पार्टी भले मिट जाए! हम एक नहीं होंगे, कांग्रेस के दिग्गजों ने खा रखी है कसम

भोपाल (महेश दीक्षित) । पहले मध्यप्रदेश कांग्रेस के नेताओं की खींचतान में श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक दिग्गज 22 नेताओं के साथ कांग्रेस से हाथ जोड़कर भाजपा में चले गए और अच्छी भली चलती हुई कमलनाथ सरकार गिर गई… और अब जब 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जीत के जरिए बची-खुची पार्टी बचाने और मप्र की सत्ता में लौटने का कांग्रेस के पास अंतिम मौका है…तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सरीखे दिग्गज नेताओं ने जैसे कसम खा रखी है कि, पार्टी भले ही मिट जाए, लेकिन हम एक नहीं होंगे। वे अब भी दंभ की कोठरियों में सिमटकर अपनी-अपनी ढपली-अपना-अपना राग बजा रहे हैं।

आने वाले दिनों में प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। उपचुनाव चुनाव की तारीख भले ही अभी घोषित नहीं हुई है। लेकिन कांग्रेस 15 सीटों पर प्रत्याशी घोषित करने के साथ प्रचार तेज कर दिया है। अब तक कांग्रेस इन क्षेत्रों में दर्जन भर चुनावी सभाएं और कार्यक्रम कर चुकी है। लेकिन कांग्रेस की एक भी सभा और कार्यक्रम में कमलनाथ के साथ न तो दिग्विजय सिंह दिखाई दिए हैं और न सुरेश पचौरी ,अजय सिंह, अरुण यादव और न कांतिलाल भूरिया नजर आए हैं। राहुल गांधी की पसंद माने जाने वाले अरुण यादव जिन्हें विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा कर कमलनाथ को अध्यक्ष बनाया गया था। अब अरुण यादव को सीडब्ल्यूसी से भी दूर कर दिया गया, उनकी जगह दिग्विजय सिंह आमंत्रित सदस्य के तौर पर शामिल किए गए। यादव भी अभी तक नाथ से दूर-दूर ही चल रहे हैं।

पचौरी-अजय को अलग-थलग किया

पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रह चुके पूर्व सांसद ब्राह्मण नेता सुरेश पचौरी को पहले ही प्रदेश की राजनीति में अलग-थलग कर दिया गया। जबकि वे प्रदेश के ब्राह्मणों का एक बड़ा चेहरा हैं और उपचुनाव में कांग्रेस के लिए ब्राह्मण वोट बैंक जुटाने में अहम रोल निभा सकते हैं। इसी तरह पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह जिनकी पूछ परख कमलनाथ सरकार के रहते कम हो गई थी। पार्टी नेतृत्व उनकी भी नई भूमिका तय नहीं कर पाया है। नेतृत्व ने हमेशा सुविधा से उनका उपयोग किया।

भूरिया झाबुआ, नकुल छिंदवाड़ा तक सीमित

पार्टी के एक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया झाबुआ तक सीमित होकर रह गए। कमलनाथ के सांसद पुत्र नकुल नाथ जिन्होंने युवाओं को नेतृत्व देकर इन उपचुनाव में अपनी सक्रियता का संदेश दिया था, लेकिन वे अभी तक उपचुनाव के मैदान से गायब हैं और खुद को छिंदवाड़ा से बाहर निकाल पा रहे ह़ै।

इन दोनों के पास सिमटी कांग्रेस

कमलनाथ के इर्द-गिर्द नजर आने वाले सज्जन सिंह वर्मा और नर्मदा प्रसाद प्रजापति जैसे नेता ही फिलहाल कांग्रेस को चला रहे हैं। एक तरह से इन जैसे दो-तीन नेता ही उनकी आंख-कान हैं। नाथ की किचन कैबिनेट पर ही उपचुनाव का दारोमदार है।

इनकी भी नहीं पूछ-परख

इसी तरह अपने बयानों और सवालों से पार्टी नेतृत्व को अक्सर परेशानी में डाल देने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक लक्ष्मण सिंह का भी पार्टी कोई उपयोग नहीं कर रही है। गोविंद सिंह जैसे अनुभवी नेता जरूर नदी बचाओ यात्रा के जरिए उपचुनाव में मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं। इसी तरह से उपचुनाव वाले क्षेत्रों में पूर्व मंत्री जीतू पटवारी के मुकाबले जयवर्धन सिंह ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रहे हैं।

12 उम्मीदवारों की तलाश

कांग्रेस को अभी उपचुनाव में 12 विधानसभा सीटों के लिए और जिताऊ उम्मीदवार की तलाश है। तो कुछ सीटों पर हो रहे विरोध के चलते उम्मीदवार बदलने का दबाव भी है। ऐसे में लगता है कि, मध्यप्रदेश कांग्रेस में अभी भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। पार्टी के दिग्गज नेताओं की कड़वाहट और टकराहट अभी भी कम नहीं हुई है। वो भी तब जबकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस खत्म होने की कगार पर बैठी है और उपचुनाव प्रदेश में उसके राजनीतिक पुनर्वास का अंतिम मौका है।

कांग्रेस को लगा एक बड़ा झटका

गोहद विधानसभा से टिकट नहीं मिलने से नाराज कांग्रेस के दिग्गज नेता डा गोविंद सिंह के सबसे करीबी रहे भिंड जिला पंचायत अध्यक्ष रामनारायण हिंडोलिया ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है। अब वे गोहद से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। बहुत जल्द पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उनके समर्थन में गोहद में सभा लेंगे।