गणपति बप्पा क्षमा करें !!!

गणपति बप्पा हमारी मान्यता के अनुसार आज 28 सितंबर 2023 को अनंत चतुर्दशी के दिन इस वर्ष के अपने पृथ्वीलोक प्रवास पूरा करके वापस जा रहे हैं। आज उनकी मूर्तियाँ विधिवत जल में विसर्जित कर दी जाएगी। वैसे तो बप्पा हम सब भक्तों के दिलों में वास करते हैं लेकिन परंपरा अनुसार प्रति वर्ष उनकी नयी मूर्तियों की स्थापना और फिर पारिवारिक के साथ-साथ सार्वजानिक रूप से 11दिन तक उनकी विशेष अराधना पूजा-अर्चना और फिर विसर्जन के उत्सव का अपना अलग ही महत्व है। लेकिन वर्तमान में इस संपूर्ण पूजा प्रणाली में ऐसे अनेकों दुखद सच्चाईयों का सामना करना पड़ रहा है कि बप्पा अपने ऐसे अपमान से हमसे खुश हो ही नहीं सकते। इस तरह की उत्सव प्रणाली जिसमें उनके बप्पा को बुलाया तो जाता है लेकिन उनके आने के मुख्य उद्देश्य को भूलकर अधिकतर भक्तों में त्याग व समर्पण की कमी देखी जाती है तथा मूर्तियाँ इतनी बड़ी बड़ी स्थापित तो कर लेते हैं पर फिर उन्हें यूँ ही नदी समंदर किनारे टूटे-फूटे हालत में छोड़ आते हैं जिसे देखकर किसी भी अधार्मिक को भी रोना आ जाए तो बप्पा कैसे खुश हो सकते हैं? और साँस्कृतिक कार्यक्रमों के नाम पर कई जगह फूहड़ गाने, अश्लीलता का प्रदर्शन ये कैसी भक्ति है? मैं खुद गणपति उत्सव कार्यक्रम की अगुवाई में प्रतिवर्ष होती हूं मुझे पीड़ा होती है जब लोग नाच गाने और खाने के लिए तो आराम से वक्त निकाल लेते हैं पर बप्पा की आरती के लिए, असली विधि-विधान के लिए सब पीछा छुड़ाते हैं? क्या बप्पा हमसे खुश होंगे? हमें अपनी अंतरात्मा से पूछना चाहिए, ऐसे उत्सव के प्रति गणपति बप्पा की अस्वीकृति को महसूस किया जा सकता है। हां आज टेक्नोलॉजी के इस युग में बप्पा को निश्चित रूप से हमारे क्रिएटिव दिमाग से की गई कई व्यवस्थायें पसंद हैं, तब लगता है हम इंसान सही रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। जैसे मेवे, नारियल के छिलके, सब्जियों, बर्फ, टूटी बोतलें इत्यादि से बनी मूर्तियां या और कई तरह से क्रिएटिव दिमागों के कमाल से उत्सव के दरमियान मनोरंजन करना। वे हमारे ऐसे उत्साह से खुश होंगे लेकिन हम उनके भक्त हैं इसलिए वह हम सभी को न केवल इन 11 दिनों में बल्कि हमेशा खुश देखना चाहेंगे। इसलिए यदि हम इस उत्सव को सच्चे मन से, सच्चे समर्पण भाव के साथ स्वयं व सार्वजनिक हित के साथ जागरूक नागरिक भावना के साथ मना सकें तो बप्पा सचमुच कितने खुश होंगे। उन्हें यह पसंद नहीं कि लोग उनके आने से पहले कई दिनों तक कई तैयारी करें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में खलल डालें। लोग सड़कों को अवरुद्ध करते हैं और बहुत सारा पैसा खर्च करते हैं। अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण के कारण उत्सव के दौरान वरिष्ठ नागरिक, बच्चे और मरीज़ शांति से सो नहीं पाते हैं। सबसे प्रिय भगवान होने के नाते वह हमें लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जीने का आशीर्वाद देंगे और इसके लिए हमें अपने पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखना होगा। बप्पा इस उत्सव के दौरान प्रकृति की अत्यधिक पीड़ा को महसूस कर सकते है। उन्हें यह पसंद नहीं है अगर हम हमारे लिए उनकी चिंता को नजरअंदाज करते हैं और इस अंधी दौड़ में हमें अपने अस्तित्व के स्रोत को नहीं भूलना चाहिए। प्लास्टर ऑफ पेरिस और जहरीली धातुओं जैसी हानिकारक सामग्रियों से बनी, पारा, कैडमियम, सीसा और कार्बन युक्त घातक पेंट से लेपित हजारों मूर्तियाँ हमारे जल निकायों में प्रवेश करती हैं। ये मूर्तियाँ, जिनमें से कुछ आकार में विशाल हैं, झीलों, नदियों और समुद्र में विसर्जित की जाती हैं। जश्न मनाने का यह तरीका धार्मिक कारणों से नहीं बल्कि बढ़ती लापरवाही और नागरिक भावना की कमी के कारण है। हम इसका प्रभाव झेल रहे हैं और भविष्य में यदि हम और अधिक पीड़ित होंगे तो बप्पा को सबसे अधिक पीड़ा होगी। मुझे लगता है कि जब बड़ी-बड़ी मूर्तियों को जलमग्न करने के लिए लात मारकर तोड़ दिया जाता है, तो ऐसे विसर्जन से बप्पा क्रोधित हो जाते हैं, उन्हें यह अत्यंत पीड़ादायक लगता होगा। हम उन्हें पूरे धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ आमंत्रित करते हैं लेकिन जब हमारा काम पूरा हो जाता है तो उसे तोड़ देते हैं या पानी में फेंक देते हैं। हमें अपनी उत्सव प्रणाली में गंभीरता लानी होगी, मूल भावों को आत्मसात करना होगा, गणपति उत्सव को सही ढंग से मनाने की अनुभूति हो पाएगी।
गणपति बप्पा क्षमा करें।

शशि दीप ©✍
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई
shashidip2001@gmail.com