पत्रकारिता के लिये वर्तमान समय भय व असुरक्षा का-पत्रकारिता का हो रहा है राजनैतिक दोहन

भोपाल। देश भर में पत्रकारों के खिलाफ शासन सत्ता और संगठन विशेष पुलिस के व्यवहार से चल रहा माहौल किसी से छिपा नही है। पत्रकारों पर हमले झूठे मुकदमेबाजी के माध्यम से निष्पक्ष पत्रकारिता का दोहन किया जा रहा है। देश भर में जिस प्रकार पत्रकारिता और निष्पक्ष पत्रकारों को भयभीत किया जा रहा है वह चिन्ता का विषय है। इससे अधिक चिन्तनीय यह है कि केन्द्र सरकार सहित देश भर की प्रदेश सरकारों द्वारा पत्रकार सुरक्षा के प्रति उनके उदासीन व्यवहार के कारण लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के प्रहरियों को आतंक भय के बादल छाये हूए है।

सरकार ने स्वीकारा पत्रकारों पर हमले के संदर्भ में विशिष्ट आंकड़े नहीं

केन्द्र सरकार पत्रकारों की सुरक्षा के प्रति कितने उदासीन है इसका जीता जागता प्रमाण गत दिनों सरकार की उस स्वीकारोक्ति से मिलता है जिसमें गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने उच्च सदन राज्यसभा को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो एनसीआरबी पत्रकारों पर हमले के संदर्भ में विशिष्ट आंकड़े नहीं रखता। साथ ही उसने यह भी कहा कि मीडियाकर्मियों की सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कानून का कड़ाई से क्रियान्वयन करने के लिए 2017 में राज्य सरकारों को एक परामर्श जारी किया गया था। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने उच्च सदन को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि पुलिस और लोक व्यवस्था संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य का विषय है । उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें अपनी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के माध्यम से अपराध की रोकथामए उसका पता लगाने और जांच के लिए तथा अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए जिम्मेदार हैं। इस प्रकार केन्द्र सरकार ने अपनी जिम्मेदारी राज्य सरकारों के सिर डालते हूए इतिश्री कर ली और यह उजागर कर दिया कि पत्रकारों के प्रति केन्द्र ओर राज्य सरकारों की उदासीनता का ही परिणाम है कि सरकार के पास पत्रकारों पर हमले के संदर्भ में विशिष्ट आंकड़े नही हैं।

कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में पत्रकारों पर हुए अत्याचार

वही दूसरी ओर कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक एक दिसंबर 2021 तक दुनिया भर में पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने कर्त्तव्यों का निर्वाहन करते हूए मारे गये पत्रकारों में भारत से तीन व्यक्ति हैं जिसमें बीएनएन न्यूज के अविनाश झा जिनकी हाल ही में बिहार में मेडिकल माफियाओं को लेकर खुलासा करने के बाद हत्या कर दी गई थी। सुदर्शन टीवी के मनीष कुमार सिंह और पुलित्जर विजेता रॉयटर्स के पत्रकार दानिश सिद्दीकी जिनकी तालिबान ने हत्या कर दी थी शामिल हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इस समय सात पत्रकार जेल में है जिसमें कश्मीर नैरेटर के आसिफ सुल्तान प्रभात संकेत के तनवीर वारसी और पांच फ्रीलांसर. क्रमश आनंद तेलतुम्बड़े गौतम नवलखा मनन डार राजीव शर्मा और सिद्दीक कप्पन शामिल हैं।

राजद्रोह से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए का दुरूपयोग-अब बैकफुट पर केन्द्र सरकार

एक ओर जहॉं सरकार के पास पत्रकारों पर हूए हमलों का कोई आधिकारिक रिकार्ड उपलब्ध नही है वहीं दूसरी ओर देश भर मे पत्रकारों के खिलाफ हिंसा हत्या हत्या के प्रयास झूठी एफआईआर के हजारों मामलें दर्ज हैं जिनमें पीडित पत्रकारों को न्याय तक नसीब नही हुआ है। विगत 07-08 वर्षो से जिस प्रकार केन्द्र सहित विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा निष्पक्ष पत्रकारिता का दोहन करने के उददेश्य से पत्रकारों सहित अन्य पर राजद्रोह से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए का उपयोग किया वह भी निन्दीय रहा। यहॉं तक कि इस धारा के दुरूपयोग पर देश की सर्वोच्य न्यायालय को स्वंय संज्ञान लेकर टिप्पण करनी पडी। गत दिनों देश की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अंगेजो की बनाई धारा 124ए भा द वि राजद्रोह की धारा के आजादी के 75साल बाद तक हो रहे उपयोग पर तीखी टिप्पणी करते हुए सरकार से इस धारा को समाप्त करने के निर्देश दिए थे जिसके बाद मोदी सरकार अब बचाओ की मुद्रा में आगई है।

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने गत दिनों लोकसभा में कहा कि राजद्रोह से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को हटाने से संबंधित कोई प्रस्ताव गृह मंत्रालय के पास विचाराधीन नहीं है। उन्होंने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि धारा 124ए से संबंधित कानून का सवाल उच्चतम न्यायालय के पास लंबित है।

गौर तलब हो 2014के बाद से देश भर धारा 124ए के तहत पत्रकारों सामाजिक कार्यकर्ताओ किसान एवम मानव अधिकार कार्यकर्ताओं सहित अधिवक्ताओं के विरोध देश भर में राजद्रोह के नाम से दर्ज एफ आई आर होने के कारण देश में भय का माहौल निर्मित हो गया था। पीड़ित पक्षों द्वारा जब सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख किया तब कोर्ट ने इस पर गंभीरता पूर्वक विचारण किया और अपनी तल्ख मिजाजी के साथ सरकार को घेरा।उच्चतम न्यायालय ने धारा 124ए राजद्रोह से संबंधित कानून को औपनिवेशिक करार दिया है और कहा है कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है।क्योंकि आजादी से पूर्व ब्रिटिश सरकार ने देश के क्रांतिकारियोंएराजनेताओंएदेश भक्तोएपत्रकारों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के खिलाफ दमनकारी नीति के फलस्वरूप इस धारा की आड़ में जुल्म किया था। सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान समय में सरकारों द्वारा इस धारा की आड़ में लोगों के दमनकारी व्यवहार पर चिंता व्यक्त करते हुए इसको समाप्त करने पर बल दिया थाए जिसके परिणाम स्वरूप अब मोदी सरकार बैकफुट पर आकर आईपीसी इस इस धारा को समाप्त कर रही है। जिसके बाद सरकार की इस दमन कारी नीति से देश भर में धारा 124ए के तहत दर्ज मामलो से पत्रकारों सामाजिक कार्यकर्ताओंएकिसान एवम मानव अधिकार कार्यकर्ताओं सहित अधिवक्ताओं को राहत मिलेगी।

सैयद खालिद कैस, अध्यक्ष- प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स