पुलिस आयुक्त प्रणाली में व्याप्त विसंगतियॉ पूरी व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा रही है
भोपाल।मध्यप्रदेश शासन ने वर्षो पुरानी पुलिस आयुक्त प्रणाली को जिस प्रकार अस्तित्व में लाकर भोपाल एंव इंदौर मे अचानक थोपा थापी की उसके परिणाम सामने आने लगे हैं । 09 दिसम्बर 2021 को एक अधिसूचना के माध्यम से भोपाल /इदौर को न सिर्फ नगरीय पुलिस व्यवस्था का गठन किया उसकी प्रक्रिया अवैधानिक थी। परन्तू सरकारी फरमान के आगे सब नत्मस्तक हो गये। परन्तू उसके परिणाम अब जनसामान्य के सामने आने लगे है। अपर मुख्य सचिव श्री राजेश राजौरा द्वारा हस्ताक्षरित उक्त अधिसूचना के प्रथम द्वितीय एंव तृतीय भाग में विभक्त करते हूए सरकार ने खामौशी से भोपाल /इंदौर को जहॉं महानगर घोषित कर दिया वहीं दूसरी अधिसूचना में नगरीय पुलिस व्यवस्था के तहत पुलिस कमिश्नर प्रणाली को घोषित किया। भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 20 एंव 21 में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हूए जारी की गई इन अधिसूचनाऔं के माध्यम से सरकार ने विशेष कार्यपालिक दण्डाधिकारी नियुक्त करते हूए पूर्व से नियुक्त कार्यपालिक दण्डाधिकारी अर्थात एस.डी.एम/तहसीलदार/अति.तहसीलदार/नायब तहसीलदार को प्रदत्त शक्तियॉं छीन ली गई है। वहीं कलेक्टर एंव अपर कलेक्टर को प्रदत्त शक्तियॉं भी छीनने का प्रयास किया गया है।
मध्यप्रदेश शासन गृह विभाग मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल की अधिसूचनाऐं –
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अधिसूचना क्रमांक –(1) एफ-74 1/2021/बी-2/दो दिनॉक 09/12/2021
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अधिसूचना क्रमांक –(2) एफ-74 2/2021/बी-2/दो दिनॉक 09/12/2021
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अधिसूचना क्रमांक –(3) एफ-74 3/2021/बी-2/दो दिनॉक 09/12/2021
के आधार पर पुलिस के कामकाज हेतू भोपालध्इंदौर नगरीय पुलिस जिले का गठन सहित महागनर /मैट्रोपोलिटन क्षेत्र घौषित करने का निर्णय विधि के सुसंगत सिद्धान्तों के विपरीत है।
उक्त अधिसूचनाऔ के माध्यम से दोनों जिलों में नगरीय पुलिस कमिश्नर प्रणाली का क्रियान्वयन निरन्तर जारी है। भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 20 एंव 21 के तहत विशेष कार्यपालिक मजिस्ट्रेट की शक्तियॉं को जिस प्रकार पुलिस में प्रत्यायोजित किया गया है वह वैधानिक प्रक्रिया के विपरीत है। उक्त अधिसूचित अधिसूचनाऔं के माध्यम से अपर मुख्य सचिव गृह विभाग द्वारा पुलिस अधिनियम 1861 की धारा 2 संहित दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 20 एंव 21 के अधीन शक्तियों का उपयोग करते हूए संहिता की धारा 58 ,106 से 124, 129 से 132 धारा 144 तथा 144क के अधीन शक्तियों को पुलिस अधिकारियों में विभक्त किया है प्रत्योयोजित किया गया है।
परन्तू मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा 1990 सहित एन एस ए 1980 का उल्लेख उक्त अधिसूचना में नही होने के आधार पर उक्त अधिनियमों का उपयोग पुलिस कमिश्नर भोपान इंदौर को नही करना चाहिये परन्तू समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की विभिन्न धाराऔं की भांति अब पुलिस कमिश्नर उक्त विधानों को भी अपनी शक्तियों में समाहित करके संचालन करने वाले हैं या यह कहें उपयोग कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में यह अवगत कराना नितांत आवश्यक हो गया है कि उक्त दोनों विधान अव्वल तो अधिसूचित नही होने के आधार पर पुलिस उपयोग नही कर सकती है ओर यदि मान भी लिया जाये कि अधिसूचना के माध्यम से उनको अधिकार प्रदत्त किया जा चुका है तो यह बताना आवश्ययक होगा कि उकत विधान केवल अधिसूचना के माध्यम से प्रत्यायोजित नही किये जा सकते हैंः.
मध्यप्रदेश राज्य सूरक्षा अधिनियम 1990
धारा .29 राज्य सरकार की शक्तियों तथा कर्त्तव्यों का प्रत्यायोजन.राज्य सरकार आदेश द्वारा यह निर्देश दे सकेगी कि वह धारा 21 के अधीन सामूहिक अधिरोपित करने की ओर धारा 30 के अधीन नियम बनाने की शक्ति को छोड़कर किसी भी ऐसी शक्ति या कर्त्तव्य काए जो इस अधिनियम द्वारा राज्य सरकार को प्रदत्त की गई या उस पर अधिरोपित किया गया हैए प्रयोग तथा निर्वहन ऐसी शर्तो यदि कोई होए जैसी कि उस निर्देश में विनिर्दिष्ट की जाए के अध्यधीन रहते हुएए उसके अधीनस्थ किसी ऐसे अधिकारी द्वारा किया जाएगा जो जिला मजिस्ट्रेट की पदश्रेणी से निम्न पद श्रेणी का न हो
शक्तियों का प्रत्यायोजन उचित नही. मण्प्रण्राज्य सुरक्षा अधिनियम 1990 की धरा 3 ओर 5 के अनुसार अधिनियम के अधीन प्रदत्त शक्तियॉं जिला मजिस्ट्रेट में निहित की गई है।अतः ऐसे शक्तियों का प्रयोग मात्र जिला मजिस्ट्र्रेट के द्वारा ही किया जाना चाहिऐ। ऐसी शक्तियों को जिला मजिस्ट्र्रेट अथवा राज्य सरकार द्वारा अपने किसी अधीनस्थ को प्रत्यायोजित नही किया जा सकता है। अरविन्द शर्मा बनाम म0प्र0राज्य 2013 (3)MPWN-109 , रतिचन्द उर्फ रददू जैन बनाम म0प्र0राज्य व अन्य 2010(3)MPWN-52=2010(94) MPHT60
प्रक्रिया का परिपालन न्यायसंगत नही
यहॉं विदित हो कि वर्ष 2003 में एक अधिसूचना के माध्यम से मध्यप्रदेश सरकार ने संभागीय जिलों में कलेक्टर के स्थान पर अपर कलेक्टर मध्यप्रदेश राज्य सूरक्षा अधिनियम 1990 के अधीन शक्तियॉं प्रदान की गई थी।
जिसके विरूद्ध माननीय उच्च न्यायलय द्वारा रतिचन्द उर्फ रददू जैन बनाम म0प्र0राज्य व अन्य 2010(3)MPWN-52=2010(94) MPHT60 में अवधारित किया था कि राज्य सरकार किसी अधिसूचना के माध्यम से कलेक्टर एंव जिला दण्डाधिकारी को उक्त अधिनियम में प्रदत्त शक्तियों को प्रत्यायोजित नही कर सकती है। जिसका अनुपालन नही करने पर पुनः अरविन्द शर्मा बनाम म0प्र0राज्य 2013 (3)MPWN-109 में माननीय उच्च न्यायालय ने अपने निर्णयों को राज्य सरकार द्वारा नही मानने पर रूपये 5000/ के अर्थदण्ड से अधिरोपित भी किया था। मध्यप्रदेश शासन गृह सी विभाग मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल की अधिसूचना क्रमांक अधिसूचना क्रमांक /एफ 35-167/2017/दो/सी-1 भोपाल दिनॉक 17/09/2018 के आधार पर राज्य शासन द्वारा गृह विभाग अधिसूचना क्रमाक एफ 35-116-2001-सी-एक 05 दिनॉक 05/03/2003 सहित गृह विभाग अधिसूचना क्रमाक एफ 35-117-2017-सी-एक दिनॉक 06/09/2018 को निरस्त करते हूए मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा अधिनियम 1990 की शक्तियॉं कलेक्टर को पुनः प्रदत्त किया था।
इस प्रकार मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा अधिनियम 1990 में कलेक्टर एंव जिला दण्डाधिकारी को प्रदत्त शक्तियों को केवल एक अधिसूचना के माध्यम से पुलिस कमिश्नर को प्रत्यायोजित किया जाना न्यायसंगत नही है तथा माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर मध्यप्रदेश के निर्णयों की अवहेलना की श्रेणी में आयेगा। माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा पारित निर्णयों के प्रकाश में अधिनियम की धारा 29 में उल्लेखित शक्तियों का प्रत्यायोजन या संशोधन केवल विधान सभा पटल पर संशोधन से पृथक न्यायसंगत नही होगा।जिला बदर आदेश को विज्ञापन के भांति समाचार पत्रों में प्रकाशित कराना भी हास्यास्पद
गत दिनों भोपाल पुलिस आयुक्त द्वारा अपने न्यायालय से पहला जिला बदर आदेश पारित किया। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि उक्त आदेश को जिस प्रकार समाचार पत्र में जनसंपर्क संचालनालय के माध्यम से हजारों रूपये खर्च करके विज्ञापनों के रूप में प्रकाशित कराया उससे यह साबित कराने का प्रयास किया गया कि इससे पूर्व किसी भी न्यायालय से कोई जिला बदर आदेश पारित नही हुआ। दूसरा आश्चर्य इस बात का हुआ कि श्रीमान पुलिस आयुक्त महोदय भोपाल ने अपने पारित आदेश में जिस अधिसूचना का हवाला दिया वह उनको दण्ड प्रक्रिया संहिता 197 की धारा 20 एंव 21 में प्रदत्त शक्तियां है जो कि मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा अधिनियम 1990 के तहत जिला बदर करने के न तो अधिकार प्रदान करता है ओर न ही शक्ति प्रदान करता हैं। इस प्रकार प्रथम दृष्टि में पुलिस आयुक्त भोपाल के द्वारा पारित आदेश शुन्य है। इस संबंध में राजस्व अधिवक्ता कल्याण परिषद मध्यप्रदेश पंजीकृत द्वारा मुख्य सचिव मध्यप्रदेश शासन सहित अपर मुख्य सचिव गृह को लिखित ज्ञापन के माध्यम से अवगत कराया कि उक्त प्रक्रिया अवैधानिक है तथा जिसका कोई वैधानिक अस्तित्व ही नही है।
@सैयद खालिद कैस एडवोकेट
MA.CAFE.CHR.CRD.LL.B ADVOCATE
प्रदेशध्यक्ष राजस्व अधिवक्ता कल्याण परिषद मध्यप्रदेश पंजीकृत