पंकज शुक्ला, 989369991
कांग्रेस में सुधार के हर कदम तथा हुड़दंग की हर घटना पर यही कहा जाता है कि यह तो पार्टी की परंपरा है। पार्टी का काम ऐसे ही चलता है। गुटबाजी ही पार्टी की ताकत है,आदि…। मगर अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव और प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया बेलगाम होती भीड़ को अनुशासित कार्यकर्ता के रूप में देखना चाहते हैं। अक्टूबर 2017 में मप्र का प्रभारी बनाए गए बावरिया पहले दौरे के बाद से अब तक कई बार पार्टी में अनुशासन की बात कर चुके हैं। अनुशासनहीनता पर वे सार्वजनिक रूप से पदाधिकारियों ही नहीं मंत्रियों को भी फटकार चुके हैं। मगर, कांग्रेस में बदलाव आता दिखाई नहीं दे रहा है। इसका कारण यह भी है बावरिया पार्टी की जिन बैठकों में अनुशासित कार्यकर्ता की उपस्थिति की उम्मीद कर रहे हैं उन बैठकों में चेहरा दिखाने वाली भीड़ आती है। जिसे पार्टी की रीति-नीति और रणनीतियों से मतलब नहीं होता। वे अपने नेता का चेहरा चमकाने की कवायद के चलते नारे लगाने के लिए जुटाए जाते हैं और अपना काम कर चले जाते हैं।
यह बात इसलिए कही जा रही कि लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार अपने भोपाल प्रवास के दौरान प्रदेश प्रभारी महासचिव बावरिया अनुशासनहीनता पर खुल कर बोले हैं। रविवार को भी वे बेवक्त के नारों से परेशान हो गए। केंद्र सरकार के खिलाफ कांग्रेस के धरना-प्रदर्शन के दौरान नाराज हुए बाबरिया ने कहा कि कुछ साथियों को नारेबाजी का बहुत शौक है। वे अपने नेता के लिए नारे लगाते हैं मगर नारेबाजी कर अपने नेता का मूल्य कम करते हैं। मैं कमलनाथ जी से निवेदन करूँगा एक नारेबाजी सेल बना दें। वहां जाकर खूब नारेबाजी करें। अपने-अपने नेताओं के पक्ष में नारे लगा कर प्रतिस्पर्धा करें। नंबर वन आनेवालों को ईनाम देंगे लेकिन पार्टी के कार्यक्रमो में और मीटिंग में नारेबाजी नहीं करें।
बावरिया का यह कहना एकदम सही है कि बेलगाम नारेबाजी की होड़ पार्टी को कमजोर करती है। एक दिन पहले उन्होंने मंच से मंत्रियों को फटकारा था। उन्होंने बड़े नेताओं के बयानों का विरोध करने वालों तथा कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने वालों को भी आड़े हाथों लिया था। इस कहे का चाहे जो परिणाम हो लेकिन तात्कालिक रूप से कार्यकर्ताओं ने बावरिया की बात से सहमति जताई कि मंत्री-विधायक उनकी नहीं सुन रहे हैं। कार्यकर्ताओं ने ऐसी सरकार तो नहीं चाही थी। नेता भी खुश हैं कि बावरिया ने अपनी शैली के अनुसार पार्टी के बिखराव को रोकने का जतन तो किया।
कांग्रेस में हुड़दंग रुकना कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि यह पार्टी यूं ही चलती है। सत्ता में रहते हुए ऐसी अनुशासनहीनता को बर्दाश्त किया जा सकता है मगर जब देश में आप विपक्षी दल हों और आधार लगातार कमजोर हो रहा हो तब एक अनुशासित संगठन की जरूरत होती है। कांग्रेस में ऐसा संगठन तैयार करने के लिए बावरिया द्वारा दी गई सलाहों को मानना होगा। लेकिन यह तो वे भी जानते हैं कि केवल कहने से कुछ नहीं होता। यह बदलाव तो तब ही संभव है जब नेता खुद चाहें। नेताओं की ताकत दिखाने के लिए समर्थक भीड़ के रूप में जुटते हैं। इसलिए नेता चाहेंगे तो कार्यकर्ताओं की नारेबाजी रुक सकती हैं। अन्यथा तो शक्ति प्रदर्शन का खेल जारी रहेगा और हुड़दंग भी।