भोपाल के महबूब, टाइगर पटौदी ने आज के दिन फानी दुनिया को अलविदा कहा था।
साथियों आज का दिन मेरे लिए काफी दुखद है। टाइगर के संबोधन से पहचाने जाने वाले मंसूर अली खां पटौदी ने 22 सितंबर 2011 को फानी दुनिया को अलविदा कहा था। वे फेफड़े में संक्रमण के कारण नईदिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल में कुछ दिन इलाज की खातिर भर्ती रहे। लेकिन वे बच नहीं सके। आम-खास के बीच टाइगर के नाम से मशहूर मरहूम पटौदी शाही परिवार में जन्मे और जीवन भर शाही अंदाज में जिए।
वे भोपाल की ताजदार, नायब और बेनजीर शख्सियत रहे। भोपाल में उन्हें लोग आत्मीयता और शाही खानदान के चश्मो-चिराग होने के कारण नवाब साहब के नाम से भी पुकारते। उनका मिलने का अंदाज जितना शाही था, वहीं उतना ही बड़ा दिल भी था। हरेक की इज्जत करना, लोगों से खुलूस से मिलना, अपनों की बात का हमेशा मान रखना उनका खास गुण था। दावतों के शौकीन टाइगर पटौदी को क्रिकेट से बेहद लगाव था। इतनी ही नहीं, वे हॉकी, पोलो के भी धुरंधर खिलाड़ी थे। इसके अलावा उनकी डिप्लौमेटिक समझबूझ अद्भुत थी। राजनीतिक मसलों पर वे बेबाकी से खुले तौर पर बोलने से बचते लेकिन सियासी मालूमात उनकी गजब की थी।
इसके इतर वे शेर दिल इंसान की पहचान रखते थे। यही वजह थी कि किशोर अवस्था में अपने नाना नवाब हमीदुल्ला खां के साथ पहली बार चिकलोद में शिकार के दौरान उनकी जांबाजी देखकर नवाब साहब ने प्यार और दुलार से उन्हें टाइगर कहना शुरू किया तो यह प्रचलन में आ गया। आज उन्हें गुजरे एक दशक बीत गया। मेरी आंखों में अब भी पटौदी का अंदाज किसी फिल्मी रील की तरह घूम रहा है। उनका लबो-लहजा शीरीं तो था ही। तेज रफ्तार से गाड़ी चलाने की वजह से बहुत कम लोग उनके साथ सवार होने में हिचकते और झिझकते थे लेकिन गाड़ी पर उनका कंट्रोल उनके अनुभव या यूं कहे तर्जुबे को जाहिर करता। भोपाल की सड़कों पर वे खुद कार चलाते थे। उन्हें फ्लैग हाउस से बड़ा तालाब देखना बहुत अच्छा लगता था. यहां की हैरिटेज बिल्डिगों की वे हमेशा तारीफ करते। चिकलोद से उनका जज्बाती लगाव था। यहां कई मौकों पर वे बेगम शर्मिला को लेकर पिकनिक मनाने की गरज से भी गए।
देश-दुनिया देख चुके टाइगर पटौदी को पटौदी स्टेट की तरह भोपाल से बेपनाह मोहब्बत रही। भोपाल आने पर शहर की खैरियत पूछते। उनसे रिश्ता रखने वालों की खबर लेते। महल पर मिलने आने वालों से दिल खोलकर मिलते। खूब बतियाते। इस दौरान हल्की-फुल्की छेड़छाड़ भी होती। यह छेड़छाड़ तब बुलंदी पर पहुंचती, जब मरहूम गुफराने आजम उस महफिल में होते। तब दोनों के बीच शाहाना गुफ्तगू और छेड़छाड़, मजाक कई मौकों पर हंसने और पेट में बल डाल देने का काम करता। हांलाकि क्रिकेटर पटौदी का चेहरा हमेशा संजीदा रहता। अधिकांश लोगों की राय उनके बारे में यही रही कि नवाब साहब बहुत कम बोलते हैं। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलु भी रहा। आगे बढ़ने के पहले ये जानिए कि भोपाल में मंसूर अली खान, इफ्तेखार अली खान पटौदी के बेटे थे। उनके वालिद खुद एक प्रसिद्ध क्रिकेटर रहे। टाइगर पटौदी की मां भोपाल की बेगम साजिदा सुल्तान थीं। वे नवाब हमीदुल्ला खां की मंझली बेटी थीं। टाइगर पटौदी की तालीम अलीगढ़ में मिंटो सर्किल और देहरादून (उत्तराखंड) के वेलहम बॉयज़ स्कूल, हर्टफोर्डशायर के लॉकर्स पार्क प्रेप स्कूल (जहाँ वे फ्रैंक वूली द्वारा प्रशिक्षित थे) और विंचेस्टर कॉलेज में हुई। इसके अलावा उन्होंने बैलिओल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में अरबी भाषा को बखूबी पढ़ा तो फ्रेंच भाषा में भी वे फर्राटे से बात करते थे। उर्दू और अंग्रेजी जुबान पर भी उनकी खास पकड़ थीं। अब ये भी जान लीजिए कि क्रिकेटर पटौदी की पैदाइश भोपाल की है। उनकी पैदाइश पांच जनवरी सन् 1941 हैं। खैर क्रिकेटर पटौदी ने जिस वक्त बल्ला थामकर क्रिकेट खेलना शुरू किया था, तब के दौर में हिंदुस्तानी क्रिकेट में आक्रमक खेल नहीं खेला जाता था। इस रिवायत को टाइगर पटौदी ने अपने हुनर से जमींदोज कर दिया। वे अपने लोगों के बीच क्रिकेट की गुफ्तगू के दौरान कहते थे कि अगर आक्रमक खेल नहीं दिखाएंगे और हमेशा डिफेंस में रहेंगे तो बालर समेत प्रतिद्वंदी आप पर हावी रहेंगे। उनकी बल्लेबाजी आक्रामक होने के साथ कलात्मक भी थीं। इसके बारे में मशहूर है कि उनके खेल के दौरान पब्लिक में से आवाज आती चौका, यकीन जानिए जहां से आवाज आती, उसी तरफ गेंद भी जाकर गिरती। कई मौकों पर सिक्स की आवाज आने पर दर्शकों के बीच गेंद पहुंच जाती। शायद यह फन दर्शकों के अभिवादन का था। क्रिकेट जगत में अपनी अनूठी पहचान छोड़ने वाले टाइगर पटौदी ने भारतीय क्रिकेट में लीडरशिप की कई मिसालें कायम की।उनकी लीडरशिप का हुनर था कि अपनी टीम को सदैव वे प्रोत्साहित करते। किसी खिलाड़ी को हत्सोसाहित नहीं होने देते। थोड़ा फ्लैश बैक में चले टाइगर पटौदी सीधे हाथ के बल्लेबाज और गेंदबाज थे। विंचेस्टर में स्कूली तालीम के दौरान ही उन्होंने क्रिकेट में अपना हाथ आजमाते हुए जौहर दिकाना शुरू किया था। वे अपने स्कूल की क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे। कुछ चैंपियनशिप भी जीतकर अपने नाम का झंड़ा गाड़ा। उनकी जिंदगी का एक अहम पहलू ये भी है कि टाइगर पटौदी जब महज 11 साल के थे तब उनके पिता का पोलो खेलते हुए दिल का दौरा पड़ने से निधन होगया था। इसका टाइगर पटौदी को काफी सदमा लगा। उन्होंने क्रिकेट से किनाराकशीं कर लीं।घर वालों और दोस्तों के मनाने पर उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू किया। फिर चार साल बाद उनका नाम अखबारों मे आया जब उन्होंने विनचेस्टर की ओर से खेलते हुए शानदार प्रदर्शन किया। एक हादसे में उनकी एक आंख की रोशनी चली गई। तब यह मान लिया गया था कि उनका क्रिकेट कॅरियर अब खत्म हो गया है। तकरीबन छह महीने बाद वह फिर से क्रिकेट मैदान पर लौटे। .उनके शाही अंदाज, लब्जो-लहजा और हालीवुड के किसी हीरो जैसे लुक पर ही वर्ष 1960 के दशक की मशहूर अदाकारा शर्मिला टैगोर उन पर फिदा हो गई थीं। यद्यपि गुरुवर रवींद्रनाथ टैगोर के खानदान से रिश्ता रखने वाली शर्मिला टैगोर से उनकी शादी 27 दिसंबर 1969 को हुई थीं। दोनों की शादी के पहले यह कयास लगाए जाते रहे कि टाइगर की मां बेगम साजिदा सुल्तान इस रिश्ते को मंजूर नहीं करेगी। दरअसल भोपाल रिवायतों का शहर रहा। लेकिन हुआ उल्टा। इसके बाद दोनों की शादी ज्यादा दिन नहीं टिकेगी। फिर ऐसे कयास लगाए जाते रहे। लेकिन इन कयास को कभी उड़ान का मौका नहीं मिला। वक्त गुजरने के साथ यह सब खत्म हो गए। यह दाम्पत्य जीवन की सबसे कामयाब जोड़ी रही। शर्मिला टैगोर ने टाइगर पटौदी का हमेशा मान रखा तो टाइगर पटौदी ने हमेशा शर्मिला टैगोर को अपनी पलकों में जगह दी। इनकी दो बेटियां सबा और सोहा जबकि बेटा सैफ अली खान हैं।
यह भी एक संयोग रहा कि टाइगर पटौदी सियासत में हाथ आजमाने दो बार चुनाव मैदान में उतरे। पहली बार गुरुग्राम से वर्ष 1971 में चुनाव लड़ा लेकिन कामयाबी नहीं मिली। दूसरी बार वर्ष 1991 में भोपाल संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस का टिकट मिला। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी समेत कुछ क्रिकेट खिलाड़ियों ने भी उनका चुनाव प्रचार किया लेकिन जीत नहीं सके। आज मियां टाइगर पटौदी नहीं है। उनकी यादें हम भोपालियों के साथ हैं। दिल तो चाह रहा है कि मियां टाइगर पटौदी के बारे में बहुत सी बातें करुं, लिखूं, कहूं लेकिन अब कैफियत ऐसी नहीं हैं। आखिर में इतना ही मैं उन्हें खिराजे अकीदत पेश करता हूं।
अलीम बजमी
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