प्रभात कुमार, 

गुजरात में 2004 के बहुचर्चित इशरत जहां मुठभेड़ कांड की जांच करने वाले वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) से राहत नहीं मिली। गुजरात हाईकोर्ट द्वारा मुठभेड़ की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के सदस्य रहे आईपीएस अधिकारी सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ पद के दुरुपयोग सहित विभिन्न आरोपों में सरकार ने तीन विभागीय जांच शुरू की है। सरकार ने वर्मा पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं, इनमें इशरत जहां मुठभेड़ मामले को लेकर मीडिया में बयान देकर सरकार की छवि खराब करने का भी आरोप है।

न्यायाधिकरण के अध्यक्ष जस्टिस एल.एन. रेड्डी और सदस्य ए.के. बिशनोई की पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई के खिलाफ 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी वर्मा की ओर से दाखिल तीनों याचिकाओं को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा है कि मामले से जुड़े तथ्यों और इस तरह के मामलों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय सिद्धांतों के मद्देनजर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।

न्यायाधिकरण ने वर्मा की उन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि इशरत जहां मुठभेड़ मामले की जांच रिपोर्ट प्रशासन को पसंद नहीं आई और इसकी वजह से गुजरात के तत्कालीन सत्ताधारी दल जब केंद्र में सरकार में आया तो उनके खिलाफ इन आरोपों में जांच शुरू की। केंद्र सरकार ने वर्मा को अक्तूबर, 2014 में उत्तर-पूर्वी इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन में मुख्य सर्तकता अधिकारी (सीवीओ) नियुक्त किया था।

इन आरोपों में हो रही है वर्मा के खिलाफ जांच
गृह मंत्रालय ने अगस्त, 2018 में सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ आरोप-पत्र जारी किया। इसमें उन पर 2/3 मार्च 2016 को उत्तर-पूर्वी इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन के गुवाहाटी स्थित परिसर में मीडिया चैनल को साक्षात्कार देने और इसमें इशरत जहां मुठभेड़ को लेकर बयान देने का आरोप लगाया। साथ ही कहा कि इसकी वजह से राज्य व केंद्र सरकार को बेवजह आलोचना का सामना करना पड़ा। साथ ही, मुठभेड़ की जांच सहित इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामा की जानकारी साझा करने का भी आरोप है।

इसी तरह से सीआरपीएफ के महानिदेशक ने भी सितंबर, 2018 में वर्मा के खिलाफ विभिन्न आरोपों में आरोप-पत्र जारी किया और विभागीय जांच शुरू की। इसके अलावा, मई, 2016 में भी वर्मा के खिलाफ आरोप-पत्र जारी किया गया। उन पर आरोप लगाया गया है कि उत्तर-पूर्वी इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन में सीवीओ रहते हुए सीएमडी की अनुमति के बगैर उन्होंने ऐसी जगहों का दौरा किया जहां पर कार्यालय का कोई काम नहीं था। जांच रिपोर्ट सीएमडी को नहीं सौंपने, कार्यालय के काम के बगैर विभिन्न जगहों का दौरा कर सरकारी खजाने पर साढ़े 8 लाख रुपये से अधिक का नुकसान कराने जैसे कई आरोप लगाए गए।

चार माह में पूरी हो जांच
न्यायाधिकरण ने केंद्र सरकार से कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता वर्मा सेवानिवृत होने वाले हैं, ऐसे में वह चार माह के भीतर अनुशासनात्मक कार्रवाई को पूरा करे। न्यायाधिकरण ने यह भी कहा है कि अनुशासनात्मक कार्रवाई में जो भी परिणाम आता है, याचिकाकर्ता उसके खिलाफ उचित मंच/न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

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