पंकज शुक्ला, 9893699941
मप्र की 15 वीं विधानसभा के गठन के लिए हुए मतदान के नतीजे ऐसे होंगे किसी ने सोचा भी नहीं था। इतना कड़ा मुकाबला, इतनी मुश्किल विजय, कितने कांटें की टक्कर पहले कभी नहीं देखी गई। 15 साल की एंटीइंकम्बेंसी के चलते कांग्रेस को अपनी राह आसान लग रही थी। तभी तो प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने बहुत पहले दावा कर दिया था कि कांग्रेस 140 से अधिक सीट जीत रही है। लेकिन इतनी सीटों तक पहुंचना तो दूर सरकार बनाने के लिए आवश्यक अंक 116 तक पहुंचने में कांग्रेस का पसीना आ गया। दूसरी तरफ, भाजपा ने लक्ष्य 200 पार का रखा था मगर उसके लिए सरकार बचाना मुश्किल हो गया। ऐसे समय में जब कई मंत्रियों सहित दिग्गज नेता हार रहे हों तब भाजपा अपनी साख बचाने में कामयाब हुई है तो इसके पीछे का एक चेहरा है शिवराज सिंह चौहान का।
वन मेन आर्मी की तरह सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अधिकांश मंत्री हांफ-हांफ कर जीते हैं। दूसरी तरफ, भाजपा को यदि कुछ सीट खोने का गम है तो उसका कारण एट्रोसिटी एक्ट के कारण उपजा असंतोष है। इस विरोध के स्वर में शिवराज का ‘माई के लाल’ का मुहावरे वाला कथन चुनौती वाक्य बन गया। इस तरह, भाजपा की हार का कारण बनी कुछ सीट खोने का दोष शिवराज के माथे पर है। मगर, मालवा और विंध्य से खैवनहार की उम्मीद लगा कर बैठी कांग्रेस इन क्षेत्रों से निराश हुई है तो इसका कारण भी शिवराज ही होंगे। जन आशीर्वाद यात्रा,संबल योजना और उसके पहले पादुका वितरण जैसे कार्यक्रम के माध्यम से वे जनता के बीच पहुंचे। वे अकेले ऐसे नेता हैं जो चुनाव प्रकिया के दौरान 150 विधानसभा क्षेत्रों तक पहुंचे। भाजपा तो ठीक कांग्रेस का भी कोई नेता इतने क्षेत्रों में नहीं पहुंचा। यह संपर्क शिवराज की ताकत बना। अपनी इसी ताकत के सहारे उन्होंने 15 सालों की एंटीइंकम्बेंसी को मात दे दी। हालांकि, इस जीत में भाजपा और संघ की सांगठनिक क्षमता का भी सहयोग मिला। इसी कारण ये परिणाम मतदान के बाद की सारी धारणाओं, जातीय समीकरणों और आकलनों-कयासों को ध्वस्त करते नजर आ रहे हैं।
इन चुनाव परिणामों के बाद हार का जिम्मेदार शिवराज को ठहराया जा सकता है। मगर यह उनके लिए विशेषज्ञों द्वारा यह कहा जाना तमगे की तरह है कि मप्र में भाजपा को शिवराज के काम के कारण नहीं बल्कि केन्द्र की मोदी सरकार की जीएसटी, नोटबंदी और एट्रोसिटी एक्ट जैसी नीतियों के कारण हार का सामना करना पड़ा।
इन तमात बातों के बावजूद शिवराज ने जिस शिद्दत से चुनाव लड़ा तथा आक्रामक होते हुए भी भाषा के स्तर को बनाए रखा वह भाजपा के अन्य मुख्यमंत्रियों के लिए एक राजनीतिक सबक की तरह है। कांग्रेस के तमाम अपशब्दों का सामना शिवराज ने बेहद गरिमा से किया और जो विवाद छिछालेदारी तक पहुंच सकता था उसे राजनीतिक लाभ का साधन बना लिया। उनके इसी व्यवहार के कारण कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनावी सभा में शिवराज की प्रशंसा करते हुए कहा था कि शिवराज को तमीज से बात करना आता है, मोदी को तमीज से बात करना नहीं आता। प्रतिद्वंद्वियों का मखौल उड़ाती और निम्न भाषाई स्तर वाली राजनीति के इस दौर में शिवराज का यह व्यवहार एक राजनीति सबक ही तो है।