सामाजिक परम्पराओं को नजर अंदाज करती युवा पीढ़ी की सोच घातक!!
आजकल मेरी कुछ सहेलियां व जान-पहचान की महिलाएं जो मुझसे उम्र में कुछ बड़ी हैं वे डिप्रेशन का शिकार हो रहीं हैं या खुद को आइसोलेटेड करते जा रहे हैं, या कुछ असामान्‍य बिहेव करते दिखते हैं। बात करने से, या दूसरों से पता चलता है कि उनमें से कई लोग इस बात से त्रस्त हैं कि उनकी बेटियां शादी लायक हो चुकीं हैं, उनके लिए अच्छे रिश्ते भी आ रहे हैं पर लड़कियां शादी के लिए साफ़ इंकार कर रहीं हैं या टाल-मटोल करके अभिभावकों को बहुत टेंशन में रखे हैं। कुछ लोग जो बेहद करीबी हैं यह भी कहते हैं कि मैं उनकी बिटिया को जरा गहराई से समझाने का प्रयास करूँ, मैंने की भी है, जिसमें कई बार सफलता मिली कई बार असफलता। जबकि आजकल तो माँ-बाप और ज्यादातर परिवार जाति-धर्म की बेड़ियों को तोड़ ही दिए हैं, उन्हें बस इस ख़ुशी का इंतज़ार है कि उनकी बेटी बस शादी कर ले।

यह समस्या लड़कों में भी है पर लड़कियों में बहुत ज़्यादा देखने को मिली है। मेरे विचार से उसका सबसे बड़ा कारण महिला सशक्तिकरण हो सकता है। विभिन्न फैशन ट्रेंड्स की तरह शादी न करना और रिलेशनशिप्स में रहना एक ट्रेंड बन गया है। मिडिल क्लास परिवारों की लड़कियां खासतौर पर जो मेट्रो और सेमिमेट्रो शहरों से होती हैं अच्छी शिक्षा लेने के बाद, अच्छा कैरियर बनाकर सिंगल लाइफ जीना चाहतीं हैं। ज़्यादातर इकलौते या एक-दो भाई-बहन और होते हैं तो उन्हें पता है कि अगर साधारण जॉब भी लग जाये है तब भी अभिभावकों का सपोर्ट तो रहेगा ही और भविष्य सुरक्षित ही है। वे आज़ाद ज़िन्दगी से परे शादी के बंधन से कतराती हैं, उन्हें दूरदर्शिता नहीं रहती कि भविष्य में व्यक्तिगत जीवन सूना हो सकता है, मौज-मस्ती की उम्र निकलने के बाद ज़िन्दगी में आगे-पीछे कोई न रह जायेगा जिसे उनके होने या न होने की ज़्यादा परवाह हो। वे शादी न करने का फैसला ले तो लेतीं हैं क्योंकि उन्हें घर से अलग नहीं होना है, अपनी सहुलियत वाली जिंदगी से समझौता नहीं करना चाहतीं, या कई बार वे जिंदगी भर अपने माता-पिता की सेवा करना चाहतीं हैं पर वे यह नहीं समझ पातीं कि माँ-बाप को जीवन में ख़ुशी उनके सेटल होने में होगी न कि यूँ बिना शादी किये उनके साथ रहने में।
लड़कियां शादी के बाद की कई जिम्मेदारियों से घबराते हैं, वे अपने घर की दूसरी महिलाओं को करीब से किंतु ऊपरी तौर से देखी होतीं हैं और अपनी वर्तमान मानसिक हालत में ज़रा भी परिपक्वता नहीं ला पातीं। खैर! क्या कहा जाये, समझ से परे है। पर मेरा मानना है, शादी न करने का निर्णय, आज नहीं तो कल इंसान को अंदर से अकेला महसूस कराता है, जिंदगी में उदासी और सूनापन लाता है। कई बार मेरा सामना अन-मैरिड बड़ी उम्र की महिलाओं से हुआ और मेरा तजुर्बा यही रहा कि वे दूसरों की ज़िन्दगी की रौनक़ों से ज़रा चिढ़ती हैं, उनके अंदर एक खोखलापन होता है। ऊपर से तो ऐसे जताती हैं की कितनी आज़ाद हैं, मस्त-मौला हैं पर अंदर ही अंदर शादी-शुदा खुशहाल परिवारों को देखकर उनमें द्वेष व हीन भावना आती है फिर किस्मत को दोष देतीं हैं। इसलिए जब तक जीवन में कोई बेहद असाधारण लक्ष्य न हो, साधारण लड़कियां पढ़-लिखकर, सिक्योर्ड जॉब होने के बाद शादी करके सेटल हो जाएं तो उनके स्वयं के जीवन के साथ-साथ अभिभावकों, परिवार, व सम्पूर्ण मानव समाज के लिए हितकर ही होगा। महिलाएं सशक्त जरूर हों, पर उसका इस्तेमाल सामाजिक परम्पराओं और मूल सामाजिक/ सांसारिक जीवन शैली को नजरअंदाज करने में न करें तो सबके लिए बेहतर होगा।

शशि दीप ©✍
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई
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