मप्र के 14 जिलों में ‘मानदेय घोटाला’: 3 साल घुमाते रहे अफसर फाइल
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सीएम सचिवालय ने की घोटाले की रिपोर्ट तलब
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राजेन्द्र वर्मा ( वरिष्ठ पत्रकार )
कंप्यूटर ऑपरेटर्स सहित 89 खातों में डाला था आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का पैसा; 3 साल में पूरी नहीं हो पाई जांच, शिकायत के बाद हरकत में आया सीएम सचिवालय
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भोपाल सहित प्रदेश के 14 जिलों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय घोटाले की जांच 3 साल में नही हो पाई है। इसमें भी आरोपी पाए गए बाल विकास परियोजना के 8 में से चार के खिलाफ ही कार्यवाही हुई है। जबकि 3 अफसरों ने हाईकोर्ट से स्टे लिया है। संचनालय में जमे कुछ अफसरों ने घोटाले को दबाने के लिए फाइल को डस्टबिन में डाल रखा था। शिकायत के बाद इस घोटाले की जांच रिपोर्ट महिला एवं बाल विकास विभाग से मुख्यमंत्री सचिवालय ने तबल कर ली है। माना जा रहा है कि आरोपी अधिकारियों के साथ अब जांच करने वाले अफसरों पर भी गज गिर सकती है।
कैग ने पकड़ी थी गड़बड़ी :
बता दें कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने वर्ष 2018 में पोषण आहार मामले में गड़बड़ी पकड़ी थी। कैग के मुताबिक मई 2014 से दिसंबर 2016 के बीच भोपाल, रायसेन के परियोजना अधिकारियों (पीओ) ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाओं की करीब 3.19 करोड़ रु. की मानदेय राशि डाटा एंट्री और कंप्यूटर ऑपरेटरों सहित अन्य 89 बैंक खातों में जमा करा दी। भोपाल की एक पीओ सुधा विमल मोतियापार्क में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में दर्ज थीं। उनके खाते में बैरसिया के कई, बरखेड़ी, चांदबड़, गोविंदपुरा के एक-दो और रायसेन के उदयपुरा के परियोजना अधिकारियों का पैसा जमा था। इस पूरे घोटाले में करीब 26 करोड़ रुपए गलत तरीके से निजी बैंक खातों में ट्रांसफर किए गए।
जांच पर सवाल :
मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि महिला एवं बाल विकास विभाग 3 साल पहले खुले इस मामले की जांच अब तक पूरी नहीं कर पाए हैं। बल्कि जिन परियोजना अधिकारियों को राजधानी की 8 बाल विकास परियोजनाओं में गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार पाया गया है, उन्हें जांच के दौरान ही बहाल करने की तैयारी थी। आरोपी सभी 8 अफसर व 2 क्लर्क सस्पेंड चल रहे हैं। बताया जाता है कि चार आरोपी राहुल चंदेल, कीर्ति अग्रवाल, सुमेधा त्रिपाठी और कृष्णा बैरागी की जांच पूरी हो गई है। जबकि दिलीप जेठानी अर्चना भटनागर, सुरेंद्र कुमार मौर्य, व बीना भदौरिया की जांच अभी चल रही है।
जांच अधूरी पड़ी :
घोटाले में शामिल बाल विकास परियोजना अधिकारी नईम खान,मीना मिंज और बबीता मेहरा के मामलों की जांच अभी अधूरी है। दरअसल, संबंधितों ने हाई कोर्ट से स्थगन लिया है। उनका तर्क है कि मामले में उनके खिलाफ FIR या विभागीय कार्रवाई दोनों में से कोई एक कार्रवाई की जाए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस मामले को संज्ञान में लिया है। इसलिए मुख्यमंत्री सचिवालय ने महिला एवं बाल विकास विभाग के से घोटाले से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।

मानदेय 6 हजार रुपए, खाते में एक लाख :
कैग के मुताबिक वर्ष 2014-15 से लेकर 2017-18 के दौरान आंगनबाड़ी महिलाओं को 6 हजार रुपए मानदेय मिलता था, लेकिन उनके बैंक खातों में एक लाख 13 हजार रुपए तक के भुगतान मानदेय के रूप में किए गए। कुल 89 बैंक खातों में 9 डाटा एंट्री व कंप्यूटर ऑपरेटरों कीर्ति अग्रवाल, राहुल चंदेल, सुमेधा त्रिपाठी, कृष्णा बैरागी,सुरेंद्र कुमार मौर्य,अर्चना भटनागर, बीना भदौरिया तथा दिलीप जेठानी के खातों में राशि ट्रांसफर की गई थी। एक खाता गोविंदपुरा पीओ में काम करने वाले एक कर्मचारी की बेटी प्रतिमा लोकवानी का था।

एक ही बिल पर फ्लेवर्ड दूध का भुगतान :
कैग के रिपोर्ट के मुताबिक भोपाल के तत्कालीन डीपीओ ने बच्चों को दिए जाने वाले फ्लेवर्ड दूध का भुगतान 4 लाख 73 हजार रुपए जिस तारीख और बिल क्रमांक से किया, उसी तारीख और क्रमांक से 14 लाख एक हजार रुपए का भी भुगतान हुआ। जब कैग ने डीपीओ से पूछा तो उन्होंने कहा कि फर्जी हस्ताक्षर से किसी ने ऐसा किया होगा। इस राशि की वसूली करके शासन के खाते में जमा करा दी गई है।

विदिशा, मुरैना, अलीराजपुर और झाबुआ में भी गड़बड़ी
कैग की रिपोर्ट में यह भी कहा था कि भोपाल और रायसेन की सेंपल जांच के अलावा विदिशा, मुरैना, अलीराजपुर और झाबुआ के जिला कार्यक्रम अधिकारी व परियोजना अधिकारियों के दस्तावेजों की जांच में पता चला कि मानदेय का 65 लाख 72 हजार गलत तरीके से आहरण किया गया। बाद में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका के नाम पर जिन खातों में यह पैसा जमा कराया गया वो फर्मों के नाम पर व कर्मचारियों के परिजनों के नाम पर थे। फर्मों में संदीप कंप्यूटर और ऑफसेट मुरैना शामिल है।