जिंदगी भर हम नकारात्मक विचारों को पुष्पित-पल्लवित क्यों होने दें?

 

इंसानी फितरत है लोग ज़िन्दगी में बहुत कुछ मिला हो फ़िर भी कभी सन्तुष्ट न रहते हुए कई नकारात्मक विचारों को अपने अंदर पुष्पित-पल्लवित होने देते हैं या द्वेष पालने में जीवन का बहुत सारा वक्त जाया करते हैं। अपने प्रियजनों से बिना शर्त प्यार करना भूल जाते हैं या और कई अनमोल आशीर्वादों को अनदेखा कर देते हैं। वे कृतज्ञता के साथ जीना छोड़कर जाने कैसी सड़ी-गली बातों को तवज़्ज़ो देकर उनका राई का पहाड़ बनाना और मन को अशांत रखना, ज्यादातर यही देखने को मिलता है। और आधी दुनिया शायद सिर्फ इसी कारण से ज़िन्दगी को सार्थक ढंग से नहीं जी पाती। हमारे पास रहने के लिए खुद का मकान हो, गाड़ियां हों, जीविका का पर्याप्त स्थायी साधन हो, प्यारे बच्चे हों, परिवार हो, उत्तम स्वास्थ्य हो फिर भी एक दूसरे के प्रति छोटी-छोटी शिकायतों को नज़रंदाज़ न करना और बहस करके घर का माहौल ख़राब करना, मन को बोझिल करना ये प्रायः घर-घर की कहानी है और इसमें मैं खुद भी शामिल हूँ और मैंने अभी हाल ही में, एक दिन बिल्कुल यही वक्तव्य अपने जीवनसाथी को दिया भी था, जब ज़रा सी बात को लेकर हम दोनों में तकरार हुई। मज़ाक-मज़ाक में कई मित्र भी कुछ ऐसा ही अपने घर वृतांत बताते हैं, रिश्तेदारी में भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष देखने सुनने को मिलता है। पर कई बार कई लोगों की ज़िन्दगी सिर्फ द्वेष से उपजित हालात के कारण बर्बाद होती है। माँ-बाप के बिखरने से बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है, रिश्तेदारों में द्वेष पनपने से परिवार बिखरता है, मित्रों में, पड़ोसियों के बीच विभिन्न कारणों से मनमुटाव हो तो समाज व देश दूषित होता है।

 

वास्तव में नकारात्मक विचार एक मृत चूहे की तरह है जो दुर्गंध फैलाता है, उससे सिर्फ़ ध्यान हटा लेना उस विचार को दूर करने के लिए अगरबत्ती या सुगंधित रूम स्प्रे का उपयोग करने जैसा होगा। लेकिन आम तौर पर मैं ईश्वर कृपा से एक कदम आगे जाने का प्रयास करती हूं और उस विचार के पीछे के कारण और व्यक्ति की भावनाओं का सम्मान करते हुए उनके असली मंसूबे को जानने की कोशिश करती हूँ। तब उस विचार को अपने अंदर से पूर्ण रूप से निष्कासित करना आसान हो जाता है जैसे मरे चूहे को बाहर फेंकना। उदाहरण के लिए आप एक दोस्त से इतने नाराज हैं कि आप उसे शब्दों से चोट पहुंचाना चाहते हैं, ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि उसने आपका अपमान किया है, आपको धोखा दिया है आदि। मामले की तह तक जायें हो सकता है हमारी कोई बात उनके इस तरह के व्यवहार का कारण हो सकता है, तो कभी स्वयं वह व्यक्ति। जो भी हो एक बार जब हम कारण को छू लेते हैं, तो नकारात्मक विचार धीरे-धीरे या कभी तेजी से तिरोभूत हो जाता है। जब तक वह दूर न हो जाए तब तक प्रतीक्षा करें और फिर उस व्यक्ति के साथ सहृदयता के साथ, मधुर भाषा में सहानुभूतिपूर्वक बात करके कटुता को मिटाया जा सकता है और इस प्रकार जितना संभव हो सुमधुर इंसानी रिश्तों का शंखनाद करते हुए एक अच्छे समाज और राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है।

 

शशि दीप ©✍

विचारक/ द्विभाषी लेखिका

मुंबई

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