भारत में पत्रकारिता को स्वतंत्र कहना बेमानी
(विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस 03 मई 2022 पर विशेष)
भोपाल। संपूर्ण भारत में निष्पक्ष,स्वच्छ और स्वतंत्र पत्रकारिता पर मानो ग्रहण लग गया है। देश भर में पत्रकारों पर हमले, सच लिखने, बोलने वाले पत्रकारों पर मुकदमें दर्ज होना अब आम हो गया है। निष्पक्ष पत्रकारिता के स्थान पर चाटुकारिता जिसे गोदी मीडिया के नाम से जाना पहचाना जाता है का बोलबाला है। ऐसे में आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारतीय पत्रकारिता को स्वतन्त्र कहना बेमानी लगता है।
गत दिनों जब देश के उपराष्ट्रपति ने जवाबदेह मीडिया कवरेज का आह्वान किया तो मुझे यह उपहास लगा। माननीय उप राष्ट्रपति जी भलीभांति जानते पहचानते हैं कि वर्तमान परिदृश्य में यदि मीडिया जवाबदेही के साथ कवरेज करती है तो उसे यू ए पी ए कानून का सामना करना पड़ता है। अभी ज्यादा समय नहीं गुजरा जब त्रिपुरा में हुए दंगे की रिपोर्ट उजागर करने वाले अधिवक्ताओं और पत्रकारों को किस प्रकार प्रताड़ित किया गया। क्रांतिकारी पत्रकार श्याम मीरा सिंह का क्या दोष था, केवल ट्वीटर पर यही तो लिखा था कि”त्रिपुरा जल रहा है” और उन पर यू ए पी ए लगाया गया था। धन्य हो सर्वोच्च न्यायालय जिसने लाज रख ली, अन्यथा त्रिपुरा सरकार के नंगे नाच ने पत्रकारिता की अस्मिता को तार-तार कर दिया था।
उपराष्ट्रपति के खबरों को सनसनीखेज बनाने की बढ़ती प्रवृत्ति के बारे में चिंता जाहिर करना कितना सार्थक?
गत दिनों ऑल इंडिया रेडियो एफएम स्टेशन नेल्लोर में 10 किलोवाट एफएम संचालन के लिए 100 मीटर ऊंची टॉवर का उद्घाटन के समय उपराष्ट्रपति जी ने खबरों को सनसनीखेज बनाने की बढ़ती प्रवृत्ति के बारे में चिंता जाहिर की। उनका यह बयान ऐसे समय में आया जब देश की गोदी मीडिया के शत प्रतिशत समाचार चैनल झूठी, तथ्यहीन खबरों को सनसनीखेज बनाकर टी आर पी बना रहे है। सच्चाई से कोसो दूर इन चैनलों से प्रसारित खबरें देश के सांप्रदायिक सौहार्द को तहस नहस करने पर आमादा रहते है। निसंदेह उपराष्ट्रपति महोदय की चिंता जायज है।लेकिन वर्तमान परिदृश्य में उनकी चिंता कोई मोल नहीं रखती वह स्वयं इस बात से चिर-परिचित हैं वह अपने मन की बात कह जरूर रहे हैं लेकिन समय मुनासिब नहीं है।एक समय वह था जब पत्रकारिता शासन सत्ता की कमियों को उजागर करके जनता जनार्दन का ज्ञान वर्धन करती थी एक यह समय है जब पत्रकारिता सत्ता की चाटुकारिता को भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझती है।
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जब उस कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति महोदय द्वारा कहा गया कि प्रेस की आजादी लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है। बेशक प्रेस की आजादी लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है।लेकिन क्या वर्तमान समय में प्रेस की आजादी और सच्चा लोकतंत्र जीवित बचा है। यदि चिंतन मनन किया जाए तो लोकतंत्र के हर स्तंभ की हालत खस्ता है। कार्यपालिका मुक बधिर् है, व्यवस्थापिका नियंत्रण मुक्त है, न्यायपालिका का अस्तित्व और विश्वसनीयता पर लगातार प्रहार हो रहे हैं और रहा चौथा स्तंभ जिसे किसी ज़माने में जनता की आवाज कहा जाता था वह लाचार, सहमा हुआ कारपोरेट जगत के नियंत्रण में भय और आतंक के बीच अंतिम सांसे ले रहा है। मुठ्ठी भर जिम्मेदार पत्रकारों की मौजूदगी और उनके कर्तव्य परायणता का परिणाम है कि जनता की आवाज ओर सच्चाई का आईना सत्ता और शासन तक पहुंचता है। यह और बात है कि गिद्ध दृष्टि वाले सत्ता नशीन उनको परेशान करते रहते हैं लेकिन वह सबको नजर अंदाज कर अपने दायित्वों का निर्वाहन बखूबी करते हैं।देश भर में सैकड़ों पत्रकार सरकारों की सच्चाई उजागर करने के फलस्वरूप देश भर की जेलों में सड़ रहे हैं मगर सत्ता नशीनो के आगे नत मस्तक नही हो रहे हैं। सलाम उनके जज्बे को, सलाम उनकी हिम्मत को जो असुरों से निरंतर लड़ रहे हैं।
देश में पत्रकारिता के गिरते स्तर और वर्तमान पत्रकारिता पर गत दिनों पेशेवर करिअर की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में करने वाले चीफ जस्टिस एनवी रमना ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि पूर्व में हमने घोटालों और कदाचार को लेकर अख़बारों की रिपोर्ट देखी हैं, जिनसे हलचल पैदा हुई हैं, लेकिन हाल के सालों में बेमुश्किल एक या दो को छोड़कर इस तरह की कोई खोजी रिपोर्ट याद नहीं आती। उनका इशारा चाटुकार पत्रकारिता की ओर था और साथ ही साथ असल पत्रकारिता के दोहन की ओर था।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अर्थात प्रेस की आजादी जो कि मौलिक अधिकार के अर्न्तगत आते हैं जिसका वर्तमान संदर्भ में शासन,सत्ता ओर पुलिस द्वारा उपयोग नही किया जा रहा है। सरकारों द्वारा कई बार अधिसूचनाओं को जारी कर पत्रकारो की सुरक्षा के निर्देश देती हैं । परन्तु उसके बावजूद पत्रकार असुरक्षा की भावना के साथ अपने कर्त्तव्यों का निर्वाहन कर रहे हैं।
भारत सरकार गृह मंत्रालय एडवाजरी दिनॉक 01/04/2010 सहित भारत सरकार गृह मंत्रालय परिपत्र क्रमांक 24013/46/ एमआईएससी/2013 सीआरसी-3 नई दिल्ली दिनाँक 20/10/2017 द्वारा समस्त राज्यों सहित केन्द्र शासित प्रदेशों को एडवाजरी के माध्यम से पत्रकार सुरक्षा का प्रावधान किया गया है। लेकिन दुर्भाग्य का विषय है कि भारत वर्ष में न तो गाइडलाइन का अनुपालन होता है और न उसके प्रति कोई जवाबदेही निर्धारित की जाती है।
आज हम प्रेस स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं उसका अर्थ बेमानी है मध्यप्रदेश के सीधी की घटना हो या उत्तर प्रदेश के बलिया की घटना हर जगह पत्रकारों को शोषण और पत्रकारिता का दोहन हो रहा है।ऐसे विकट समय में वर्तमान पत्रकारिता को स्वतन्त्र कहना निराधार होगा।
सैयद खालिद कैस संस्थापक अध्यक्ष प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट