्ली में G 20 शिखर सम्मेलन से गदगद हुए हमारे पंथ प्रधान ने अपनी वाहवाही के लिए गरीबों की बस्तियों को छिपाकर अपना गुणगान कराया,आवश्यकता न होने के बावजूद नए संसद भवन के निर्माण, उसके उद्घाटन में राष्ट्रपति को आमंत्रित नही करने या उसके उपरांत उनकी ही पार्टी के दिल्ली के बेलगाम सांसद विधूड़ी के श्रीमुख से धर्म विशेष के सांसद पर सदन में सार्वजनिक रूप से अपमानजनक टिप्पणी को नजर अंदाज करने वाले हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री देश में ही स्थित मणिपुर को भुलाए बैठे हैं,मणिपुर की आवाम के सीने पर लगे जख्मों पर मरहम लगाने से बचते प्रधानमंत्री की उदासीनता पर विदेशी मीडिया और राष्ट्र अध्यक्षों के वक्तव्य इस बात का प्रमाण है कि इनको सिर्फ और सिर्फ अपनी,अपनी पार्टी की ओर चुनाव की फिक्र है देश की अस्मिता की नही।

गौर तलब हो कि पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर पिछले 4 महीने से चल रही जातीय हिंसा से जल रहा है। सरकारी आंकड़े अनुसार मणिपुर में अब तक 175 लोग मारे गए हैं। 6000 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। इतना ही नहीं राज्य में अब तक 5172 आगजनी के केस सामने आए, जिनमें 4786 घरों और 386 धार्मिक स्थलों को जलाने और तोड़फोड़ करने की घटनाएं शामिल हैं। हिंसा के बाद 65 हजार से ज्यादा लोगों ने घर छोड़ा हिंसा में अब तक 175 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं 6 हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। राज्य में 36 हजार सुरक्षाकर्मी और 40 IPS तैनात किए गए हैं। पहाड़ी और घाटी दोनों जिलों में कुल 129 चौकियां स्थापित की गईं हैं।

 

पिछले चार माह से फैली जातीय हिंसा को रोकने में नाकाम केंद्र सरकार ने अब तक मणिपुर राज्य सरकार के उदासीन व्यवहार और ध्वस्त कानून व्यवस्था के बावजूद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन नही लगाया है जबकि राज्यपाल अनुसूया उईके द्वारा केंद्र को भेजी गई रिपोर्ट और उनका वक्तव्य राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा करता है। इस सब के बावजूद प्रधानमंत्री द्वारा मणिपुर मुद्दे पर किनारा करना अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की अस्मिता को आघात पहुंचा रहा है। केंद्र सरकार की उदासीनता का परिणाम है कि हर दिन मणिपुर राज्य में हिंसा का कोई न कोई मामला सामने आ रहा है। कल दो बालिकाओं की हत्या का मामला उजागर होने पर घटना की सीबीआई जांच कराने की घोषणा कर राज्य सरकार ने इतिश्री कर ली। दुर्भाग्य का विषय है देश को विश्व गुरु संबोधित करने वाले प्रधानमंत्री भारतीय इतिहास के सबसे असफल प्रधानमंत्री साबित हुए हैं लेकिन भक्त बिरादरी उनकी नाकामी को छिपाकर जिस प्रकार उनकी महिमा मंडन करते हैं वह भी निंदनीय है। देश के इतिहास में पहली बार राष्ट्रपति को इतना असहाय देखा गया है कि वह अपने अपमान को किस प्रकार सहन कर रही हैं। देश का सौभाग्य रहा जब आदिवासी समाज की महिला को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान राष्ट्रपति पद हासिल हुआ।लेकिन उसके बावजूद उनके साथ बरती जा रही उदासीनता चिंता का विषय है। उनकी मजबूरी ही है जो मणिपुर हिंसा पर वह खामोश हैं। जो भी हो देश में मणिपुर हिंसा पर खामोशी धारण किया सत्ता पक्ष 04माह से खूनी खेल को रोकने में नाकाम होकर देश का नाम विश्व स्तर पर धूमिल किए है।