गैरकानूनी गतिविधियां ( UAPA) कानून का उपयोग या मानव अधिकारों के साथ खिलवाड़
सैयद खालिद कैस
भोपाल। देश भर में जिस प्रकार जनता,पत्रकारों,अधिवक्ताओं ,मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां ( UAPA) कानून का उपयोग कर उनकी आवाज़ को दबाने के मामले उजागर हो रहे हैं वह किसी से छिपे नही हैं। ताजा मामले त्रिपुरा में वर्ग विशेष के खिलाफ हुई हिंसक घटनाओं पर टिप्पणी करने या घटना स्थल की फेक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले वकीलों ओर पत्रकारों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां ( UAPA) कानून ने सारे देश का ध्यान उस और आकर्षित किया है।
गत दिनों जहां त्रिपुरा में UAPA FIR के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक वकीलों व पत्रकारों को बड़ी राहत प्रदान याचिका कर्ताओ की
याचिका पर त्रिपुरा सरकार तो नोटिस जारी कर जवाब मांगते हुए अगले आदेश तक वकीलों, पत्रकारों पर कठोर कार्यवाही ना करने के आदेश दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट में 2 वकीलों अंसार इंदौरी व मुकेश और एक पत्रकार श्याम मीरा सिंह ने ये याचिका दाखिल कर UAPA की कुछ धाराओं को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। याचिका में इन धाराओं को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ‘ प्रतिकूल प्रभाव’ बताता गया है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज आरएफ नरीमन के हालिया भाषण का भी हवाला दिया गया, जिसमें उन्होंने UAPA को अंग्रेजों का कानून बताया था।
महिला पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे में त्रिपुरा पुलिस को लगा है झटका
त्रिपुरा में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट के वकील एहतेशाम हाशमी के साथ गए 03वकीलों की टीम ने घटना स्थल पर पीड़ितों से स्वयं मुलाकात कर हकीकत को जाना ओर जांच उपरान्त फेक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट महामहिम राष्ट्रपति महोदय, सुप्रीम कोर्ट ,राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को प्रस्तुत करने से बौखलाई त्रिपुरा पुलिस द्वारा 02वकीलों ओर एक पत्रकार पर गैरकानूनी गतिविधियां ( UAPA) कानून के तहत की गई कार्यवाही के बाद त्रिपुरा पुलिस द्वारा त्रिपुरा में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर रिपोर्टिंग करने गईं दो महिला पत्रकारों जिन्हें गिरफ्तार किया गया था जिनको बाद में जमानत मिल गई और त्रिपुरा पुलिस को झटका लगा।
इन दोनों महिला पत्रकारों को असम पुलिस ने गत रविवार को असम-त्रिपुरा सीमा के करीब करीमगंज के नीलम बाजार में हिरासत में ले लिया था, फिर उन्हें त्रिपुरा पुलिस के हवाले कर दिया था। देश भर में इन महिला पत्रकारों की हिरासत को अवैधानिक मानकर विरोध किया गया।
गौरतलब हो कि WH न्यूज नेटवर्क की पत्रकार समृद्धि सकुनिया और स्वर्ण झा के खिलाफ त्रिपुरा पुलिस ने धार्मिक सद्भाव बिगाड़ने, फर्जी खबरें प्रसारित करने समेत कई केस लगाए थे,उन पर आरोप था कि उन्होंने लोगों को भड़काया।
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (PCWJ) और मीडिया कौंसिल ऑफ इंडियन जर्नलिस्ट्स,आल इंडिया वर्किंग जर्नलिस्ट्स कौंसिल ने त्रिपुरा सरकार के द्वारा पत्रकारों,वकीलों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां ( UAPA) कानून के तहत की गई कार्यवाही का विरोध दर्ज कराया था।
संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद खालिद कैस के नेतृत्व में सौंपे गए ज्ञापन में त्रिपुरा सरकार द्वारा पत्रकारों,वकीलों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां ( UAPA) कानून के तहत की गई कार्यवाही का विरोध करते हुए बर्खास्त करने की मांग की थी।
कश्मीर का पत्रकार 03साल से यूएपीए कानून लगा श्रीनगर के सेंट्रल जेल में कैद
त्रिपुरा सरकार ही नही देश के और भी प्रदेशों में गैरकानूनी गतिविधियां ( UAPA) कानून के तहत पत्रकारों,मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में डाल रखा है।
मालूम हो कि कश्मीर के पत्रकार आसिफ सुल्तान को यूएपीए कानून लगा श्रीनगर के सेंट्रल जेल में रखें 1200 दिन से अधिक हो गए हैं। उन्हें सेना ने मुखबिरी करने कहा था, इंकार कर दिया. तब से चरमपंथियों को साथ देने के घिसे पिटे आरोप में जेल में हैं।
आसिफ कश्मीर की अंग्रेजी पत्रिका “कश्मीर नैरेटर” में सहायक संपादक थे,पुलिस ने उन पर चरमपंथियों को पनाह देने,हत्या और हत्या का प्रयास का झूठा मुकदमा लगाया.जबकि सच यह है पुलिस को उनके पत्रिका में बुरहान पर लिखें एक लेख से ही परेशानी थी।
यह लेख जुलाई 2018 में प्रकाशित हुआ था.पुलिस ने उनके आई फोन और मैकबुक से सबूत प्राप्त होना बताया। आसिफ के जब्त मोबाइल और कम्प्यूटर को चंडीगढ़ के फोरेंसिक लैब में भेजा गया है लेकिन 3 साल बाद भी लैब की रिपोर्ट नहीं आई है। अन्तत:न्याय की आस में कश्मीरी पत्रकार आसिफ सुल्तान अब भी जैल में सड़ रहा है।
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (PCWJ) और मीडिया कौंसिल ऑफ इंडियन जर्नलिस्ट्स,आल इंडिया वर्किंग जर्नलिस्ट्स कौंसिल ने देश के महामहिम राष्ट्रपति महोदय से मांग की है कि मानव अधिकार विरोधी सरकारों पर अंकुश लगाते हुए गैरकानूनी गतिविधियां ( UAPA) कानून की समीक्षा सुनिश्चित करें।