आन्तरिक प्रवृत्तियों में गुणात्मकता लाना उत्तरोत्तर संवृद्धि का मूल मंत्र !!

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मुझे शुरू से ही बागवानी का शौक रहा है लेकिन मुंबई में रहते हुए, फ्लैट सिस्टम के घरों में इस शौक को सिर्फ आंशिक रूप से ही पूरा किया जा सकता है। फिर भी जो भी हो, जैसा भी हो एक छोटी सी बगिया भी अपने आप में एक वृहद् आध्यात्म का सार अपने अंदर समेटे रहता है। प्रतिदिन हरियाली का अवलोकन करना, विभिन्न परिस्थितिओं में उन्हें लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते देखना, एक जिज्ञासु साधक के लिए उसके गुणात्मक प्रवृत्तियों को चेष्टापूर्वक विकसित करने में सहायक हो सकता है या उसके जीवन उन्नयन में एक बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है।

 

खैर, इस शौक के प्रति मेरे समर्पण के बारे में पहले कभी इतना गहन विचार मन में नहीं आया था लेकिन इतने वर्षों के जीवनकाल में मैंने लगातार हरियाली को अपने रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बनाकर पौधों के प्रति दिलचस्पी को जिन्दा रखने में कोई कसर नहीं छोड़ा। और अब अनायास समझ में आया कि इस छोटे से हरे-भरे स्थान के सानिध्य में होना सचमुच मेरे आध्यात्मिक विकास का एक महत्वपूर्ण प्रेरणास्रोत रहा है।

 

हुआ यूँ कि, अभी पिछले हफ्ते मेरी आत्मीय सखी जिन्हें मैं अपनी एक मार्गदर्शक बड़ी दीदी मानती हूँ, वे दूसरे महानगर से हमारे घर 5 दिन के लिए विशेष रूप से मेरे साथ समय बिताने आयीं। अब एक जैसे रूझान होने के कारण विभिन्न जीवनोपयोगी विषयों पर हमारी चर्चाएँ होना तो स्वाभाविक है। इसी दरमियान उन्हें भी मेरी हरी-भरी बगिया को प्रतिदिन निहारने का अवसर मिला। जब भी वे बैठक के सोफ़े में बैठती उन्हें पौधों में बदलाव/विकास प्रत्यक्ष दिखाई देता और प्रकृति द्वारा संचालित इन सरलतम परन्तु अद्भुत प्रक्रियाओं को देख उनका ह्रदय सकारात्मक भावों से प्रेरित विस्मय से भर जाता। एक पौधा “अलामंडा” का अपने लक्ष्य की ओर एकाग्र चित्त से आगे बढ़ने की गति ने तो उन्हें बेहद अचंभित व अवाक कर दिया। क्योंकि उनके पांच दिन के प्रवास में वह पौधा करीब आधा मीटर बढ़ गया। जिस दिन वे यहाँ पहुँची उस दिन वह सीधे बढ़ते दिख रहा था,

उसके दूसरे दिन उसकी कोमल बेल (लताएं) बगल के गमले में विराजमान क्रिसमस ट्री का सहारा लेकर उस पर लिपटते हुए तीव्र गति से बढ़ने लगा।

 

जोश के साथ उस पौधे का स्वयं के उद्देश्य के प्रति गंभीरता, अद्भुत जज़्बा एक बहुत बड़ी प्रेरणा का जीता-जागता उदाहरण प्रतीत हुआ। तभी ईश्वरीय कृपा से मैंनें व मेरी आध्यात्मिक सहसाधक ने इस पर दिलचस्प चर्चा करते हुए यही निष्कर्ष निकाला कि इस संसार में, जिन आत्माओं के अंदर गुणात्मक प्रवृत्ति की प्रचुरता पाई जाती है वे जहाँ कहीं भी रहें प्रत्येक व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति में स्वयं व दुनिया के लिए कल्याणकारी तत्व ढूंढकर उनके सहारे आध्यात्मिक, बौद्धिक, भौतिक व नैतिक सम्पन्न्ता को चेष्टापूर्वक विकसित कर सफलता के शिखर की ओर आगे बढ़ते जाते हैं। इस दरमियांन कितनी भी बाधाएं आ जाएँ उनकी उन्नति का मार्ग अवरुद्ध नहीं होने पाता तथा उनके मित्रों व हितैषियों का दायरा विस्तृत होता जाता है। आर्थिक रूप से बहुत संपन्न न भी हों तो भी व्यक्तित्व की सम्पन्नता अनुभूत होती है। सतत सकारात्मक विकास अच्छे कर्मों का द्योदक है इसलिए आन्तरिक प्रवृत्तिओं में गुणात्मकता लाने से भाग्य भी सुधरता जाता है और भविष्य की आशाओं को लेकर निज मन बहुत हद तक आश्वस्त होता जाता है।

शशि दीप विचारक/ द्विभाषी लेखिका मुंबई

shashidip2001@gmail.com