असुरक्षित होता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ
- सैयद खालिद कैस
- संस्थापक अध्यक्ष
- प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट
पत्रकारिता जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है, हमारे लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण संस्था है।जो यह सुनिश्चित करता है कि नागरिक भारत के संविधान के तहत प्रदान किए गए किसी भी भय के बिना स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने में सक्षम हैं। पत्रकारिता को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर देखा जाता है यानी की प्रेस की आजादी मौलिक अधिकार के अंतर्गत आती है। यही वह अधिकार है जिसके माध्यम से पत्रकार बिरादरी समाज के बीच अपना पक्ष रखता है,सत्ता ओर सरकार को उनकी नीतियों में व्याप्त विसंगति से अवगत कराता है।
पत्रकार सुरक्षा कानून संबंधी जानकारी मांगे जाने पर भारत सरकार गृह मंत्रालय द्वारा अवगत कराया गया कि केंद्र सरकार पत्रकार सुरक्षा कानून संबंधी कोई कदम नहीं उठा सकता क्योंकि पत्रकारों की सुरक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने का राज्य का कर्तव्य ही पत्रकारिता रूपी चौथा स्तंभ को इस महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। राज्यों को खतरे की धारणा के आधार पर व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार है ।अर्थात केंद्र सरकार इस संबंध में कोई कानून नहीं बना सकता है।
भारत सरकार गृह मंत्रालय द्वारा यह भी अवगत कराया गया कि जबकि ‘पुलिस’ और ‘लोक व्यवस्था’ भारत के संविधान की अनुसूची के तहत राज्य-विषय है, इसके महत्व को देखते हुए, राज्य सरकार अपराध की रोकथाम और नियंत्रण के लिए एक मजबूत आपराधिक न्याय प्रणाली को निर्मित कर सकती है।
भारत सरकार गृह मंत्रालय द्वारा दिनांक 20 अक्टूबर, 2017 को जारी अधिसूचना के माध्यम से प्रादेशिक सरकार सहित केंद्र शासित राज्य सरकारों को निर्देशित करते हुए कहा था कि समय-समय पर मीडिया में रिपोर्ट किए गए पत्रकारों/मीडियाकर्मियों पर हमले की घटनाएं चिंतनीय हैं। ऐसे सभी मामलों की सरकारों को तुरंत जांच की जानी चाहिए ताकि अपराधियों पर समयबद्ध तरीके से मुकदमा चलाया जा सके। राज्यों को आवश्यकतानुसार सभी निवारक और निवारक कार्रवाई करनी चाहिए। राज्यों को खतरे की धारणा के आधार पर व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार है।
परंतु दुर्भाग्य का विषय है कि केंद्र सरकार द्वारा जारी 2017की अधिसूचना का आज तक पूर्ण रूप से पालन नहीं हो रहा है। संविधान द्वारा प्रदत्त शक्ति का उपयोग कर प्रादेशिक सरकारें अपने अपने राज्यों में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू कर सकती है।परंतु वास्तविकता की धरा पर यदि हम देखें तो गिने चुने राज्यों के अलावा प्रादेशिक सरकारों द्वारा पत्रकार सुरक्षा कानून के प्रति कोई रुचि नहीं ली गई।फलस्वरूप पत्रकारों का शोषण,उनके बीच असुरक्षा की भावना,हमले ,झूठे मुकदमे दर्ज होना वर्तमान समय में आम बात है।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग कर अपनी लेखनी से भ्रष्टाचार,घोटाले उजागर करने वाले पत्रकार देश की आजादी के 75वर्ष बाद भी कभी राजनीतिक दलों के,कभी शासन प्रशासन ,पुलिस,माफिया के टारगेट पर रहकर अपने जीवन को खतरों में डालते हैं। देश भर में हजारों पत्रकारों पर हर वर्ष झूठे मुकदमे दर्ज होना,प्रताड़ित किए जाने की घटनाओं का घटित होना प्राय: आम बात हो गई है। सरकारों की ओर से पत्रकार सुरक्षा तथा उनके कल्याण के प्रति उदासीनता चिंतनीय है। मगर दुर्भाग्य का विषय है घटनाओं पर अंकुश लगाने के स्थान पर पुलिस प्रशासन पक्षपातपूर्ण कार्यवाही का दोषी साबित होता है।