गुप्तगू के लिए लोग आते रहे…
रोज उनकी कहानी बदलती रही…
अजब देश है, अजब है यहां के सत्ताधारी नेता… जहां शराब, सौंदर्य प्रसाधन, जहरीले कोलड्रिंक्स, विलासिता की सामग्रियां बनाने वाले लोग, खुदगर्ज राजनेता, सियासी दलाल, रिश्वतखोर अफसर, और परजीवी साधू संत अरबों-खरबों से खेलते हैं और देश का अन्नदाता किसान अपने उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए सड़कों पर पुलिस की बर्बरता झेल रहा है, कुछ राजनेताओं के झूठे अहं, कुछ व्यापारियों से अपने मधुर संबंधों को लेकर लगभग 50 दिनों से अधिक समय से किसान सड़कों पर है और अभी तक करीब 121 किसानों की मौत हो चुकी है। भारत जहां क्रिकेट की एक-एक गेंद पर लाखों का सट्टा लगता है और वाजिब दाम के अभाव में किसान आलू-टमाटर सड़कों पर फेंकने मजबूर होते हैं, दूध सड़कों पर बहाकर अपना विरोध प्रकट करने मजबूर होते हैं, क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हमारे देश में 3 कृषि कानून भी किसानों से संवाद किये बिना, उनकी मुश्किलें जाने बिना आनन-फानन में लोकसभा राज्यसभा में पारित करवा कर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करवाकर कानून बना दिया गया हालांकि देश के सर्वोच्च न्याय के मंदिर ने फिलहाल उसे स्थगित कर दिया है वहीं 4 लोगों की एक कमेटी भी किसानों की समस्या को लेकर बना दी हैं जिसमें एक का इस्तीफा आ गया है वहीं बाकी बचे 3 में से 2 तो पहले ही सरकार के कृषि कानून का समर्थन कर चुके हैं? आखिर सुको ने किसी न किसी की सलाह पर ही तो कमेटी के सदस्य बनाये होंगे…? आंदोलनरत किसान संगठन तो इस कमेटी के सामने जाने से इंकार कर चुके हैं।
किसानों की मानें तो अगर सरकार को लगता है कि उनके बनाये गये नये कृषि कानून, किसानों के उत्पादों को अधिक मूल्य दिलाने के लिए लाये गये हैं… तो इसकी क्या गारंटी है कि आने वाले दिनों में मंडियों को निस्प्रभावी कर बड़े व्यवसायी,कृषि उत्पादों के मनमाने मूल्य खुद तय करने लगेंगे। सरकार समय समय पर फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है पर उनकी कानूनी हैसियत क्या है? किसानों का संदेह दूर करने के लिए समर्थन मूल्य को बाध्यकारी और उसके उल्लंघन को संज्ञेय तथा अजमानतीय अपराध बना देने पर सरकार को क्या मुश्किल है…..? किसानों की मांग पर अनाजों के अलावा जल्दी नष्ट होने वाली साग-सब्जियों के लिए भी समर्थन मूल्य क्यों निर्धारित नहीं किये जाते…? इससे तो किसानों सहित आम लोगों को भी राहत मिलेगी lऐसा क्यों लग रहा है कि मोदी सरकार किसानों की जगह कृषि व्यवसाय में उतरने वाले कुछ बड़े व्यवसायियों के साथ खड़ी है…।
और अच्छे दिन आने वाले हैं…?
मोदी सरकार बनने के पहले रसोई गैस सिलेण्डरों पर गैस कंपनियों को सरकार सब्सिडी का पैसा देती थी और आम जनता को सिलेण्डर 400 रुपये में मिलता था, नरेन्द्र मोदी ने सत्ता सम्हालते ही एक नई योजना लांच की, सब्सिडी अब सीधे जनता के बैंक खाते में जाएगी, फिर पता चला कि गैस सिलेण्डर करीब 700 रु. हो गया और पैसा जनता के बैंक खातों में आने लगा…. जनता को समझ में नहीं आया कि हमसे अधिक पैसा लेकर हमें ही राशि वापस क्यों की जा रही है…. धीरे धीरे सब्सिडी कम होती गई और अब तो खत्म हो गई है सिलेण्डर के अब 765 रुपये देने पड़ रहे हैं।
वहीं पेट्रोल-डीजल के दाम देशहित…? में लगातार बढ़ रहे हैं देखना यह है कि किस राज्य में पहले पेट्रोल 100 रुपये तक पहुंचकर रिकार्ड बनता है। राजस्थान के गंगानगर में अभी पेट्रोल फिलहाल 95 रुपये 78 पैसे प्रति लीटर बिक रहा है वहीं देश की औद्योगिक राजधानी मुंबई में 91 रुपये 32 पैसे प्रति लीटर दर पहुंच चुकी है। भारत में यूपीए की सरकार के समय पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ती थी तो भाजपाई (अभी केंद्र सहित कुछ राज्यों में सत्ता में) सड़कों, संसद से लेकर राजघाट तक में प्रदर्शन करते थे तत्कालीन केंद्र सरकार को दोषी ठहराते थे पर स्वयं सत्ता सम्हालने के बाद क्या हो गया….? खैर पेट्रोल 100 रुपये पंहुचने के बाद जगह-जगह स्लोगन होर्डिंग्स लगेगा ‘पेट्रोल पहली बार सौ के पार’ सरकार के नुमाइंदे प्रेस वार्ता कर बताएंगे कि कैसे महंगा पेट्रोल देशहित में है? यह ठीक है कि अर्बन नक्सल, टुकड़े-टुकड़े गैंग, गद्दार गैंग, एण्टी नेशनल और कम्युनिस्ट जनता को भ्रमित करेंगे कि यह जनता का शोषण हैं? पर भाजपा के पास उसका भी जवाब तैयार है। गैस सब्सिडी बिना खबर के समाप्त करने, पेट्रोल-डीजल की कीमत बढऩे को लेकर कुछ लोग जनता को भ्रमित कर रहे हैं मोदी सरकार का हर कदम देशहित और जनता हित में उठाया जाता है, बस जनता सोचने पर मजबूर है कि कहीं “और भी अच्छे दिन आ गये “तो फिर क्या होगा।
बयानबाजी चर्चा में…।
छत्तीसगढ़ जैसे शांति प्रिय प्रदेश में राजनीतिक नेताओं की बयानबाजी को लेकर अब आमजन भी सोच में पड़ गये हैं…. आखिर आरोप प्रत्यारोप किस दिशा में जा रहा हैं, शब्दों की मर्यादा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है…. पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा वर्तमान में प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने कह दिया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मानसिक रूप से बीमार हैं… क्या प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए इस तरह के शब्दों का चयन उचित है? हाल ही में प्रदेश सरकार के आदिवासी मंत्री कवासी लखमा ने कह दिया कि भाजपा के लोग बेशर्म हैं तो उसके जवाब में भाजपा के प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने जवाब में कहा कि मंत्री मदहोश रहते हैं…। एक आदिवासी, निरक्षर,आबकारी मंत्री तथा कई बार के विधायक कवासी लखमा के लिए एक हारे हुए पार्षद की टिप्पणी क्या उचित है…। वैसे पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच भी आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहता है, धान खरीदी, कानून व्यवस्था, केंद्र से असहयोग आदि केसरकारी आरोप पर डॉ. रमन सिंह बयान देते रहते हैं पर हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का पूर्व मुख्यमंत्री को मूर्ख कहने का एक बयान भी चर्चा में है, किस संदर्भ में यह कहा गया यह तो नहीं कहा जा सकता पर ऐसी बयानबाजी से बचना जरूरी है। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर का गोबर को छत्तीसगढ़ का प्रतीक चिन्ह बनाने तथा सरोज पांडे का भूपेश सरकार पर नाच-गाने करते रहने का बयान भी काफी चर्चा में रहा।
काला हिरण और बारनवापारा….
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सबसे करीब बारनवापारा के जंगल अभ्यारण्य में जल्दी ही काले हिरण कुलाचें मारते आम लोग देख सकेंगे। फिल्म अभिनेता सलमान खान के शिकार मामले में चर्चित काले हिरण अब बारनवापारा जंगल में छोडऩे की तैयारी है। एसडीओ वन विभाग, आर.एस. मिश्रा के अनुसार काले हिरणों का समूह बारनवापारा के एक बाड़े में दिल्ली से लाकर रखा गया है, उन्हें 5 हेक्टेयर के बाड़े में रखने के बाद उनको छग की आबोहवा भा गई है, उनकी देखरेख की जा रही है, भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। उन्हें जंगल में रहकर अपने लिए खुराक इंतजाम का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है वे अब जंगल जाने भी लगभग तैयार हैं। बारनवापारा में 25 हेक्टेयर क्षेत्र काले हिरणों के लिए सुरक्षित किया गया है। वैसे वाईल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के विशेषज्ञों ने भी काले हिरणों को खुले जंगल में छोडऩे की अनुमति दे दी है। यहां यह बताना जरूरी है कि शनिवार-रविवार को बारनवापारा अभ्यारण्य में काफी भीड़-भाड़ हो जाती है, कई जिप्सी भी वहीं के लोगों की भी जंगल के भीतर चलती है। सूत्रों की मानें तो भीड़-भाड़ के कारण जंगली जानवर काफी भीतर चले जाते हैं इसलिए कम ही दिखते हैं इसलिए सप्ताह में 3-4 दिन ही अभ्यारण्य खोलने पर भी विचार किया जा रहा है।
और अब बस….
0 भूपेश सरकार की गोबर खरीदी योजना देश में पहली है हालांकि अब भाजपाई इसे केंद्र की योजना बताने में पीछे नहीं है…।
0 एक आईएएस अफसर कार्यवाहक मुख्य सचिव नहीं बनने से दुखी है, उन्हें लग रहा था कि उन्हें ही मौका मिलेगा। पर एसीएस सुब्रत साहू को कार्यवाहक मुख्य सचिव बना दिया गया। ज्ञात रहे कि मुख्य सचिव अमिताभ जैन कोरोना संक्रमित होने के कारण अवकाश पर हैं।
0 एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर प्रतिनियुक्ति पर जाने की तैयारी में हैं, दरअसल एक महिला आत्महत्या प्रकरण फिर खुलने की खबर है।
0 कोरोना वैक्सीन देने की शुरुवात छग में भी हो गई है मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने देश के सभी नागरिकों को नि:शुल्क वैक्सीन लगाने की मांग केंद्र सरकार से की है।