भुवन गुप्ता की क़लम से
एक देश के रुप में भारत की कईं सारी मानक परिभाषाओं के बीच इसकी एक परिभाषा यह भी कही जाती है कि, भारत सांप-सपेरे और जादू-टोने वालों का देश है. अंधविश्वास यहां धमनियों में रक्त के साथ बहता है. हालांकि, वक्त के साथ इस परिभाषा और इस मानक में बहुत से बदलाव आये हैं और इसलिए इस फिल्म में, फिल्म के एक डायलॉग के अनुसार, यह ‘नए भारत की चुड़ैल है’.
‘स्त्री’ सब्जेक्ट और ट्रिटमेंट के लिहाज से एक हॉरर-कॉमेडी फिल्म है, जो देश-भर में इस टैग लाईन के साथ रिलीज की गई है कि, “इस साल मर्द को दर्द होगा.” फिल्म एक सत्य घटना पर आधारित होना बताई गई है. 90 के दशक में बैंगलूर के आसपास यह अफवाह जोर पर थी कि, कोई महिला रात को दरवाजा बजाती है और घर के पुरुष को उठाकर ले जाती है. इसी डर से लोगों ने अपने घर के बाहर स्थानीय भाषा में ‘नाले-बा’ लिखवाना शुरु कर दिया था, जिसका अर्थ है – ‘कल आना’. यह फिल्म भी यहीं से शुरु होती है . . . जब एक पात्र गहरे सुर्ख लाल रंग में घरों की दिवारों पर लिखता रहता है –
“ओ स्त्री कल आना.”
लेकिन न तो इस फिल्म के निर्देशक अमर कौशिक 90 के दशक में जी रहे हैं और न ही लेखक राज एवं डीके पुराने अंधविश्वासों के साथ आगे बढ़ रहे हैं. यह कमाल है कि एक विशुद्ध भूतिया फिल्म बनाते और लिखते हुए भी, फिल्म के निर्देशक और लेखक दर्शकों में इस अहसास को जिंदा रखते हैं कि, आगे यह फिल्म हंसाएगी या डराएगी ? अंधविश्वास को रचने और गढ़ने में कमाल की मेहनत की गई है और पात्रों के चित्रण ने तो इसमें चार चांद लगा दिए हैं.
फिल्म चंदेरी गांव की कहानी है, जहां लोगों में यह विश्वास घर कर गया है कि, साल के चार खास दिनों में स्त्री (एक चुड़ैल) गांव में आती है और रात के अंधेरे में गांव के मर्दों को निशाना बनाती है. इस अंधविश्वास के लिए गांव-वाले हर घर के बाहर लिखवा देते हैं – “ओ स्त्री कल आना.” गोकि, ये एक पढ़ी-लिखी चुड़ैल है और ‘कल आना’ की बात सुनकर दरवाजे से लौट भी जाती है.
इसी गांव में एक ‘दिल का दर्जी’ बसता है, विक्की (राजकुमार राव) जो अपने पिता की तरह कपड़े ही सिलता है, लेकिन, जरा हट के ! उसके दो दोस्त है – बिट्टू और जाना (अपारशक्ति खुराना और अभिषेक बनर्जी) गांव में एक भूतों का एक जानकर भी है, रुद्रा (पंकज त्रिपाठी) जिसका अपना पुस्तक-भंडार है. चंदेरी के उन ‘चार खास दिनों’ के भय-नुमा माहौल के बीच हमारे हिरों विक्की से मिलती है – एक अनाम सुंदर स्त्री (श्रृद्धा कपूर) जो मिलते ही कहती है – “विक्की प्लीज़” ! और उससे घाघरा सिलवाने की जिद करती है. विक्की के दोस्तों को ‘यह स्त्री’ भूतिया गर्लफ्रेण्ड लगती है. पूरी फिल्म इन्हीं पांच किरदारों के महीन धागों में गुंथी गई है और बड़े नेचुरल रुप मे आगे बड़ती जाती है.
फिल्म का प्लॉट बहुत ट्रेडिशनल है और कहानी बहुत ही साधारण. हममें से अधिकांश का बचपन इन्हीं सब किस्से-कहानियों के बीच गुजरा है, लेकिन, ‘स्त्री’ में इन्हीं नादानियों को, डराने के उपक्रम को पात्रों के चरित्र और व्यवहार से इस कदर मासूमियत के साथ दिखाया है कि यह सहज हास्य पैदा करता है. फिल्म का खौफ या डर चूरन-नुमा नहीं है, न ही यह रामसे ब्रगर्स टाईप चीप थ्रिल की श्रेणी का है. फिल्म के नाम में विशुद्ध हिंदी शब्द का इस्तेमाल है और इसके पात्र भी इतनी ही खड़ी हिन्दी बोलते हैं. हमारा हिरो अपनी गर्लफ्रेण्ड पर ‘मंत्रमुग्ध’ होता है और रुद्र सर चुड़ैल से बचने के ‘निम्नलिखित’ नियम बताते नजर आते हैं. फिल्म के वन-लाईनर कमाल के लिखे गए हैं, जो एजल्ट होने के बावजूद सुनने में वल्गर नहीं लगते. यह सुमित अरोरा (डायलॉक लेखक) की मेहनत का नतीजा है, जो एक चुड़ैल की कहानी पर आधारित फिल्म भी समझदार या वजनदार लगती है. एक दृश्य में रुद्र सर कहते हैं, “कभी अंबानी के बेटे को भूत चिपटते देखा है ?”
फिल्म के कलाकारों ने चंदेरी गांव को, गांव के कल्चर को, अल्हड़ता और मस्ती को, डर और बहादुरी को सहजता से जीवंत किया है. राजकुमार राव नए दौर और नए सिनेमा के अमोल पालेकर है, जो ‘बाहुबली’ भी बन सकते है. श्रृद्धा कपूर पहले ही दृश्य से अपने भूतियापन की झलक देती है. अन्य तीन कलाकार फिल्म की जान है. अपारशक्ति खुराना और पंकज त्रिपाठी अब जमे हुए पक्के कलाकार है और लेखक/निर्देशक ने इन्हें पर्याप्त स्पेस भी दिया है. विक्की के दूसरे दोस्त के रुप में अभिषेक बनर्जी ने भी अपने स्पेस को बड़े ही खूबसूरत (और जानलेवा भी) अंदाज में परोसा है. सचिन-जीगर ने फिल्म की और दर्शकों की जरुरत और रुची का संगीत दिया है. फिल्म का बैक-ग्राऊंड स्कोर कमाल है और यही इसे साधारण से असाधारण दर्जा दिलाता है.
यह फिल्म जिस टैग-लाईन के साथ रिलीज हुई है, उसके गहरे निहितार्थ फिल्म में मौजूद है. ‘नारीवाद’ हमारे दौर का सबसे सुलगता सब्जेक्ट है, फिल्म इसी कंटेम्पररी ट्विस्ट को बताने की कोशिश है. घने-अंधेरे खण्डहर में चुड़ैल को काबू करने की तैयारी के एक दृश्य में रुद्र सर कहते हैं – “वो मर्द नहीं, स्त्री है. जबरदस्ती नहीं करती. यस मीन्स यस.”
काश ! इतनी सी बात देश भर के मर्दों को और समझ में आ जाए.
( फ़िल्म समीक्षक एवं वरिष्ठ प्रशासनिक आधिकारी हैं )