संजलि के मुद्दे पर टीवी चैनलों की खामोशी दर्दनाक भी है, शर्मनाक भी। जितनी अहमियत ईशा अंबानी की शादी को मिली, उसके हजार वे भाग का कवरेज भी संजलि को नहीं मिला
जरा सी उंगली आग में जल जाये तो बड़ी तकलीफ होती है न? बड़ी जलन होती है… थोड़ा सा तेजाब उंगली पर लग जाये तो असहनीय पीड़ा होती है… होती है न?
तो उन लड़कियों को कितनी तकलीफ होती होगी जिन्हें कोई ऐसा मर्द जला देता है, या उस पर तेजाब डाल देता है.. जो अपने मर्दाना अहम पर एक “न” की चोट बर्दाश्त नहीं कर पाता।
समस्या यह नहीं कि ऐसी लड़कियाँ ज्यादातर निचले तबकों या जातियों से होती हैं, समस्या यह नहीं कि आजादी के सत्तर वर्षों बाद भी देश का कानून अपना वह इकबाल न कायम कर सका कि कोई भी अपराधी अपराध करने से हिचके, डरे।
समस्या हमारे सामाजिक ताने बाने में ही है… यह कानून के नाम पर हमारी हिफाजत का जिम्मा लेने वाले और अपनी नफरत, लालच, अहंकार, और घायल हुए मर्दाना अहम के चलते ऐसे अपराध करने वाले अपराधी किसी दूसरे ग्रह से नहीं आते।
यह दोनों ही लोग हमारे समाज से आते हैं, हमारे ही घर से निकलते हैं.. हम बेटियों के लिये बहुत से नियम तय करते हैं, बहुत सी वर्जनायें निर्धारित करते हैं लेकिन बेटों के लिये क्या करते हैं… पेट्रोल डाल कर किसी लड़की को जिंदा जला देने वाले या तेजाब डाल कर किसी लड़की की पूरी जिंदगी अभिशप्त कर देने वाले युवक किसी अलग तरह की शक्ल सूरत और हुलिये के नहीं होते और न ही उनके सर पे सींग होते हैं। वे हमारे जैसे ही होते हैं, हमारे घर से होते हैं और हमारे भाई, बेटे, दोस्त होते हैं।
कभी हम इन सामाजिक विसंगतियों से निपटने के लिये क्या कोई पहल या कोशिश करते हैं.. अपने आसपास मौजूद बेटे, भाई या दोस्त के रूप में मौजूद युवा के मन को टटोलने की कोशिश करते हैं… कभी अपने घर में पलते बेटे के मन में यह भावनायें रोपने की कोशिश करते हैं कि मर्दाने अहम की भी एक सीमा होना चाहिये। लड़की भी उसकी तरह ही एक स्वतंत्र वजूद है और उसे भी नकार का उतना ही अधिकार है जितना बेटे को है…
क्या उसकी “न” का सम्मान होना चाहिये या नहीं होना चाहिये? अगर ऐसी एक भी कोशिश हम अपने घर में अपने बेटों के साथ नहीं करते तो हमें फिर किसी ऐसी घटना पर हाय तौबा मचाने का अधिकार ही क्या रह जाता है। आज किसी और का बेटा, भाई था… कल को आपका बेटा, भाई भी हो सकता है।
किसी व्यक्ति, मानसिकता, सरकार पर दोषारोपण करने से क्या होगा.. व्यवस्था अपने लचर रूप में ही सही पर किसी तरह तो उस अपराधी को सलाखों के पीछे पहुंचा ही देगी लेकिन उससे क्या… क्या यह तय हो जायेगा कि इस तरह के अपराध अब और नहीं होंगे? क्या अब और कोई बेटी गैंगरेप रेप की शिकार होने, आग में जलने या तेजाब का शिकार होने से बच जायेगी? जाहिर है कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला… कुछ दिन बाद फिर कोई और कांड हमें हदसा रहा होगा। तो जरूरत हमें इन घटनाओं की जड़ पर विचार करने की है जो हमारे आपके घरों में फैली हुई हैं न कि अन्यत्र कहीं।
अगर हमें अपने आसपास एक स्वस्थ समाज चाहिये तो उसकी बुनियाद हमें ही तो अपने घर से डालनी होगी। कोई बाहर से तो डालने आयेगा नहीं… अगर किसी लड़की को आग में जलने या तेजाब से झुलसने से बचाना है तो उसकी कोशिश हमें खुद अपने घर से करनी होगी। बाकी कानून आरोपी या अपराधी को बस सजा भर दे सकता है, वह समाज नहीं सुधार सकता। यह जिम्मेदारी हर नागरिक की होती है… आपकी भी, मेरी भी।
फरहान खान भोपाल की क़लम से