समाज का एक विकृत रूप लिव-इन रिलेशनशिप?

सैयद खालिद कैस
पत्रकार ,लेखक ,अधिवक्ता

हमारे भारतीय समाज ने दूसरे देशों के मुकाबले में अपनी पहचान पुख्ता करने का प्रयास हमेशा से किया है।यही कारण है कि हमारे समाज ने आधुनिकता की अंधी दौड़ में कुछ ऐसे रिश्तों को भी अमली जामा पहना दिया जिसे आज भी समाज का एक बड़ा वर्ग अनैतिक मानता है। जी हां मैं बात कर रहा हूं भारतीय समाज में लिव-इन रिलेशनशिप के बढ़ते प्रभाव के फलस्वरूप एक विकृत समाज की स्थापना की।भारतीय समाज में लिव-इन रिलेशनशिप एक आम बात हो गई है। शहरी क्षेत्रों में यह तेजी से जड़े जमा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब इसकी पैठ बढ़ती जा रही है। इसके दुष्परिणाम में खुलकर सामने आ रहे हैं।देश में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे युगल कब अपने संबंधों को अपराध की गठरी मे बदल डालते हैं इसकी हजारों मिसालें देखनें को मिल रही हैं।उसके बावजूद भी लिव-इन रिलेशनशिप का यह कांसेप्ट भारतीय संस्कृति को खोखला करने पर लगातार अमादा है।इसके बढ़ते प्रभाव का नतीजा हैं कि भारतीय अदालतों ने भी इसे कानूनी दर्जा प्रदान कर दिया है यह बात अलग है कि भारतीय संसद ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कोई कानून तो नहीं बनाया है लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत ने कई मौकों पर इसे लेकर महत्वपूर्ण फैसला ज़रूर सुनाया है।

दिमाग में सवाल उठता है कि आखिर लिव इन रिलेशन किसे कहते हैं तो आम तौर पर प्रेमी जोड़े का शादी किए बिना लंबे समय तक एक घर में साथ रहना लिव-इन रिलेशनशिप कहलाता है। लिव-इन रिलेशनशिप की कोई कानूनी परिभाषा अलग से कहीं नहीं लिखी गई है। आसान भाषा में इसे दो व्यस्कों का अपनी मर्जी से बिना शादी किए एक छत के नीचे साथ रहना कह सकते हैं।

कई कपल इसलिए लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं, ताकि यह तय कर सकें कि दोनों शादी करने में सहज हैं या नहीं। कुछ इसलिए रहते हैं क्योंकि उन्हें पारंपरिक विवाह व्यवस्था कोई दिलचस्पी नहीं होती है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, चार दशक पहले 1978 में बद्री प्रसाद बनाम डायरेक्टर ऑफ कंसोलिडेशन के केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी थी।

लिव-इन रिलेशनशिप की जड़ कानूनी तौर पर संविधान के अनुच्छेद 21 में मौजूद है। अपनी मर्जी से शादी करने या किसी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की आजादी और अधिकार को अनुच्छेद 21 से अलग नहीं माना जा सकता।

साल 2001 में पायल शर्मा बनाम नारी निकेतन केस में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक आदमी और औरत को अधिकार है अपनी मर्जी से एक-दूसरे के साथ बिना शादी किए लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि हालांकि हमारा समाज लिव-इन रिलेशनशिप को अनैतिक मानता है, मगर कानून के हिसाब से न तो ये गैर-कानूनी है और न ही अपराध है।

सुप्रीम कोर्ट सहित अन्य न्यायलयों से अभयदान प्राप्त लिव-इन रिलेशनशिप का जहां प्रचलन समाज में बढ़ा वहीं दूसरी ओर इसका विकृत रूप में सामने आया है। यदि केवल मध्य प्रदेश के संदर्भ से बात करें तो मध्य प्रदेश में पिछले 4 माह में बलात्कार के 1800 से ज्यादा मामले सामने आए जिनमे आधे में शिकायतकर्ता लिव इन पार्टनर थी।

मध्यप्रदेश में दर्ज हो रहे रेप के 85% मामले लिव इन पार्टनर्स के हैं। कुछ समय साथ रहने के बाद जब कपल की नहीं पटती है तो रेप का केस दर्ज करा दिया जाता है। इसका मतलब ये भी है कि प्रदेश में लिव इन कल्चर को युवा तेजी से अपना रहे हैं। मॉडर्न लाइफ और सेक्शुअल डिजायर के चक्कर में इन युवाओं का सामाजिक तानाबाना लिव इन पर आकर ठहर गया है।

मध्यप्रदेश पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार इस साल जनवरी से अप्रैल के बीच रेप के 1800 से ज्यादा केस प्रदेश में दर्ज हो चुके हैं। इस लिहाज से प्रदेश में औसतन हर दिन 15 दुष्कर्म के मामले दर्ज हो रहे हैं।

बढ़ते रेप केस का कारण जानने के लिए साल 2022 में पहली बार मप्र पुलिस की महिला सुरक्षा शाखा ने साल 2019, 2020 और 2021 में रजिस्टर्ड हुए रेप केसेस पर स्टडी की। इसमें सामने आया कि इन तीन सालों में 14,476 रेप केस दर्ज हुए। इनमें से 85% मामले लिव इन में रह चुकी युवतियों ने अपने पाटर्नर के खिलाफ दर्ज कराए हैं।

जानकारों से बात की तो पता चला कि इस साल अब तक जो रेप के मामले सामने आए हैं, इनमें से 45% से ज्यादा के ताल्लुकात लिव इन रिलेशनशिप से हैं। लेकिन कोई भी पीड़िता सीधे तौर ये कहकर केस दर्ज नहीं कराती कि वो लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी। दरअसल, अन्य महानगरों की तरह MP के भी शहरी इलाकों में लिव इन रिलेशनशिप का कल्चर तेजी से डेवलप हो रहा है। इस ट्रेंड को फॉलो करने वालों में हर आयु वर्ग के लोग शामिल हैं।

समाज शास्त्री डॉक्टर शशि दीप के अनुसार लिव इन रिलेशनशिप की आड़ में समाज की संस्कृति को बरबाद करने वाले युवाओं में एक दूसरे के प्रति जब तक आकर्षण रहता है तब तक उनके मध्य संबंध रहते हैं तथा एक समय के बाद उनको अपने यह संबंध बोझ लगने लगते हैं ,परिणाम स्वरूप लिव इन रिलेशनशिप में महिला पार्टनर की हत्या के दर्जनों मामले ज़हन में तैरने लगते हैं।

गत दिनों एक मामले पर टिप्पणी देते हुए माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि लिव-इन रिलेशन देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर स्वीकार्य नहीं’।यह इस बात का प्रमाण है कि आज का युवा लाख लिव इन रिलेशनशिप को स्वीकार कर ले लेकिन भारतीय समाज आज भी इसे असामाजिक ही मानता है। इसके दुष्परिणाम भारत वर्ष में दृष्टिगत हो रहे हैं लेकिन हमारे आज भी इस अंधी दौड़ में अपने संस्कारों को नष्ट करने पर आमादा हैं।