विजया पाठक
लोकसभा सदस्य चुने जाने के पहले छह महीने में प्रदेश के अधिकांश सांसद अपनी सांसद निधि खर्च करने में फिसड्डी रहे हैं। केन्द्र सरकार ने सांसद निधि के रूप में प्रत्येेक सांसद को 2.5 करोड़ रूपये जारी किए हैं। भाजपा के 28 सांसदों में से 23 ने इसमें से कोई राशि खर्च नहीं की जबकि छह सांसदों ने अपने-अपने लोकसभा क्षेत्र में राशि खर्च करने की शुरूआत अब की है। जबकि संपूर्ण राशि को मार्च तक खर्च करना था। हम अंदाजा लगा सकते हैं कि इन दो माह में सांसद कितनी राशि खर्च कर सकते हैं। स्वाभाविक है कि आनन-फानन में हमारे माननीय सांसद अपनी सांसद निधि का गलत ही उपयोग करेंगे। सांसद निधि खर्च करने में कांग्रेस के एकलौते सांसद नकुलनाथ अव्वल रहे हैं। उन्होंने ढाई करोड में से 2 करोड 42 लाख रूपए खर्च कर दिए हैं। निश्चित तौर पर सांसद नकुलनाथ ने सांसद निधि का सही उपयोग कर क्षेत्र का विकास किया है। प्रदेश के अन्य सांसदों को भी नकुलनाथ से प्रेरणा लेकर मिलने वाली राशि का अपने-अपने क्षेत्रों में उपयोग करना चाहिए। दरअसल यह सांसदों की मानसिकता पर निर्भर करता है कि वह सांसद निधि का कैसे और कब उपयोग कर सकते हैं। नकुलनाथ ने अपने हिस्से में आये फण्ड को समय पर खर्च कर दर्शा दिया कि उनमें अपने क्षेत्र का विकास करने की ललक है। प्रदेश के कुल 29 सांसदों को 75 करोड़ की राशि जारी की गई जिसमें से 5 करोड की ही सांसद निधि खर्च की गई है। सांसदों को 31 मार्च तक मिले हुए फंड का 80 फीसदी हिस्सा यानी दो करोड़ रूपए खर्च करने होंगे। तभी उनको 2.5 करोड की अगली किश्त मिलेगी। सांसदों को एक साल में सांसद निधि के रूप में पांच करोड़ रूपए मिलते हैं। फिसड्डी सांसदों की बात की जाये तो उज्जैैन से अनिल फिरोजिया ने 32 लाख, दमोह से प्रहलाद पटेल ने 22 लाख, देवास से महेन्द्र सिंह सोलंकी ने सिर्फ 5 लाख और बैतूल से दुर्गादास उईके ने भी 5 लाख खर्च की है। इसके अलावा भी प्रदेश के ऐसे कई सांसद है जो सांसद निधि खर्च करने में फिसड्डी साबित हैं। आखिर सवाल उठता है कि जब इन जनप्रतिनिधियों को अपने क्षेत्रों में विकास कार्य करने के लिये इतनी भारी भरकम राशि दी जाती है तो ये सांसद इस राशि का उपयोग क्यों नही कर पाते। जबकि इनको पता होता है कि एक समय पश्चात् यह राशि लेप्स हो जाती है। वहींं दूसरी तरफ समय-समय पर सांसद मांग करते रहते हैं कि सांसदों को मिलने वाली विकास राशि को बढ़ाया जाये। यह मांग लोकसभा में हर वक्त की जाती है। हम कल्पना भी नही कर सकते कि इतने बड़े संसदीय क्षेत्रों में हमारे सांसद सिर्फ 5-5 लाख ही राशि खर्च कर पाते हैं। यह बहुत ही सोचने वाली बात है कि जिन प्रतिनिधियों को जनता इस आस से चुनती है कि वह क्षेत्र का विकास करेंगे, लेकिन सांसद जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश ही नही करते हैं।