भोपाल । मध्य प्रदेश पुलिस की कारगुजारी या जगजाहिर हैं पुलिस तथा प्रशासन की आड़ में मध्य प्रदेश पुलिस आमजन पर किस प्रकार अत्याचार करती है यह किसी से छुपा नहीं है। जनता के मानव अधिकारों के साथ खिलवाड़ करना पुलिस के रोजमर्रा की आदत में शामिल हो चुका है। पुलिस के अत्याचारों की कथाएं मध्यप्रदेश में किसी न किसी रूप में आमजन द्वारा शिकायतों के वरिष्ठ अधिकारियों के पास दिखाई देती हैं।
यह अलग बात है कि पुलिस वालों के अत्याचारों के खिलाफ की गई शिकायत सीमित रहती हैं ,और उन शिकायतों की जांच का दायरा इतना लंबा होता है कि याची स्वयं एहसास करने लगता है कि उसको अब न्याय प्राप्त नहीं होगा और अन्ततः वह थक हार कर खामोश बैठ जाता है ।
मध्यप्रदेश में आए दिन पुलिस प्रताड़ना ओं की समाचार पत्र पत्रिकाओं में देखने को मिलते हैं। किस प्रकार पुलिस जब अपना डंडा चलाती है तो न्याय अन्याय कुछ नहीं देखती । उसे दोष- निर्दोष किसी से कोई सरोकार नहीं होता , पुलिस गाहे-बगाहे अपनी शक्ति का उपयोग- दुरुपयोग कर लेती है। सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि पुलिस के अत्याचारों के शिकार न्याय की आस लिए हुए दरबदर भटकते हैं और उनको न्याय प्राप्त नहीं होता।
पुलिस प्रताड़नाओ के मामले में राज्य सरकार और जिला प्रशासन विभिन्न स्तर की मजिस्ट्रेट जांच भी कराती है, परंतु इसे दुर्भाग्य कहा जाए कि पुलिस अत्याचार के संबंध में मजिस्ट्रेट जांच में 1% भी पुलिस वालों को दोषी नहीं पाया जाता। परिणाम स्वरूप पुलिस प्रताड़ना के शिकार व्यक्ति को जांच के नाम पर केवल समय की बर्बादी ही हासिल होती है।
परंतु गत दिनों जिस प्रकार मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा अपने एक आदेश के माध्यम से पुलिस प्रताड़ना के शिकार व्यक्ति को 5लाख रुपए का मुआवज़ा देने का जो आदेश दिया है, वह एक नजीर के रूप में लोगों के काम आएगा। और पुनः जनता में न्याय और न्यायालय के प्रति विश्वास जागृत होगा । परंतु यह भी एक अटल सत्य है कि न्यायालय से न्याय प्राप्त करना अभी किसी गरीब व्यक्ति के बस की बात नहीं! अर्थात यदि किसी व्यक्ति को न्याय की उम्मीद है तो उसकी जेब में यदि धन होगा तो उसको न्याय प्राप्त होगा। क्योंकि ऊंची ऊंची अदालतों मैं न्याय के लिए जंग लड़ना किसी गरीब के बस की बस की बात नहीं।
मालूम हो कि इंदौर पुलिस द्वारा एक मामले में गलत व्यक्ति को न्यायिक अभिरक्षा में भेजने के मामले में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पुलिस की गैर जिम्मेदाराना हरकत के कारण ना सिर्फ उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए लिखा पीड़ित व्यक्ति को मुआवजे के रूप में ₹500000 देने की भी आदेश प्रदान किए हैं।
क्या है मामला –
इंदौर पुलिस की गंभीर लापरवाही के एक मामले में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को 68 वर्षीय व्यक्ति को पांच लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। नाम की गफलत के कारण इस बेकसूर बुजुर्ग को हत्याकांड में उम्रकैद की सजा पाने वाले व्यक्ति के स्थान पर चार महीने तक जेल में बंद रखा गया। बड़ी बात यह है कि वास्तविक दोषी की पैरोल पर छूटने के बाद साढ़े तीन साल पहले मौत हो चुकी है।