न्यायपालिका के निर्णय जनकल्याणकारी होना चाहिए समाज विरोधी नहीं
डॉक्टर सैय्यद खालिद कैस एडवोकेट
लेखक, पत्रकार, आलोचक, विचारक
गत दिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अजीबो गरीब फैसला सुनाया, जिसकी चर्चा पूरे देश में हो रही है।अमूमन वरिष्ठ न्यायालयों के निर्णय पूरे देश के लिए नजीर अर्थात् न्याय दृष्टांत बनते हैं जो निचली अदालतों के निर्णयों पर प्रभावी होते हैं और उनका महत्व होता है। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस निर्णय ने न्यायपालिका की गरिमा और विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट को यथाशीघ्र स्वयं संज्ञान लेकर फैसले को पलटना होगा अन्यथा उसके दूरगामी परिणाम विनाशकारी होंगे।
दअरसल 11 साल की बच्ची के केस में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया जो चर्चा का विषय बना हुआ है।इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अजीबो-गरीब फैसले में कहा है कि किसी नाबालिग लड़की के निजी अंग पकड़ना, उसके पायजामे की डोरी तोड़ना और उसे घसीटने की कोशिश करना दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास का मामला नहीं बनता। कोर्ट ने इसे अपराध की ‘तैयारी’ और ‘वास्तविक प्रयास’ के बीच का अंतर बताया और निचली कोर्ट द्वारा तय गंभीर आरोप में संशोधन का आदेश दिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने अपने आदेश में कहा, ‘दुष्कर्म के प्रयास का आरोप लगाने के लिए साबित करना होगा कि मामला तैयारी से आगे बढ़ चुका था। तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच अंतर है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र के इस फैसले ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं मानने जैसा प्रयास किया है। इसी तरह का एक आदेश में बॉम्बे हाई कोर्ट की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला ने जनवरी 2021 में यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि किसी नाबालिग पीड़िता के निजी अंगों को ‘स्किन टू स्किन’ संपर्क के बिना टटोलना पॉक्सो में अपराध नहीं माना जा सकता है। हालांकि इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था। तथा 19 नवंबर 2021 को पारित अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला द्वारा जनवरी 2021 को पारित फैसले को पलटते हुए कहा था, कि “किसी बच्चे के यौन अंगों को छूना या ‘यौन इरादे’ से शारीरिक संपर्क से जुड़ा कोई भी कृत्य पॉक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत ‘यौन हमला’ माना जाएगा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण इरादा है, न कि त्वचा से त्वचा का संपर्क।
ताजा मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र द्वारा पारित फैसले अनुसार नाबालिग लड़की के निजी अंग पकड़ना, उसके पायजामे की डोरी तोड़ना और उसे घसीटने की कोशिश करना दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास का मामला नहीं मानना गंभीर मुद्दे को जन्म दे रहा है। बेशक इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले की समीक्षा या टिप्पणी का हमें कोई अधिकार नहीं है न ही उस फैसले की कोई आलोचना का दुस्साहस कर रहे लेकिन सामाजिक नजरिए से यदि यह देखा जाए तो इस प्रकार के फैसले समाज को गलत दिशा दिखाएंगे और इस फैसले के कारण हजारों दोषियों को दंड से बचने का रास्ता मिलेगा। यह एक अटल सत्य है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट संज्ञान लेकर उसे पलट भी देगा परन्तु क्या ऐसे निर्णय देने वाले न्यायधीश पुनः ऐसे कोई निर्णय न दें इस पर कोई रोक लगेगी। रोक लगना जरूरी भी है वरना एक परम्परा का आगाज़ होगा बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला द्वारा जनवरी 2021 को पारित फैसले के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न्यायपालिका की गरिमा पर आघात है।