बलात्कार गुनाह और स्वैच्छिक बलात्कार नहीं

बलात्कार शब्द एक ऐसा शब्द है जिसे सुनकर दिल क्रोध से भर जाता है। बलात्कार के अंतर्गत बलात्कारी अब यह भी नहीं देखते कि जिसका बलात्कार हो रहा बो किस उम्र, किस लिंग का है सिर्फ अपने हवस की भूख मिटाने के लिए किसी की जिंदगी, भावनाओं, रिश्तों को तार-तार कर देते हैं, उनको तो सिर्फ और सिर्फ बस कोई शिकार चाहिए होता है, एसे अपराधी हवस के पुजारी को सजा मिलनी ही चाहिए। बलात्कार जो कि एक जघन्य अपराध हैं। एक इंसान को कोई हक नहीं बनता कि वो किसी कि इच्छा के विरूद्ध उसके जिस्म को नोचकर, छुकर उसका विनय भंग करें।

 

हमारे भारत देश में ऐसे अपराधी के लिए सज़ा भी मुकम्मल है परंतु हां बस अफ़सोस इस बात का कि सजा मिलने में सालों लग जाते हैं जूतियां घिस जाती बलात्कारी को सजा दिलवाने में, इस संदर्भ मे हमारे देश की सरकार को कानूनी नियम के अंतर्गत फेर-बदल कर सुधार करना चाहिए। अब यहाँ बात करते हैं दूसरे तरह का बलात्कार जिसे मैं नाम देती हूं स्वेच्छिक बलात्कार। जो कि बलात्कार तो है, परंतु इच्छा के विपरित नहीं बल्कि स्वेच्छा से या ये मुहावरा सीधे से बैठता है कि आ बैल मुझे मार जब बैल ने मार दिया तो डंडे लेकर उसके पीछे भागना कहां तक उचित है। स्वैच्छिक मतलब जो आपकी सहमती से हुआ और जब सब हो गया तो उसे बलात्कार का नाम देकर अदालत के दरवाजे खटखटाना सरासर बेवकूफी। इस स्वैच्छिक बलात्कार कि जो शिकार बनती हैं वो हैं, महामूर्ख वो महिलाएं जो अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी से वार करती है और अपने साथ-साथ दूसरों कि जिंदगी संग भी खिलवाड़ करती हैं। आज वर्तमान युग मे ये देखा गया है। कि वैवाहिक रिश्ते पहले की तरह मिठास भरे नहीं होते हैं, वैचारिक मतभेद, सहन शक्ति कि कमी, अहंकार, जवाब देना आदि बहुत से कारण हैं वैवाहिक जिन्दगी में मतभेद के । जिसके चलते बहुत सी औरतें सोशल मीडिया पर या अपने परिचित मित्रों के संपर्क मे रह कर उनसे नजदीकियां बड़ा लेती हैं। उन्हें अपने वैवाहिक जीवन में घटित छोटी सी छोटी बात बताना शुरू कर देती हैं जिससे बाहर के पुरुष मित्र इसका फायदा उठाते हुए आग में घी डालते हुए महिलाओं को उनके ही परिवार के खिलाफ करते हुए अपने कांधे का सहारा देते हैं। महिलाएं या ये कहूं बेवकूफ महिलाएं तो ये कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ऐसे पुरुषों कि मीठी चुपड़ी बातों में इस कदर उलझ जाती हैं कि अपना सर्वोपरि उन पराए मर्दों पर न्यौछावर करती चली जाती हैं। धीरे-धीरे ये दोस्ती प्रगाढ़ता कि हद तक पहुंच कर उस हद कि मर्यादा को भी तार-तार कर जिस्मानी ताल्लुकात तक पहुंच जाती है। जब सब लुट जाता है और पुरुष प्रधान को जो चाहिए होता है वो तो वो पा चुका होता है और फिर लग जाता नये शिकार की तलाश में, मन भर जाने पर वो उस महिला को त्याग आगे बढ़ जाता है और महिला उसके प्यार में दीवानी हो आंसुओं से घिर टूटी और बेजार सी हो जाती है। जब इनको होंश आता है तो इन्हें समझ आता है कि इनके पति बेहतर थे और उनकी छांव मे वो सुरक्षित भी थी । परंतु सिर्फ अहम् का भाव रिश्तों को तार-तार कर गया । बाद मे बहुत सी महिलाएं तो इस अंधे प्यार अवैधानिक रिश्ते के कारण अपने परिवार पति, बच्चों को भी छोड़ देती हैं सिर्फ पराए पुरुष के लिए कुछ . सब लुटा के खाली हाथ खामोशी धारण कर लेती हैं। तो कुछ बलात्कार का इल्ज़ाम लगाकर केस कर देती हैं और समाज को यही कहती फलाने ने मेरे साथ गलत किया फिर छोड़ दिया। जब कि ऐसे रिश्ते को बलात्कार नाम देना उचित है? जवाब है नहीं। क्यों कि ये जो भी होता है वो दोनों तरफ के राज़ी नामे से ही होता है। महिला कोई दूध पीती छोटी बच्ची नहीं है और ना ही कोई कुंवारी कन्या बस फर्क इतना है स्वैच्छिक बलात्कार में जो महिला अहंकार में डूब पर भ्रमित है उसे और अधिक पथ भ्रमित पराए मर्द ने किया और फिर उसने शारिरीक शोषण कर मज़े भी लूटे और मन भरने पर या दूसरा शिकार मिलने पर त्याग दिया। एसी महिलाएं ना तो घर कि रही ना घाट की और फिर चली देती केस करने पर महिलाओं ये नहीं जानती कि जो हुआ उसमें आपकी मूर्खता संलग्न होती है इसमें केस कर आप पूरी दुनिया के लिए भी हंसी का पात्र बनती साथ ही आपके अपने जो दिल से अपने थे आपका बहिष्कार करते। बस फिर क्या आपके पास पश्चाताप के अलावा कुछ शेष नहीं रह जाता आप जैसी महिलाओं पर एक गाना बिल्कुल सटीक बैठता “सब कुछ लुटा के होंश में आए तो क्या हुआ। इसलिए अहम् की भावना त्याग अपने अपनों को पहचाने आज कल ऐसे जघन्य अपराध में लिप्त हमारे आसपास के या सोशल मीडिया के लोग हर पल घात लगाए रहते शिकार के लिए। समझदारी से काम करें भावनाओं और मिठी बातों मे ना फंसें।

 

वीना आडवाणी तन्वी 

नागपुर, महाराष्ट्र