पत्रकारों को अपने सूत्र गुप्त रखने का प्राप्त है वैधानिक अधिकार!
भोपाल। वर्तमान परिदृश्य में पत्रकारिता जिस स्थिति से गुजर रही है उससे कोई अंजान नही है। देश भर में पत्रकार विरोधी मानसिकता का तेजी से बढ़ना पत्रकारिता के लिए अशुभ संकेत हैं। वर्तमान हालात को देखकर न्यायपालिका द्वारा पत्रकारों की आजादी पर चिंतन स्वयं इस बात का प्रमाण है कि पत्रकारिता इस दौर में भय के बीच अपने दायित्व का निर्वाहन कर रही है उसकी आवाज दबाई जा रही है उसका दोहन किया जा रहा ।सत्ता संगठन ,माफिया आदि द्वारा पत्रकारिता को कुचला जा रहा है। भले ही पत्रकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार बाकी नागरिकों की तरह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत ही मिले हैं। जिसका उपयोग कर पत्रकार बिरादरी लोक तंत्र के चौथे स्तम्भ के सिपाही के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करती आई है।लेकिन जिस प्रकार पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं वह चिंता का विषय हैं। ओर उनको प्राप्त संवैधानिक अधिकार अपना महत्व खोते जा रहे हैं।दुर्भाग्य का विषय है कि सरकारों के अनियमित आचरण का परिणाम है कि आज का पत्रकार असुरक्षा के बीच जीवन गुजार रहा है।
देश भर में पत्रकार उत्पीड़न की घटनाओं के थमने का कोई आधार नज़र नही आ रहा है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दर्जा रखने वाली पत्रकारिता हर मोर्चे पर उत्पीड़न की शिकार हो रही है।शासन सत्ता के टारगेट पर रहने वाले पत्रकार माफियाओं के निशाने पर हमेशा रहते हैं।प्रशासनिक तंत्र चाहे पुलिस हो या प्रशासन ताक में रहते हैं पत्रकार का उत्पीड़न करने के लिए। भय व आतंक के बीच अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करने वाला पत्रकार दूषित मानसिकता का शिकार हो रहा।
देश भर में पत्रकार समाज के प्रति माफिया,सफेद पोश अपराधियों,शासन सत्ता में बैठे जन प्रतिनिधि हैं या लोकसेवक हो ,सबकी टेडी नजर पत्रकार समाज पर हमेशा गड़ी रहती है। अपने ज़मीर को बैचकर पत्रकारिता करने वाले सुरक्षित रहते हैं परंतु सच उजागर करने वाले क्रांतिकारी पत्रकार हमेशा अपराधियों के टारगेट पर रहते है।
साथियों,आज का विषय पत्रकारों को प्राप्त एक अन्य शक्ति के उपयोग पर आधारित है। आप को मालूम हो कि
देश की कोई भी संस्था,व्यक्ति,संगठन चाहे वह शासकीय हो या अशासकीय किसी को भी यह अधिकार नही है कि कोई भी पत्रकार से उसकी सूचना,खबर के सूत्र पूछ सकते हैं।
ज्ञातव्य हो कि पत्रकारों को अपने सोर्स गुप्त रखने का अधिकार प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट 1978 में मिला हुआ है। एक्ट की धारा 15 (2) में साफ लिखा है कि किसी जर्नलिस्ट को खबर के सूत्र की जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह वही अधिकार है जो पत्रकार को अपने स्रोतो,सूत्रों की जानकारी गुप्त रखने की शक्ति प्रदान करता है।
क्या है कानून:
प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 की धारा 15(2),(2) उप-धारा (1) में कुछ भी किसी भी समाचार पत्र, समाचार एजेंसी, संपादक या पत्रकार को उस समाचार पत्र द्वारा प्रकाशित या उस समाचार एजेंसी, संपादक या पत्रकार द्वारा प्राप्त या रिपोर्ट की गई किसी भी समाचार या सूचना के स्रोत का खुलासा करने के लिए बाध्य नहीं माना जाएगा।
दुरांचल ,ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकार अधिकतर छोटे छोटे अधिकारी,कर्मचारियों के उत्पीड़न के शिकार होते हैं।उनके द्वारा अपने स्रोतों,सूत्रों के माध्यम से भ्रष्टाचार उजागर करने का प्रयास किया जाता है मगर उनको भ्रष्ट तंत्र द्वारा विवश किया जाता है कि वह मामले को दबाएं ,उजागर नही करें।यहां तक कि उन पर दबाव डाला जाता है। उन पत्रकारों को अपने स्रोतों,सूत्रों को उजागर करने पर तक विवश किया जाता है तो उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी साबित होगी कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट 1978 एक्ट की धारा 15 (2) के अनुसार किसी जर्नलिस्ट को खबर के सूत्र की जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह वही अधिकार है जो पत्रकार को अपने स्रोतो,सूत्रों की जानकारी गुप्त रखने की शक्ति प्रदान करता है।
सैयद खालिद कैस
संस्थापक अध्यक्ष
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट