- अरुण पटेल- लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक
17 दिसम्बर से प्रारंभ होने जा रहे विधानसभा के शीतकालीन सत्र को हंगामाखेज बनाने के लिए भाजपा विधायक, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव की अगुवाई में अभी से कमर कसते नजर आने लगे है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी इस बार पूरी तैयारी कर रही है ताकि हर मुद्दे पर जबरर्दस्त प्रत्युत्तर के माध्यम से विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोपों की धार को न केवल कुंद कर दे अपितु उस पर अपनी बढ़त हासिल कर सके। जब यह सत्र आरंभ होगा उस समय तक कमल नाथ सरकार प्रदेश में एक साल का कार्यकाल लगभग पूरा कर लेगी। उसके हाथ में वचनपत्र पूरे करने की लम्बी-चौड़ी उपलब्धियों की फेहरिस्त होगी तो भाजपा विधायक वायदे पूरे न करने और अन्य ज्वलंत मुद्दों को लेकर पूरे लाव-लश्कर के साथ आक्रामक मुद्रा में नजर आएंगे, इसलिए विधायकों को अभी से तैयारी करने के लिए कह दिया गया है। विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति द्वारा भाजपा विधायक प्रहलाद लोधी की सदस्यता रद्द करने और उसके बाद म.प्र. उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें मिली सजा पर रोक लगाने के बाद से भाजपा इस मुद्दे को लेकर राज्यपाल लालजी टंडन के सामने उठा चुकी है तो वहीं पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने ऐलान किया है कि वे अपने साथ लोधी को विधानसभा सत्र में लेकर जायेंगे। इससे साफ होता है कि शीतकालीन सत्र को भाजपा हंगामाखेज बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी।
विधानसभा अध्यक्ष प्रजापति ने सांसदों, विधायकों के प्रकरणों की सुनवाई के लिए गठित विशेष न्यायालय द्वारा लोधी को 2 साल की सजा देने के निर्णय के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त करने के साथ ही सीट रिक्त होने की सूचना निर्वाचन आयोग को दे दी थी। भाजपा इस मामले को लेकर जिस प्रकार की घेराबंदी करने के मूड में नजर आ रही है उसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि राज्यपाल को ज्ञापन देने प्रतिनिधिमंडल में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष सांसद राकेश सिंह, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव एवं पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा शामिल थे। उनके साथ ही विधायक प्रहलाद लोधी भी थे। लगभग पौन घंटे इस प्रतिनिधिमंडल ने इस मुद्दे पर राज्यपाल टंडन से चर्चा की और पवई के विधायक पद से बर्खास्त किए गए लोधी को पुन: सदस्य बनाने के लिए ज्ञापन सौंपा। इन नेताओं ने राज्यपाल को बताया कि विधानसभा अध्यक्ष का आदेश असंवैधानिक है क्योंकि सीट रिक्त करने की घोषणा विधानसभा अध्यक्ष नहीं कर सकते यह अधिकार केवल राज्यपाल के पास है जिसका अतिक्रमण कर विधानसभा अध्यक्ष ने सीट रिक्त होने की सूचना निर्वाचन आयोग को भेज दी। हाईकोर्ट के आदेश के बाद उसको सुधारना था लेकिन इस मामले में कांग्रेस लगातार राजनीति कर रही है जिसे भाजपा स्वीकार नहीं करेगी। अध्यक्ष के फैसले को जल्दबाजी में उठाया गया कदम निरुपित करते हुए शिवराज ने आरोप लगाया कि विधानसभा अध्यक्ष निष्पक्ष नहीं हैं, हमारा विश्वास है कि अध्यक्ष का फैसला असंवैधानिक एवं विधिसम्मत नहीं है। अगले सत्र में हम विधानसभा में लोधी को लेकर जायेंगे। भाजपा का यह प्रयास भी है कि इस निर्णय का विरोध करते समय वह कांग्रेस सरकार पर भी निशाना साधे।
शीतकालीन सत्र के छोटे होने को मुद्दा बनाते हुए नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने इसे बढ़ाने की मांग की, जिसका उत्तर एक पत्र के माध्यम से सहकारिता एवं संसदीय कार्य मंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने देते हुए उनकी मांग को खारिज कर दिया। इससे एक यह साफ हो गया कि सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग सरकार स्वीकार करने वाली नहीं है। डॉ. सिंह ने भार्गव के उस आरोप को भी खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने प्रदेश सरकार पर जनता के मुद्दों से बचने के लिए छोटा सत्र बुलाने का आरोप लगाते हुए इसे गलत परम्परा बताया था। संसदीय कार्य मंत्री ने अपने पत्र में यह भी रेखांकित करने की कोशिश की कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में ही छोटे सत्र रखने की शुरुआत हुई थी, इसके साथ ही विधानसभा के छोटे सत्रों की सूची संलग्न कर भेज दी। भार्गव ने दो दिन पहले कमलनाथ को पत्र लिखकर शीतकालीन सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग की थी और अवधि के निर्धारण में नेता प्रतिपक्ष की सहमति न लेने व सत्र को छोटा रखने की परम्परा को गलत बताया था। पूर्व संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा का भी आरोप था कि सरकार किसान कर्जमाफी, प्रशासनिक अव्यवस्था, तबादला उद्योग, अतिवृष्टि से हुए नुकसान का मुआवजा न देने के चलते सदन में लगाये गये नये सवालों से बचना चाह रही है इसलिए सत्र की अवधि छोटी रखी जा रही है। नेता प्रतिपक्ष से सलाह न लेने का उत्तर देते हुए संसदीय कार्य मंत्री ने यह स्पष्ट किया कि भाजपा सरकार ने भी तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष से सलाह नहीं ली थी, जबकि लोक महत्व के विषय पर चर्चा कराने के लिए हमारी सरकार तैयार है।
नेता प्रतिपक्ष भार्गव के मुख्यमंत्री को लिखे पत्र के उत्तर में संसदीय कार्यमंत्री ने जो जवाब दिया है उसमें यह बताया गया है कि 15 साल में भाजपा मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में 20 अल्पावधि सत्रों में 97 बैठकें आयोजित हुई थीं। इसमें सबसे कम तीन बैठकों वाले सत्र का उल्लेख है तो सर्वाधिक दस बैठकों वाले सत्र का भी उल्लेख किया गया है। नवम्बर-दिसम्बर 2011 में दस बैठकों वाला शीतकालीन सत्र हुआ था जबकि पांच छोटे सत्रों में तीन-तीन बैठकें ही हुईं थीं। गोपाल भार्गव ने संसदीय कार्यमंत्री द्वारा दी गयी जानकारी को आधी-अधूरी बताया, उन्होंने देर रात तक सदन की कार्रवाई चलाने की जगह बैठकों की संख्या बढ़ाने का भी सुझाव दिया था। विधानसभा सत्र में भाजपा विधायक पूरी तरह मुखर रहें इसलिए शीतकालीन सत्र से पहले अपने सभी विधायकों की काउंसलिग करने की भी भाजपा तैयारी कर रही है। विधि विधायी कार्य एवं जनसंपर्क मंत्री पी.सी. शर्मा ने हाल ही में कहा था कि भाजपा के तीन-चार विधायक अभी और उनके संपर्क में हैं जो कभी भी कांग्रेस के पाले में आ सकते हैं। मुख्यमंत्री कमलनाथ एवं अन्य कुछ मंत्री तथा कांग्रेस नेता भी इस बात के संकेत दे चुके हैं कि कुछ और भाजपा विधायक किसी भी समय कांग्रेस में आ सकते हैं। बीते विधानसभा सत्र में भाजपा के दो विधायकों ने कांग्रेस के पक्ष में जाकर एक विधेयक पर हुए मतदान में वोट डाले थे। इनमें से नारायण त्रिपाठी तो भाजपा पाले में वापस खड़े नजर आने लगे लेकिन वे कब क्या फैसला कर लें और फिर दल बदल लें इसकी संभावना उनके पुराने रिकार्ड को देखते हुए नकारी नहीं जा सकती। ब्यौहारी के भाजपा विधायक शरद कोल अभी भी बागी तेवर अपनाये हुए हैं वे त्रिपाठी के भाजपा पाले में वापस आने के बाद भी कह रहे हैं कि कमलनाथ के साथ ही हूं। इसी बीच त्रिपाठी भी मंत्री जीतू पटवारी के साथ लम्बी बैठक कर चुके हैं, यही कारण है कि यह सब देखते हुए भाजपा भी त्रिपाठी को संदिग्ध मान रही है।
और यह भी
भाजपा सत्ताधारी दल कांग्रेस द्वारा उसके पाले में सेंध लगाने से रोकने के लिए अपने विधायकों को समेटने की कोशिश कर रही है। समझा जाता है कि काउंसलिंग के तहत पहले चुनिंदा भाजपा विधायकों को प्रदेश कार्यालय में बुलाकर राकेश सिंह और संगठन महामंत्री सुहास भगत उनसे सीधे चर्चा करेंगे, इसके बाद सत्र के पूर्व सभी विधायकों को राजधानी बुलाकर उनकी भी बैठक की जाएगी। फिलहाल पार्टी इसकी रणनीति तैयार कर रही है। ऐसे विधायकों को भी पार्टी नेता चिन्हित कर सीधे संपर्क स्थापित करेंगे जो कांग्रेस नेताओं के संपर्क में बने हुए हैं और अवसर आने पर किसी लालच या दबाव में पाला बदल सकते हैं। भाजपा के नेताओं को पहले यह भरोसा था कि कमलनाथ सरकार कभी भी अपना बहुमत खो देगी और उन्हें सरकार बनाने का अवसर मिलेगा, लेकिन सरकार एक साल का कार्यकाल पूरा करने जा रही है। कांतिलाल भूरिया के चुनाव जीतते ही कांग्रेस विधायकों की संख्या सदन की कुल संख्या से आधा हो गयी है और लोधी की सदस्यता समाप्त होने के बाद अब वह बहुमत में हैं। इसके अलावा चार कांग्रेस पृष्ठभूमि के निर्दलीय विधायक भी कांग्रेस को समर्थन दे रहे हैं, इनमें से एक मंत्री भी है। बसपा एवं सपा विधायक भी सरकार के ही साथ हैं, फिर भी भाजपा के कुछ बड़े नेताओं को अभी भी भरोसा है कि उसके पास सरकार पलटने का कभी भी अवसर आ सकता है।
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