प्रकृति की भव्यता, ग्राह्यता व दिव्यता!!!

महान दार्शनिकों/ विद्वानों का मानना है कि, हमें प्रतिदिन कुछ समय प्रकृति, परमात्मा और उन लोगों के साथ जरूर बिताना चाहिए जिनकी हम हर रोज सबसे ज्यादा प्रशंसा करते हैं या उन्हें अपना प्रेरणास्रोत समझते हैं। ऐसा करने से हमें निश्चित रूप से अपार आनंद की अनुभूति होगी और हमें जीवन को और अधिक प्रभावशाली एवं सार्थक ढंग से जीने के लिए उत्साह व अनुग्रहों की प्राप्ति होती जाएगी।

उपरोक्त मान्यता पर मुझे कोई संदेह नहीं क्योंकि ईश्वर की असीम अनुकंपा से मैनें स्वयं भी इसे यदा-कदा सहृदय अनुभूत करने का सौभाग्य प्राप्त किया है अत: मुझे यह तथ्य बिल्कुल सत्य प्रतीत होता है। मैं आशा करती हूँ कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखने वाले बहुत से प्रकृति प्रेमी इस धारणा का अन्वेषण करते हुए इसे सिद्ध करने में ज़रूर सफलता हासिल किए होंगे।ज़रा खामोशी से एकाकीपन में घर की खिड़की/बालकनी के बाहर नजरें घूमाकर देखें तो प्रकृति की दिव्यता, उसकी अद्भुत आभा देखते ही बनती है। उल्लेखनीय है कि विधाता के द्वारा रचित इस सृष्टि में उसकी कृतियों को बिना किसी शर्त या शुल्क के, वक्त की पाबंदी के बिना तहे दिल से स्वागत के साथ दर्शन का लुत्फ़ उठाया जा सकता है।

गौरतलब है कि हममें से अधिकांश लोग शहरों में रहते हैं जहाँ प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता व प्राकृतिक संसाधनों का दोहन साफ़ झलकता है, फिर भी छुट्टियों में फुरसत मिले तो अगर अवलोकन करें तो अनगिनत दृश्य हमारा ध्यान आकर्षित कर सकते हैं इसका मतलब प्रकृति के पास अनुग्रहों का भंडार है।

उन हरे-भरे करामाती घने वृक्षों की ओर नज़र डालें, चिड़ियों की मधुर कलरव, कलियों से खिलते हुए पुष्प, आकाश की मनोरम छटा बिखेरती आभा और इस सब के बीच सृष्टि को प्रकाश व जीवन देने वाला वह मूल अवयव सूर्यदेव का वैभवशाली आगमन और कई दिव्य घटनाएं। ये तो बाहर की सुन्दरता है, इसे और भी करीब से अनुभूत किया जाये तो हम अपने घर के छोटे से बगीचे को ही करीब से देखें तो पता चलता है पौधे मूक जरूर होते हैं लेकिन ऐसा लगता है कि वे मौन भाषा में बहुत कुछ बोलते हैं। ज़रा कुछ कोमल पत्तों, पुराने पत्तों, टूटकर गिरते हुये पत्तों, नई कलियोंं, पुरानी कलियों से खिलते हुये फूलों की भाव भंगिमाएं, गिरती पंखुड़ियाँ, तेजी से होता विकास, धीमी वृद्धि इत्यादि का अवलोकन/ विश्लेषण करें तो पता चलता है कि इन सभी चरणों में रहस्य व गहरा संदेश समाहित है। इस प्रकार प्रकृति के साथ सम्मिलन के ध्येय से यदि प्रतिदिन थोड़ा सा वक्त देना सम्भव हो तो हृदय कृतज्ञता से भर जाता है व उसकी शानदार विविधता में तल्लीन होने का प्रयास करें तो सहजतापूर्वक ईश्वर के अनुग्रहों से रुबरू होना सम्भव है। प्रकृति भी इस कोशिश को उसी भाव के साथ स्वीकार करती है, और एक शिक्षक (प्रकृति) की भान्ति अपने सबसे उत्साही प्रसंशकों /भक्तों की उपस्थिति को अपने अन्तर्भाग में दर्ज करती है और उनकी श्रद्धा से प्रत्याभूत होती है।

कुछ दिन पहले, मेरी एक करीबी मित्र ने “प्रेयर प्लांट्स” के बारे में कुछ रोचक जानकारियाँ देकर मेरा दिन बना दिया। उन पौधों के सानिध्य में अपने अनुभव साझा करते हुए वे बताती हैं कि कुछ पौधे शाम को अन्धेरा होने पर खुद को समेट लेते हैं जो बिल्कुल प्रार्थना करने वाले हाथों की तरह प्रतीत होते हैं, इसलिए इनका नाम प्रेयर प्लांट्स है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रकृति अपने आप में कितनी अद्भुत है इसीलिये ऐसी दिव्य घटनाएं हमारी आंखों के समक्ष घटित होती हैं। जिज्ञासु आत्माएं जिनके पास आध्यात्मिक चक्षु हो वे आसानी से इस परमानंद को महसूस कर सकते हैं व पूरी तरह से ईश्वर-चेतना में लीन रहते हुए स्वयं के भीतर परमात्मा को पा सकते हैं। आईये प्रेयर प्लांट्स व ऐसे अनेकों अद्भुत कृतियों में समाहित भावों को आत्मसात करें तथा प्रकृति की भव्यता, ग्राह्यता व दिव्यता के लिए प्रति पल कृतज्ञ रहें।

शशि दीप✍
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई
shashidip2001@gmail.com