बुरहानपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस की तरफ से अरूण यादव हो सकते है प्रबल दावेदार
स्थानीय नेता होने का फायदा कांग्रेस पार्टी को दिला सकते है अरूण
दमोह उपचुनाव सीट पर मिली हार के बाद भाजपा को अलग रणनीति बनाकर करना होगा काम
विजया पाठक
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के कंट्रोल में आते ही राजनीतिक दल एक बार प्रदेश की खाली पड़ी सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर है। खास बात यह है कि उपचुनाव की सीटों में सबकी नजर खंडवा के बुरहानपुर की लोकसभा सीट पर है। यह सीट भाजपा सांसद नंदकुमार चौहान की कुछ महीने पहले ही मृत्यु के बाद से खाली है। इस सीट पर अपनी पार्टी का झंडा बुलंद करने के लिए दोनों ही सक्रिय राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के पार्टी दफ्तरों में हलचल शुरू हो गई है। भाजपा की ओर से इस सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए पूर्व शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनिस ने दावेदारी पेश की है। इसके अलावा पूर्व प्रदेश संगठन मंत्री कृष्णमुरारी मोघे भी इस सीट के लिए दावेदार माने जा रहे है। फिलहाल भाजपा की ओर से सीट के उम्मीदवार को लेकर स्थिति बहुत ज्यादा साफ नहीं हो पाई है। वहीं, कांग्रेस पार्टी की 23 जून को होने वाली हाईलेवल मीटिंग में लोकसभा सीट के उम्मीदवार के नाम की घोषणा हो सकती है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस पार्टी की ओर से इस सीट के लिए पूर्व सांसद अरूण यादव दावेदार माने जा रहे है। अरूण यादव का इस सीट से दावेदार होना निश्चित तौर पर दो प्रमुख बातो की ओर इशारा करता है। पहला तो अरुण यादव का गृह जिला नजदीकी खरगोन है और खंडवा से एक बार सांसद रहने के कारण उनका दावा ज्यादा मजबूत है। दूसरा इससे पहले अरूण यादव नंद कुमार चौहान को लोकसभा चुनावों में कड़ी टक्कर दे चुके है। इसलिए कांग्रेस पार्टी उनके नाम पर सहमति दे सकती है। यही वजह है कि सीट पर अपने नाम की सहमति मिलने से पहले ही अरुण यादव की टीम खंडवा में सक्रिय हो गई है। यादव ने भी इस क्षेत्र में आवाजाही बढ़ा दी है। इतना ही नहीं भाजपा नेत्री चिटनीस भी क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में बुरहानपुर से हारने के बाद भी सामाजिक और राजनीतिक कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी बनी रही। इंटरनेट मीडिया पर उनकी टीम उनके आयोजनों को लेकर मुस्तैद रही है। पिछले अनुभव के आधार पर उनकी दावेदारी भी मजबूत है। कमल नाथ की खिलाफत खत्म नाथूराम गोडसे समर्थक को कांग्रेस की सदस्यता दिलाने के बाद अरुण यादव ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ को लेकर मोर्चा खोला था। देखा जाए तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चौथी पारी में अब तक हुए उपचुनावों में भाजपा का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा, इसका सटीक उदाहरण है दमोह उपचुनाव में भाजपा की हार। हालांकि बुरहानपुर की लोकसभा सीट भाजपा की अपनी सीट मानी जाती है। क्योंकि इस सीट से नंदकुमार चौहान लगातार छह बार जीते है। 2019 के लोकसभा चुनाव में ही नंद कुमार चौहान ने कांग्रेस के अरूण यादव को 2 लाख 27 हजार वोटों से मात दी थी। इसलिए भाजपा यदि यह सोचकर चुनाव में अपना प्रत्याशी उतार रही है कि उसकी जीत निश्चिंत है तो यह इस बार उसके लिए बड़ी गलती हो सकती है। क्योंकि अरूण यादव को स्थानीय नेता होने का बड़ा फायदा मिल सकता है। इसके अलावा कमलनाथ एवं टीम के सदस्यों की उपचुनाव रणनीति को भांप पाना उसके हिसाब से अपनी चुनावी रणनिति को अंजाम देना भाजपा के लिए इतना आसान नहीं है। खैर, यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि बुरहानपुर की लोकसभा सीट पर किस राजनीतिक पार्टी का झंडा बुलंद होता है।
अरूण यादव को टिकट देने का इशारा करना कमलनाथ का मास्टर स्ट्रोक हो सकता है
जहां भाजपा अभी चुनावी फिल्ड में नही है अभी उनकी सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया के आसपास लगी हुई है वहां कांग्रेस की चुनावी तैयारियां प्रारंभ हो गई है। लेकिन जीत जिस किसी की भी हो, चुनाव जीतने के रास्ता आसान नहीं होगा।