सम्पादकीय

गणतंत्र दिवस के दिन मध्य प्रदेश की महिला मंत्री इमरती देवी का एक वीडियो खूब वायरल हुआ। बिना पढ़ी लिखी महिला मंत्री मुख्यमंत्री का भाषण पढ़ने में अक्षम थी सो उन्होंने यह सन्देश कलेक्टर को पढ़ने के लिए दे दिया। हल्ला यूं मचा कि मध्य प्रदेश की यह बिना पढ़ी लिखी मंत्री मंत्रालय कैसे चलाएगी। ठीक ऐसा ही हल्ला तब मचा था जब छत्तीसगढ़ में नक्सली इलाके से आये निरक्षर कवासी लखमा को मंत्री बनाया गया।

इन दो अनपढ़ शख्सियतों का मंत्री बनना खबर तो है लेकिन शर्म का विषय कतई नहीं है। यदि कोई इसे शर्म का विषय मानता है तो या तो वह देश के लोकतंत्र को समझता नहीं है या फिर जानबूझ कर लोकतंत्र का अपमान कर रहा है।

शुरुआत इमरती देवी से ही करते हैं। इमरती देवी डबरा सीट से तीसरी बार विधायक बनी। इसके पहले जिला पंचायत की सदस्य भी रह चुकी हैं । बतौर विधायक उन्होंने कुछ तो अपने क्षेत्र में किया ही होगा जब वे तीसरी बार चुन कर आईं। दूसरी बार तब जब मोदी लहर में मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव हुआ और तीसरी बार तब जब मध्य प्रदेश प्रदेश कांग्रेस के कई कद्दावर नेता चुनाव हारे। ऐसे में इमरती देवी का उपहास उनके क्षेत्र की जनता का , और उस जनादेश का अपमान है जो इस देश में गणतंत्र की नींव है। लोकतंत्र में जनता ही तय करती है जनाब, कि कौन उसका प्रतिनिधि होगा। और रही बात इमरती देवी की तो मध्य प्रदेश की विधानसभा में विपक्ष के विधायक के तौर पर उनकी परफॉरमेंस कई तथाकथित महा डिग्रीधारी विधायकों से बेहतर रही है। रही बात मंत्रालय चलाने की सो वह अधिकारी ही चलाते हैं , एक मंत्री की भूमिका विभाग की योजनाओं को तय करने में होती है जो बिना शिक्षा के भी अनुभव के आधार पर बेहतर किया जा सकता है।
अब बात कवासी लखमा की। ये छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री हैं और नक्सल इलाके की कोंटा सीट से विधायक हैं. कवासी लखमा का उपहास उड़ाने वालो, कभी बस्तर की दुर्दांत वादियों में जाकर देखो, जिस इलाके में नक्सली सत्ता चलती हो ,जहाँ पोलिंग पार्टियों पर, चुनाव में लगे सुरक्षा तंत्र पर, कवरेज करने वाले पत्रकारों पर लैंड माइन विस्फोट कर उन्हें उड़ा दिया जाता हो, उस इलाके में लोकतंत्र को जीवित रखने वाले , लोगों की चुनाव में आस्था को बनाये रखने वाले कवासी लखमा को तो इस हिन्दुस्तान के लोकतंत्र का ब्रांड एम्बेस्डर बनाया जाना चाहिए। हमें गर्व होना चाहिए कि एक व्यक्ति पूरी ताकत से हिन्दुस्तान के लोकतंत्र को जिन्दा रखने के लिए खड़ा है।
यह गर्व करने की बजाय हम शर्म करें तो हमसे बड़ा बेशर्म कोई नहीं है। अब बात शिक्षा और अशिक्षा की। मुझे पता है कि यह लेख लिखने के बाद मुझे भी गालियां मिलनी तय है। लेकिन सिर्फ एक बार अपने दिल पर हाथ रखकर विचार कीजिये कि क्या सिर्फ स्कूली शिक्षा ही योग्यता का पैमाना है। इस देश के प्रखर अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह भी तो पढ़े लिखे थे फिर भाजपा उनके कामों को क्यों गरियाती है। देश के महान वकील अरुण जेटली जी के नेतृत्व में देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल हुआ किसी से छिपा है क्या ? आई आर एस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आये आई आई टी इंजीनियर केजरीवाल साहब की इमेज यू टर्न वाली बनी कि नहीं बनी। और भी सैड़कों उदाहरण है , प्रदेश के कम पढ़े लिखे ग्रामीण विधायक अपने इलाके की जनता के हित में मंडियों में , किसानों के बीच रोज जा रहे हैं और आपके तथाकथित पढ़े लिखे वी आई पी विधायक ठंड में हीटर लगाकर बिल में घुसे हैं। कितने उदाहरण गिनाएं आपको।

इस देश में शिक्षा जरूरी है। शिक्षित और समझदार लोगों का राजनीति में आना भी जरूरी है। लेकिन यदि कोई अपने कामों से, अपने क्षेत्र की जनता का विश्वास जीतकर लोकतंत्र की हर प्रक्रिया का पालन करते हुए आगे बढ़ा है तो उसकी अशिक्षा पर कतई उपहास नहीं होना चाहिए। यदि फिर भी बात समझ न आई हो तो समस्त महान डिग्री धारियों से निवेदन है कि एक बार इमरती देवी या कवासी लखमा के खिलाफ चुनाव लड़ें और अपनी शिक्षा का सदुपयोग जरूर करे।