पत्रकार समाज को ठगते कथित पत्रकार संगठन

भोपाल। गत दिनों सम्पूर्ण प्रदेश में हो हल्ले के बाद अपने आपको राष्ट्रीय संगठन कहने वाले एक पत्रकार संगठन ने मध्यप्रदेश जनसंपर्क संचालनालय पर शक्ति प्रदर्शन के बाद आयुक्त को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन सौंपकर इतिश्री करने की इस महिमा से पूर्व उसी संगठन के एक और मुखिया ने सोशल मीडिया पर अपना पक्ष रखकर आंदोलन करने वाले मुखिया पर चरित्र चित्रण किया ,आरोप लगाए यहां तक के उसको तथा उसके संगठन को फर्जी तक घोषित कर दिया। हकीकत क्या है इससे हमे सरोकार नहीं है। यहां मुद्दा उठता है तो पत्रकार कल्याण,पत्रकार सुरक्षा तथा पत्रकार हित के लिए संगठन की भूमिका।

 

प्रदेश भर में हजारों छोड़े बड़े पत्रकार संगठन मौजूद हैं जो अपने अपने स्तर पर पत्रकारों की आवाज उठाने के नाम पर अपनी भूमिका का निर्वाहन करते रहे हैं। जिनमे से कुछ संगठन राष्ट्रीय स्तर के होकर विगत 34/40 या यह कहो की 50/55साल से प्रदेश में पत्रकार समाज का नेतृत्व कर रहे हैं।जिनके हजारों,लाखों सदस्य भी हैं,जिनकी पहुंच सरकार तक भी है।जिनके मुखिया वर्षो से सरकार से मलाई हासिल करते आए हैं या आर्थिक रूप से लाभ हासिल करते आए हैं परंतु इस सब के बावजूद आजादी के 75साल बाद भी उन संगठनों द्वारा प्रदेश के पत्रकारों को सुरक्षित करने के लिए प्रदेश में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू नहीं करा पाना इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि इन मठाधीशों को पत्रकार हित से अधिक व्यक्तिगत हित का ध्यान अधिक था।तभी तो वर्षो से ठगा जा रहा पत्रकार समाज आज भी खाली हाथ है।

 

प्रदेश सरकार की लघु समाचार पत्र पत्रिकाओं के मालिकों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान का परिणाम है कि प्रदेश में पत्रकार समाज का एक बहुत बड़ा तबका आज जनसंपर्क की दमनकारी नीति का शिकार हो रहा है। पत्रकार संगठन के मठाधीश इन्ही मुद्दो पर पत्रकार समाज को बरगला कर अपने हित साधते हुए शक्ति प्रदर्शन करते हैं और हर बार पत्रकार बिरादरी को ठगते हैं। पत्रकारों की समस्याएं जस की तस रहती हैं ,लाभ उठा जाते हैं मठाधीश।

 

पत्रकारों के दमन का एक मूल कारण यह भी है कि पत्रकार संगठन तथा उनके कथित मठाधीशों के दागदार दामन तथा संगठनों में अलग अलग मुखियाओ की मौजूदगी और उस पर उसकी नूरा कुश्ती के कारण पत्रकार समाज बिखरे हुए परिवार की तरह रहता है जिसकी कोई नही सुनता ।सरकार सिर्फ मठाधीशों के चेहरे और उनके शक्ति प्रदर्शन के बाद उनके बढ़ते कद को गिनता है ,सेनापति को देखता है सेना को देखता है सेना की संख्या बल को देखता है परंतु लाभ केवल और केवल मुखिया को मिलता है सेना फिर ठगी जाती है। इन कथित पत्रकार संगठनों को पत्रकारों की समस्याओं से अधिक अपनी शक्ति का प्रदर्शन तथा हित साधने की चिंता होती है जिसमे वह हमेशा कामयाब होते हैं और ठगा जाता है पत्रकार समाज।।।

 

सैयद खालिद कैस 

संस्थापक अध्यक्ष प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट