राजगढ़/नरसिंहगढ़
मत्स्य उद्योग यह योजना उन लोगों के लिए थी जो वंशानुगत मछुआ है या जो मछली पाल कर या मछली बेच कर अपना धंधा कर रहे हैं लेकिन मामला किसी और दिशा की तरफ रुख कर रहा है जबकि वंशानुगत मछुआरों की संख्या जिले में भरपूर है लेकिन फिर भी वंशानुगत मछुआरों या मछली पालन धंधा करने वालों को एक तरफ पीछे धकेल ते हुए सामान्य वर्ग के लोगों को तालाब के पट्टे आवंटित किए गए वहीं अगर वंशानुगत मछुआरों की बात की जाए तो यह पट्टे दबंगों को मिले जिनके पास पहले से ही अपनी जिंदगी चलाने के भरपूर साधन थे उन व्यक्तियों को एक नहीं बल्कि कई तालाब मिले फर्जी समितियां बनाई गई फर्जी ऑडिट हुए फर्जी तरीके से बैठक बुलाई गई सब कागजों में निर्धारित हुआ ऐसे में उन गरीब लोगों का हक ऐसे लोगों ने मारा जो अपनी जिंदगी चलाने में सक्षम हैं या अमीर है या सामान्य वर्ग में आते हैं जो मछुआ या मछली पालन का धंधा नहीं करते तो ऐसे में यह धंधा आखिर कौन चला रहे हैं आखिर यह पट्टे तो किसी पर्टिकुलर समिति के नाम से चल रहे हैं पर इसे संचालित करने वाले कोई और ही व्यक्ति है जबकि यह नियम के विरुद्ध है।वही तालाबों में मछली मारने के लिए बिहार से लोग बुलाए जाते हैं जिनको तालाब की मछली और से हिस्सेदारी दी जाती है इससे स्थानीय मजदूरों का हक भी मारा जा रहा है ।
बाजार में मछलियों की कीमत ₹300 से 20000 तक है अलग-अलग प्रजातियों की मछलियां अलग-अलग रेट में उपलब्ध हैं लेकिन प्रशासन इस को तवज्जो नहीं दे रहा या यूं कहें कि इस पर अधिकारियों का ध्यान ही नहीं है।