अब नही बच सकेंगे RTI अपीलकर्ता से साठ गाँठ कर ज़ुर्माने की कार्यवाही को ठेंगा दिखाने लोक सूचना अधिकारी

RTI अपीलकर्ता और लोक सूचना अधिकारी के बीच साठ गाँठ पर नाराज़ सूचना आयुक्त ने की बड़ी कार्यवाही

भोपाल।अक़्सर राज्य सूचना आयोग की कार्यवाही से बचने के लिए लोक सूचना अधिकारी RTI आवेदक से साठ-गाँठ कर अपीलीय कार्यवाही को रफ़ा दफ़ा करने की कोशिश करते है। पर राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने फैसले में ऐसी व्यवस्था दे दी कि लोक सूचना अधिकारी का बचना अब मुश्किल हो जाएगा। सिंह ने फिक्सिंग करने वाले अधिकारी पर 25000 का ज़ुर्माना लगा कर इस तरह की पर्दे के पीछे डील करने वाले वाले RTI आवेदक और लोक सूचना अधिकरियों को कड़ी चेतावनी दे डाली।

ये जानकारी मांगी थी-

दरअसल सतना के आवेदक पेशे से अधिवक्ता डॉ अजय शंकर ने तीन साल पहले सतना की राजस्व निरक्षक मंडल सोहावल में तहसीलदार रघुराज नगर द्वारा किस अधिकार के तहत कार्य किया जाता है उसकी जानकारी मांगी थी। पर  लोक सूचना अधिकारी तहसीलदार  बी के मिश्रा तहसील रघुराज नगर सतना ने  इस जानकारी को ये कह रद्द कर दिया है मांगी गई जानकारी प्रश्नवाचक है। वही इस मामले में जब प्रथम अपील हुई तो प्रथम अपीलीय अधिकारी एसडीओ ने भी जानकारी देने के आदेश दे दिए। पर मिश्रा ने जानकारी इसके बावजूद नही दी। तीन साल बाद जब ये मामला राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह के पास पहुँचा तो इसमे इसी महीने की नो तारीख़ को सुनवाई लगाई गई। सुनवाई के समय अपीलकर्ता द्वारा कहा गया कि उन्हें जानकारी पूर्व में मिल गयी है वे अब कार्यवाही नही चाहते है प्रकरण को समाप्त किया जाए। वही तहसीलदार बी के मिश्र ने डॉ अजय शंकर से शपथ पत्र भी लेकर आयोग के सामने पेश कर दिया कि मामले को समाप्त किया जाय। अपीलकर्ता और लोकसूचना अधिकारी की इस फिक्सिंग को देख कर सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने सुनवाई के समय दोनों की जमकर लताड़ लगाई।

राज्य सूचना आयुक्त सिंह ने इन आधारों पर रोकी फिक्सिंग

राज्य सूचना आयुक्त सिंह ने अपने आदेश में कहा कि आयोग इस तरह की फिक्सिंग को मूक दर्शक बन कर नहीं देख सकता है। क्योंकि अगर ऐसा किया गया तो ये अधिनियम के प्रावधानों पर विपरीत असर डालेगा।  सिंह ने ये भी कहा कि आयोग के समक्ष ऐसे कई प्रकरण आये जिसमे सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता द्वारा पहले लोक सूचना अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जाती है और फिर जब आयोग कार्रवाई करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है तो अपीलकर्ता और लोक सूचना अधिकारी में समझौता हो जाता है। इसके बाद अपीलकर्ता, लोक सूचना अधिकारी के पक्ष में संतुष्टि का प्रमाण पत्र पेश करते हुुुए प्रकरण को समाप्त करने की मांग कर देते हैं। सिंह ने अपने आदेश में यह भी कहा कि इस तरह की फिक्सिंग से प्रशासन के कामकाज को पारदर्शी बनाने की अधिनियम  की मूल भावना प्रभावित होती है।

सुनवाई में तरह से पलट गए RTI आवेदक 

सूचना आयोग से जारी आदेश में अपीलकर्ता डॉ अजय शंकर को आड़े हाथों लिया गया। राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने सुनवाई के दौरान कहा की जब आयोग द्वारा  अपीलकर्ता  डॉक्टर अजय शंकर से पूछा गया  कि अपील प्रकरण 3 साल पुराना है तो वह क्या अभी भी जानकारी लेने में में इच्छुक हैं। तो इस पर डॉ अजय शंकर द्वारा यह कहा गया की जानकारी उनके लिए अति आवश्यक है और साथ ही लोक सूचना अधिकारी पर कार्रवाई भी की जाए।  इसके बाद जैसे ही आयोग ने इस प्रकरण में कार्रवाई के लिए सुनवाई सूचना पत्र का नोटिस जारी किया है अपीलकर्ता द्वारा लोक सूचना अधिकारी को एक शपथ पत्र जारी कर दिया कि  एक बिंदु की जानकारी पूर्व में प्राप्त हो गई है और दूसरे बिंदु की जानकारी की उनको आवश्यकता नहीं है और प्रकरण को समाप्त किया जाए। पर सुनवाई में जब राज सूचना आयोग ने यह पूछा कि पूर्व में जानकारी कब प्राप्त हुई तो मालूम पड़ा यह जानकारी आयोग द्वारा सुनवाई सूचना पत्र जारी होने के बाद ही अपीलकर्ता के पास लोक सूचना अधिकारी ने उपलब्ध कराई।  सिंह ने अपने आदेश में कहा कि इससे साफ है कि अपीलकर्ता डॉ अजय शंकर का मकसद जानकारी प्राप्त करना नहीं बल्कि कुछ और रहा होगा।

आयोग ने ज़ाहिर की नाराज़गी

सुनवाई के दौरान राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह  ने नाराज होते हुए लोक सूचना अधिकारी बीके मिश्रा और अपीलकर्ता डॉ अजय शंकर दोनों को डांट लगाई। अपीलकर्ता ने जब कहा कि लोक सूचना अधिकारी का यह पहला मौका है उनके खिलाफ कारवाई ना करते हुए उनको माफ कर दिया जाए तो राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपीलकर्ता को कहा कि अगर उनकी इतनी ही सद्भावना है लोक सूचना अधिकारी के प्रति तो जुर्माने के ₹25000 वह खुद भर दे। इतना सुनते ही डॉ अजय शंकर ने हाथ खड़े कर दिए और कहा कि वह तो सिर्फ लोक सूचना अधिकारी के पक्ष में अपनी राय दे रहे थे।

आयोग ने अपीलकर्ता के शपथ पत्र को इन आधारों पर नकारा

राज्य सूचना आयोग ने इस मामले में कहा कि अगर अपीलकर्ता प्रकरण को समाप्त करने का फैसला सुनवाई सूचना पत्र जारी होने से पहले ले लेते तो ये अधिनियम के अनुरूप होता। अपीलकर्ता की मर्जी पर ही इस पुराने मामले में कार्रवाई की शुरुआत की गई तो उसके बाद अपीलकर्ता का पलटना अधिनियम के अनुरूप नहीं है वहीं अधिनियम में लोक सूचना अधिकारी को दंडित करने का प्रावधान धारा 20 में अपीलकर्ता की मर्जी पर नहीं निर्भर करता है। अधिनियम के उल्लंघन पर ही लोक सूचना अधिकारी को अनिवार्य  रूप से दंडित किया जाता है और ये व्यवस्था वैकल्पिक नहीं है। सिंह ने इस बात पर भी आपत्ति दर्ज कराई आदेश में कि अपीलकर्ता द्वारा जारी शपथ पत्र सीधे लोक सूचना अधिकारी के पास कैसे पहुंच गया। इससे साफ है कि दोनों में इस संबंध को लेकर के चर्चा हुई होगी और उसके बाद ही यह शपथ पत्र तैयार करके अपीलकर्ता द्वारा लोक सूचना अधिकारी को दिया होगा।

सोशल मीडिया पर बना चर्चा का मुद्दा 

इस आयोग की इस पूरी कार्रवाई का प्रसारण फेसबुक पेज पर भी हुआ। यहां पर ऑनलाइन दर्शकों ने राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह की कड़ी कार्यवाही की जमकर तारीफ की। सुनवाई के दौरान कई रोचक टिप्पणियां भी सामने आई है इसमें एक दर्शक ने यह लिखा कि इस तरह की फिक्सिंग से जो सही में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं उनको भी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। वहीं कई दर्शकों ने तो लोक सूचना अधिकारी और अपीलकर्ता के जवाब को देखते ही कह दिया कि यहां मामला कुछ और ही है।

 

25000 का ज़ुर्माना और सेवा पुस्तिका में इंट्री

राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने तहसीलदार बी के मिश्रा तहसील रघुराजनगर सतना के ऊपर ₹25000 का जुर्माना लगाकर 1 महीने के अंदर जुर्माने की राशि आयोग में जमा करवाने के निर्देश दिए हैं साथ ही श्री मिश्रा की सर्विस बुक में इस जुर्माने की टिप दर्ज करने के भी निर्देश दिए हैं। सिंह ने अपने आदेश में कहा यह फैसला उन लोक सूचना अधिकारी और अपीलकर्ता  के लिए चेतावनी है जो समझते हैं कि अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करके अपनी फिक्सिंग से सूचना आयोग की कार्रवाई को प्रभावित कर सकते हैं।