सरकार के आदेशों का उल्लंघन करने पर चिरायु अस्पताल पर कड़ी कार्यवाही क्यों नहीं करते मुख्यमंत्री
हर बार अस्पताल प्रबंधन को कार्यवाही किए जाने के नाम पर चेता कर क्यों छोड़ देती है सरकार
कोविड महामारी में मरीजो के साथ मनमर्जी करने वाले अस्पतालों पर शीघ्र कार्यवाही करे शिवराज
आपदा में अवसर तलाशने वाले अस्पतालों पर हो कड़ी कार्यवाही
विजया पाठक
एक तरफ जहां प्रदेश की जनता कोरोना के कहर से परेशान है। वहीं, प्रदेश मे संचालित निजी अस्पताल लोगों की परेशानियों को कम करने के बजाय कोरोना के इलाज के नाम पर खासी कमाई करने में जुटे है। आलम यह है कि राजधानी सहित प्रदेश के तमाम बड़े निजी अस्पतालों ने बीते डेढ़ सालों में मनमाने ढंग से पहले राज्य सरकार के आला अफसरों के साथ मिलकर पहले सरकार से करोड़ों रुपए वसूले और अब जनता से इलाज के नाम पर वसूल रहे है। चिंता का विषय यह है कि इस तरह के अस्पतालों में राज्य सरकार का भी किसी प्रकार का कोई होल्ड नजर नहीं आता। अस्पताल प्रबंधन अपनी मनमर्जी अनुसार इलाज के नाम पर आम जनता से लाखों रुपए वसूल रहे है। सबसे ताजा मामला एक दिन पहले का है। पिछले दिनों प्रदेश की शिवराज सरकार ने राज्य के सभी आयुष्मान कार्ड वाले लोगों के कोविड संक्रमण का इलाज अस्पतालों में निशुल्क किए जाने की घोषणा की थी। इसके लिए बाकायदा एक सूची भी जारी कि जिसमें राजधानी समेत प्रदेश के महानगरों के तमाम बड़े अस्पतालों के नामों का जिक्र किया गया है। लेकिन मुख्यमंत्री के बयान के महज 10 दिन के भीतर ही राजधानी भोपाल के चिरायु अस्पताल में एक दिन पहले प्रदेश सरकार के नियमों का उल्लंघन करने का मामला सामने आया है और कोरोना मरीज का इलाज आयुष्मान कार्ड होने के बाद भी निशुल्क करने से साफ मना कर दिया और मरीज के परिजनों से बदतमीजी की। यह पहला अवसर नहीं है जब चिरायु अस्पताल प्रबंधन ने मरीजों के साथ इस तरह का व्यवहार किया हो, इससे पहले भी कई ऐसे मामले आ चुके है लेकिन अब तक सरकार की तरफ से चिरायु अस्पताल प्रबंधन पर किसी प्रकार की कोई संतोषजनक कार्यवाही नहीं की गई। मुझे याद आता है कि अप्रैल 2021 के अंतिम सप्ताह में ऐसा ही एक मामला कोलार में रहने वाले एक बुर्जुग संक्रमण के चलते चिरायु अस्पताल में भर्ती हुए। जहां इलाज के दौरान डॉक्टरों ने उन्हें 6 के बजाय 9 रेमडेसिवीर इंजेक्शन लगा दिए जिससे मरीज की तबीयत खराब होने लगी और उन्हें आनन-फानन में वेंटिलेटर पर शिफ्ट करना पड़ा। जब परिजनों ने प्रबंधन से इस संबंध में जबाव चाहा तो डॉक्टर्स ने उनके साथ मारपीट शुरू कर दी। इतना ही नहीं पुलिस भी इस दौरान महज तमाशबीन बनी मौके पर खड़ी रही और उसने भी कोई कार्यवाही नहीं की। इतना ही नहीं लोगों की जिंदगी से खेलने में कोलार स्थित जेके अस्पताल भी पीछे नहीं है। हाल ही में वहां कार्यरत कर्मचारी आकाश दुबे ने मरीजों के नाम पर जिला प्रशासन से इश्यू हुए रेमडेसिवीर इंजेक्शन की कालाबाजारी कर उन इंजेक्शन को लाखों रुपए में बेच दिया। मरीज को इंजेक्शन के बजाय उसमें पानी भर के लगाए जाते, जिससे जेके अस्पताल में इलाज के लिए जाने वाले मरीज को सही और बेहतर इलाज से वंचित रहना पड़ता और मरीज की मौत हो जाती। अस्पतालों द्वारा उल्टे सीधे चार्ज लगाकर मोटे बिल बसूलने के मामले लगातार सामने आ रहे है। और तकरीबन 61 निजी अस्पतालों और इनके संचालकों के खिलाफ मामले भी दर्ज किए गये है। मगर देखा जाए तो यह सारे अस्पताल किसी भी राजनैतिक एप्रोज़ के लोगों के नही है, इस कारण इन पर ही कार्यवाही हुई यह तो आपदा में अवसर तलाशने वाली छोटी मछलियां है। पर क्या चिरायु मेडिकल या उनके संचालक डॉ. गोयनका पर कार्यवाही होगी या फिर राजधानी भोपाल में जे.के. अस्पताल, सिटी अस्पताल जबलपुर साहित मध्यप्रदेश के कई अन्य बड़े अस्पताल है जो नरपिशाच बन गरीबों का खून चूस रहे है जिसकी जानकारी स्वास्थ्य मंत्री को होते हुए भी कोई कार्यवाही नही हो रही है।
जब राजधानी के अस्पतालों में मरीजों के साथ यह हो रहा है तो जरा सोचिए प्रदेश के अन्य छोटे जिलों में मरीज के साथ क्या हो रहा होगा। कई मरीजों की जान तो बिना इलाज के चली गई और कुछ की समय पर इलाज न मिलने से। इतना सब होने के बाद मुख्यमंत्री का वहीं राजनेताओं वाला जवाब-आयुष्मान कार्ड धारक का निशुल्क इलाज न करने वाले अस्पतालों को बख्शा नहीं जाएगा। आदरणीय मुख्यमंत्री जी, अभी समय अस्पतालों को समझाने का नहीं बल्कि इनके खिलाफ सख्त एक्शन लेने का है। यदि एक अस्पताल पर भी आपने सही ढंग से एक्शन ले लिया, तो बाकी अस्पताल खुद ब खुद अलर्ट हो जाएंगे और मरीजों को सही इलाज मिलना शुरू हो जाएगा। यह वक्त राजनीति का नहीं बल्कि जनता की सेवा और उनकी जान बचाने का है। क्योंकि आप प्रदेश की जनता के लोकप्रिय नेता है और जनता को आपसे काफी उम्मीदें है इसलिए उनकी उम्मीदों पर खरे उतरने का प्रयास करिए।