भोपाल ( राजेन्द्र वर्मा )
बमुश्किल 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस अपनी ही कामयाबी को हज़म नही कर पा रही है। झाबुआ उप चुनाव में जीते कांतिलाल भूरिया चौथे चक्रव्यूह के रूप में सामने आए हैं। बात दें कि कमलनाथ,दिग्विजय,ज्योतिरादित्य के बाद चौथे ऐसे नेता हैं। जो कहीं न कहीं प्रदेश अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार हैं। जबकि हमने अरुण यादव और अजय सिंह जैसे बजनदार नेताओं को नजरअंदाज किया है। अजय सिंह नेता प्रतिपक्ष और अरुण यादव प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं।
कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस कुर्सी को इन नेताओं की तलाश है। इसके बावजूद मध्यप्रदेश अध्यक्ष के लिए घमासान जारी है। राष्ट्रीय नेतृत्व इस पद पर किसी की ताजपोशी को लेकर चुप है। आखिर क्यों …? क्या कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को कमलनाथ पर ही भरोसा है या किसी अनचाहे तूफान का डर । यह बात तो एकदम साफ है,प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर गुटीय संतुलन नही बैठने की स्थिति में बगावत की भविष्यवाणी सच साबित हो सकती है। प्रदेश में मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार कहे जाने वाले सिंधिया की नाराजगी साफ समझी जा सकती है । ये मुख्यमंत्री तो नही बन सके लेकिन अध्यक्ष पद से कोई समझौता करने के मूड में नही दिखाई देते। भाजपा का भी मानना यही है कि कमलनाथ की सरकार गिरानी है तो सिंधिया जरूरी हैं। सिंधिया के साथ सरकार को मात देने लायक पर्याप्त आधार है। यही कारण है कि शिवराज ने भी उन पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व कन्फ्यूजन की स्थिति में है। वह किसे खुश करे और किसको नाराज। इसका पूरा फायदा कमलनाथ को मिल रहा है। राष्ट्रीय नेतृत्व भी इन नेताओं को कुर्सी की आस देकर किसी भी बगावत से बचना चाहता है।