भारत में पत्रकारिता के गिरते स्तर, निष्पक्ष पत्रकारिता पर न्यायपालिका की चिंता के दूरगामी परिणाम होंगे
जिम्मेदार पत्रकारिता सत्य के प्रकाश-स्तंभ की तरह होती है, जो हमें बेहतर कल का रास्ता दिखा सकती है:सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़
सैयद खालिद कैस
संस्थापक अध्यक्ष
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट
वर्तमान समय में भारत वर्ष में पत्रकारिता के नए आयाम, गिरते स्तर और मीडिया ट्रायल से आज हर कोई चिर परिचित है। उसके अलावा सत्ता और संगठन के निशाने पर आई निष्पक्ष पत्रकारिता पर हो रहे हमलों ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर काफी आघात पहुंचाया है। देश में हो रहे पत्रकारिता के दोहन से ऐसा कोई नहीं जो अंजान हो। आज पत्रकारिता जिस दौर से गुज़र रही है उसे यदि निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए काला अध्याय कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । ऐसे में देश भर के पत्रकार संगठनों सामाजिक, राजनैतिक संगठनों के बाद अब इस बात से न्यायपालिका भी चिंतित नज़र आ रही है।न्यायपालिका की चिंता जायज है क्योंकि भारत के इतिहास में ,स्वतंत्रता के इतिहास में पत्रकार और पत्रकारिता की महत्ता से इंकार नहीं किया जा सकता है। आजादी के पूर्व से लेकर आजादी के बाद लगातार पत्रकारिता ही रही जो जनता को सच और सरकार को आईना दिखाती रही है।यह और बात है कि बीते कुछ वर्षों में पत्रकारिता के गिरते स्तर ओर बदलते समीकरण ने एक नए अध्याय का आरंभ किया है।देश में पत्रकारिता पर हमले अब देश की सीमाओं को लांघ कर विश्व धरा पर चर्चा के विषय बन गए हैं।
देश की पत्रकारिता के ऊपर बढ़ते हमलों,उसकी स्वतंत्रता पर हो रहे आघात पर भारत के सर्वोच्च न्यायलय सहित कई प्रदेशों की उच्च न्यायालय के न्यायधीशगण भी पत्रकारिता पर हो हमलों पर जहां चिंता जता चुके हैं वहीं पत्रकारिता की स्वतंत्रता, निष्पक्षता के संबंध में उनके निर्देश समय समय पर जारी होते रहे हैं।यह बात अलग है कि सत्ता के नशे में चूर सरकारों द्वारा उनको नज़र अंदाज़ किया जाता रहा है।तथा पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर हमले और बिकाऊ पत्रकारिता को संरक्षण निरंतर जारी है।
वर्तमान समय में देश के चल रहे अमृत काल में पत्रकारिता को कई खंडों में विभाजित किया जा चुका है। सबसे चर्चित और सफल तथा सत्ता एवं संगठन की सबसे ज्यादा चहीती बिकाऊ मीडिया ने जहां एक ओर निष्पक्ष पत्रकारिता को निगल लिया है वहीं उनके मीडिया ट्रायल की नई परम्परा ने न्यायलय के निर्णयों से पूर्व संबंधित व्यक्ति, संस्था का पोस्टमार्टम कर उसकी छबि को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
गत दिनों एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीजेआई श्री डीवाई चंद्रचूड़ ने मीडिया ट्रायल से उत्पन्न खतरों को चिह्नित करते हुए कहा, ‘एक प्रमुख मुद्दा जिसने हमारे सिस्टम को प्रभावित किया है, मीडिया ट्रायल है. निर्दोष होने की धारणा यह मानती है कि किसी व्यक्ति को कानून की अदालत द्वारा दोषी पाए जाने तक निर्दोष माना जाता है। यह कानून और कानूनी प्रक्रियाओं का एक अहम पहलू है। उन्होंने कहा कि मीडिया ट्रायल के चलते व्यक्ति अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने से पहले ही जनता की नजरों में दोषी हो गया। इसके प्रभावित लोगों के जीवन पर और उचित प्रक्रिया पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने निष्पक्ष पत्रकारिता के बारे में बात करते हुए आगे कहा सच और झूठ के बीच की खाई को पाटने की सख्त जरूरत है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जिम्मेदार पत्रकारिता सत्य के प्रकाश-स्तंभ की तरह होती है, जो हमें बेहतर कल का रास्ता दिखा सकती है।
लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र प्रेस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए सीजेआई ने कहा, ‘प्रेस राज्य की अवधारणा में चौथा स्तंभ है और इस प्रकार लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है। एक क्रियाशील और स्वस्थ लोकतंत्र को पत्रकारिता के विकास को एक ऐसी संस्था के रूप में प्रोत्साहित करना चाहिए, जो सत्ता से कठिन सवाल पूछ सके या जैसा कि यह आमतौर पर जाना जाता है, सत्ता के सामने सच बोलो.’वे आगे बोले, ‘जब प्रेस को ऐसा करने से रोका जाता है तो किसी भी लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता किया जाता है. अगर किसी देश को लोकतांत्रिक बने रहना है तो प्रेस को स्वतंत्र रहना चाहिए।
प्रेस की आजादी पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की चिंता वर्तमान समय में महत्वपूर्ण है।यह इस बात का प्रमाण है कि वास्तव में प्रेस की स्वतंत्रता के साथ समझौता किया जा रहा है। निष्पक्ष पत्रकारिता पर हो रहे हमले लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को चोटिल कर रहे हैं ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों का नैतिक दायित्व बनता है की प्रेस की आजादी को कायम रखना सरकार की जिम्मेदारी है और सरकार उनसे पूर्ण करने में असक्षम है।
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट ने भारत सरकार द्वारा 2017में प्रेस,पत्रकारिता और पत्रकारों के हितों को संरक्षित रखने वाले गृह मंत्रालय भारत सरकार की गाइड लाइन पर राज्य सरकारों को कठोरता पूर्वक अमल पर बल देने की मांग की।