कोई वस्तु बेचना अपराध नहीं है तो खरीदना अपराध कैसे हो सकता है..? एक ज्वलंतशील सवाल।
डॉक्टर सैय्यद खालिद कैस एडवोकेट लेखक, पत्रकार,आलोचक, विचारक
गत दिनों मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पुलिस मुख्यालय की महिला सुरक्षा शाखा द्वारा एक परिपत्र जारी कर पुलिस आयुक्त भोपाल/इंदौर सहित समस्त जिला पुलिस अधीक्षक, समस्त रेल पुलिस अधीक्षक को निर्देशित किया गया है कि देह व्यापार करने वाली महिला को अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 के अपराध में आरोपी न बनाए। परिपत्र जारी होने के बाद पूरे प्रदेश में इसकी चर्चा आम हो गई। परिपत्र में निर्देशित करते हुए कहा गया है कि प्रायः देखने में आ रहा है कि कुछ जिलों द्वारा अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम के तहत पंजीबद्ध अपराध में होटल एवं ढाबों के संचालकों द्वारा पैसा लेकर होटल एवं ढाबों के कमरों को, वैश्यालय के रूप में चलाया जा रहा है। उनके विरुद्ध की जा रही कार्यवाही में सेक्स वर्कर्स को आरोपी न बनाया जाए। पुलिस मुख्यालय का यह आदेश पक्षपात पूर्ण होने से हजम नहीं हो रहा है ।
पुलिस मुख्यालय से जारी इस परिपत्र में देह व्यापार करने वाली महिला को पीड़ित, शोषित नाम से पुकारा गया है वहीं होटल ढाबों में देह व्यापार कराने को वेश्यालय के नाम से संबोधित किया गया है और इस व्यापार में शामिल पुरुष व्यक्ति को अपराधी।
गौरतलब हो कि पुलिस विभाग ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय की क्रिमिनल अपील कंमाक 135/2010 “बुद्धदेव कर्मास्कर विरूद्ध पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य” में पारित आदेश के हवाले से कहा कि देह व्यापार में संलिप्त महिलाओं को पुलिस द्वारा जब होटल ढाबों में देह व्यापार पर पकड़ा जाता है उनको आरोपी न बनाया जाए क्योंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैश्यालयों पर दबिश की दशा में देह व्यापार करने वाली महिला के स्वैच्छिक लैंगिक कार्य को अवैध नहीं माना है। उक्त निर्णय में वैश्यालय में पकड़ी गई महिला या सेक्स वर्कर को गिरफ्तार करने, दंडित अथवा परेशान करने पर रोक लगाई है।
इस परिपत्र के द्वारा पुलिस मुख्यालय ने महिला सेक्स वर्कर के साथ संवेदनशीलता और सहानुभूति से पेश आने के निर्देश भी दिए हैं।इस दिशा में पुलिस अधिकारियों को कठोर अनुपालन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि किसी भी महिला सेक्स वर्कर के अधिकारों का उल्लंघन न हो। साथ ही, पुलिस को यह भी ध्यान रखने को कहा गया है कि महिला सेक्स वर्कर के साथ संवेदनशीलता और सहानुभूति से पेश आया जाए। इस फैसले के साथ, राज्य पुलिस अब उन महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और सहानुभूतिपूर्ण वातावरण बनाने के लिए तैयार है, जो कभी कानून के शिकंजे में फंस जाती थीं।
अब सवाल यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में स्वैच्छिक देह व्यापार अवैध नहीं है।होटल एवं ढाबों में देहव्यापार कर रही महिलाओं को आरोपी नहीं बनाया जा सकता लेकिन होटल एवं ढाबों पर छापेमार कारवाही पर होटल एवं ढाबों के संचालकों पर मुकदमा दर्ज होना न्यायसंगत कैसे हुआ। जब महिला द्वारा देहव्यापार करना स्वैच्छिक होने पर अपराध नहीं माना जाएगा तो होटल ढाबा संचालक ओर ग्राहक पर अपराध की कायमी को न्यायसंगत कैसे माना जा सकता। होटल ढाबा संचालक कोई बलपूवर्क तो उनसे अनैतिक कार्य कराता नहीं। जैसे उनकी स्वेच्छा से वह जिस्म फरोशी के लिए स्वतंत्र है तो होटल ढाबा संचालक या उन महिलाओं के साथ पकड़े गए व्यक्ति पर अपराध की कायमी क्या संविधान विरोधी नहीं होगी।
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय पर अब तक हस्तक्षेप नहीं होने से उस पर टिप्पणी न्यायसंगत नहीं होगी लेकिन पुलिसिया कार्यवाही अवश्य ही प्रश्न चिन्ह लगा रही है। माननीय सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश की आड़ में कहीं न कहीं देह व्यापार को संरक्षण मिलता है और समाज में गंदगी बढ़ रही है। देह व्यापार में संलिप्त महिलाओं को केवल इस आधार पर मुक्त रखा जाए क्योंकि वह देह व्यापार की स्वैच्छिक रूप से अपना पेशा बनाए हैं तो समाज पर विपरीत प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता। बेशक सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्कर्स के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए यह निर्णय पारित किया था लेकिन उसका यह अर्थ कदापि नहीं था कि देह व्यापार को संरक्षण मिले या उसकी आड़ में अपराध को बढ़ावा हो।
इस सब व्यवस्था के बीच अब सवाल यह उठता है कि यदि कोई वस्तु बेचना अपराध नहीं है तो खरीदना अपराध कैसे हो सकता है..?…व्यापार की अवधारणा ही खरीदी और बेची की व्यवस्था है…? लिहाज़ा अगर देहव्यापार में लिप्त महिला को आरोपी नहीं बनाया जा सकता तो देह खरीदने वाले पुरुष को भी आरोपी नहीं बनाया जाना चाहिए…वैसे भी भारत में देह व्यापार को दुनिया का सबसे पुराना व्यापार समझा जाता है। यह एक ज्वलंतशील विषय है जिस पर चर्चा भी ज़रूरी है और कोई ठोस कार्यवाही भी। भारतीय संविधान ने सबको बराबरी का दर्जा दिया है। ऐसे में देह व्यापार में संलिप्त महिलाओं को इस लिए संरक्षण दिया जाए क्योंकि वह स्वैच्छिक रूप से अपने कार्य को कर रही हैं अपराध न माना जाए लेकिन उसके स्वैच्छिक रूप से किए कार्य में शामिल पुरुष व्यक्ति को अपराधी बनाया जाना न्यायसंगत नहीं है।बेशक हमारे देश में पुरातन काल से देह व्यापार का चलन रहा है लेकिन पक्षपात न्यायसंगत नहीं। यह एक विचारणीय प्रश्न है।