विरासत में मिली पवित्रता ही जीवन का मूल मंत्र!

 

नेटवर्किंग में होने की वजह से मेरा भांति-भांति के लोगों से सामना होता रहता है, और उन्हें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जानने समझने का मौका मिलता है फलस्वरुप स्वयं के भीतर मंथन होना स्वाभाविक है। इस दरमियान ईश्वर की अनुकम्पा से, चिंतन में बार-बार एक सच्चाई को स्पष्ट रूप से समझ पाती हूँ कि ईमानदार, सच्चे दिल के विनम्र लोग ही दुनिया में

सबसे ज्यादा प्रभावशाली होते हैं। यही महत्ता के शिखर पर पहुँचाने वाला सबसे बड़ा तप व साधन है क्योंकि ऐसे हृदय में परमात्मा का वास होता है। वे बेहद विरले होते हैं अपने सहज, सरल, देवता प्रकृति के कारण वे दुनिया के छल-कपट, असत्य, धूर्तता युक्त लोगों पर भी विश्वास करके असाधारण तरीके से इंसानियत निभाते हैं फिर इसमें चाहे उनका क़ीमती समय, ऊर्जा या धन भी लगाना पड़े, वे अपने सामर्थ्य के अनुसार न्यौछावर करते जाते हैं। मतलबी दुनिया उनकी सीधाई का भरपूर फायदा तो उठाती रहती है लेकिन दिव्य शक्ति की मदद से वे अपने अंदर निहित कुदरती सद्गुणों की रक्षा करने में सक्षम होते हैं। नकारात्मक या विभिन्न दुर्गुणों, गतिविधियों में संलग्न लोग भी उनके उत्कृष्ट मानवीय गुणों को जरा भी प्रभावित नहीं कर पाते। हमारे एक आत्मीय परिजन हैं, कभी-कभी विस्तृत वार्ता में अपने जीवन काल में आये गए कुछ लोगों व घटनाओं का जिक्र करते हैं कि कैसे उन्होंने अपने दो दशक से ज्यादा के लंबे कार्यकाल में अनगिनत लोगों पर उदारता रखते हुए जीवन प्रवाह में बहते रहे कभी स्वयं की खुशी या धन संपत्ति बनाने बटोरने को ध्येय नहीं बनाया बल्कि दूसरों की खुशी व भावनाओं को आगे रखा। हाँ कभी-कभी अफसोस होता है कि इस बीच कुछ संदिग्ध चरित्र लोगों पर भी पूरा विश्वास करके हर सम्भव मदद किए जिनके चंगुल में फंसने से बदनामी भी हो सकती थी पर ऊपर वाले ने हमेशा महफूज रखा। वे सब बातें भले ही पुरानी हैं लेकिन जीवन की गहरी सीख देते हैं।

उपरोक्त उदाहरण का विश्लेषण मैं इस प्रकार करना चाहूँगी कि ऐसे खतरों के खिलाड़ी जो अपनी दरियादिली के कारण दूसरों का भला करने की नीयत लिये अपना जान भी जोखिम में डाल देते हैं, पर दिव्य शक्ति उनकी हिफाजत करते हैं। जैसे उपरोक्त घटना के मुख्य पात्र के व्यक्तित्व में पवित्रता है। सानिध्य में होने के कारण जब भी मैं पवित्रता के साकार रूप की कल्पना करना चाहती हूँ, या मानवीकरण करना चाहती हूँ तो मेरे स्वर्गीय पिता के साथ-साथ ये मुख्य पात्र मेरे मानसिक पटल पर प्रकट हो जाते हैं। वह इंसान जिसने अपने पिता के जीवन से प्रेरणा ली, उनके संघर्ष उनकी खुद्दारी को आत्मसात किया व वर्णन करते हुए कई मार्मिक भावनायें अभिव्यक्त किए। ऐसे पिता के संतान को पवित्रता विरासत में मिली है। क्योंकि एक शुद्ध आत्मा द्वारा पोषित सन्तान अगर उन सद्गुणों का संवर्धन करे तो उनका हृदय भी शुद्ध ही होगा। इसलिए उसकी चिंता नहीं क्योंकि ऐसा विशेष अनुग्रह और वह दिव्य आशीर्वाद ऐसी आत्माओं के पास पहले से ही है लेकिन असली चिंता यह होती है कि इस प्रदूषित दुनिया में, पवित्रता ही है जो प्रदूषण के हाथों पीड़ित है। इसलिए हमें समझदार होना होगा, दुनिया के हिसाब से सजग व सतर्क होना होगा। अपनी पवित्रता, मानवता, अपने अच्छे मूल्यों की रक्षा करने की कला में माहिर होना होगा। और हम ऐसा करने में निश्चित रूप से सक्षम हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसे विरले लोग सभी परिस्थितियों में अपनी सहज पवित्रता और मासूमियत को बरकरार रखें, लेकिन साथ ही साथ आगे बढ़ते हुए बदलते समय और चुनौतियों से निपटने में सक्षम, सशक्त मजबूत इंसान बनें। ऐसे ख़तरों के खिलाड़ी के एक हाथ में तलवार भी होना जरूरी है क्योंकि उनके एक हाथ में माला तो पहले से ही है। शास्त्रों में देवों को संबोधित करते हुए यह प्रार्थना भी इस गूढ़ भावना को आश्वस्त करती हैं: – सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धंधन्य सुतान्वितः मानुष्यो मत प्रसादेन भविष्ययति न शंशायः। . समस्त विघ्न दूर हो जाते हैं अन्न, धन, संतान की प्राप्ति होती है मेरे आशीर्वाद से, इसमें किसी भी हालत में कोई शक नहीं रहना चाहिए।

शशि दीप ©✍

विचारक/ द्विभाषी लेखिका

मुंबई

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