सुख शांति ओर संतोष की भावना को आत्मसात करना ही आत्मीय संतोष है!
आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हिन्दू नववर्ष/ गुड़ी पडवा का पावन दिन है ऐसे में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए अचानक एक दिलचस्प चिंतन मन में आया कि इंसान कितना लापरवाह है, कितना नासमझ है। जो चीज़ें विधाता ने उसे मुफ्त में प्रदान किया है उसे वह तवज्जो ही नहीं देता, और जो चीज़ें मिलना असंभव है उसके पीछे भागता रहता है। उदाहरण के लिए पैसे से हम अपनी सभी भौतिक ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं, जो हमारे जीवन को आरामदायक बना सकता है लेकिन इसका हमारी आंतरिक खुशी से कोई लेना-देना नहीं है। शॉपिंग सेंटर से उत्तम स्वास्थ्य, आनंद के पल, निश्छल प्रेम, जीवन में संतुष्टि, शांति नहीं खरीदी जा सकती, वरना अमीर लोग जितने साल चाहते, उतने साल सुखी जीवन जीते पर वे तो उल्टा बड़े-बड़े विवादास्पद मसलों कोर्ट कचहरी में फ़ंसे पाये जाते हैं। विधाता ने हमें मानव शरीर नामक एक सर्वोत्तम मशीन के साथ दुनिया में भेजा है। अब इसे सही तरीके से इस्तेमाल करना अपने ऊपर है। चाहे लाखों रुपये खर्च कर लें हमें कुदरती आंख, नाक, कान नहीं मिल सकती। चाहे शरीर का कोई भी अंग हो, बेशक ट्रांसप्लांट होते हैं लेकिन क्या वे हमारे असली अंगों जैसे रिलायबल हो सकते हैं? पर हम इसका मोल नहीं समझ पाते। क्या हमने उन चीजों की तरफ गौर फरमाया जिन्हें हम इंसान अपने अस्तित्व के लिए उन पर निर्भर होने के बावजूद महत्व नहीं देते हैं। माता-पिता, वायु, जल, प्रकृति, स्वास्थ्य, मित्र, मुस्कान, हँसी, खुशी, प्रेम, बुद्धि, आत्म संतुष्टि, प्रतिभा, आशा, विश्वास मन की शांति आदि। लोग जीवन भर इन चीजों को प्राप्त करने की लालसा रखते हैं। वे स्वास्थ्य देखभाल के लिए पैसे का उपयोग कर सकते हैं, भगवान के साथ सौदा करने के लिए पैसा, प्रतिभा को पोषित करने के लिए पैसा लेकिन क्या वे प्रतिभा, भगवान के प्रति भक्ति खरीद सकते हैं? नहीं! ये मुफ्त हैं। हम में से प्रत्येक अद्वितीय है और किसी न किसी गुण से लबरेज़ हैं, हमें बस उसे खोजना है।
बहुत से अमीर लोग हैं जो बेहद असभ्य, ओछी प्रवृति के होते हैं और बहुत से गरीब लोग हैं जो उत्कृष्ट मानवीय गुणों के धारक होते हैं। औरों से असीम स्नेह पाते हैं क्योंकि औरों के प्रति शिष्टाचार और सम्मान प्रदर्शित करते हैं। इसलिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी के पास कितनी संपत्ति है, जीवन के प्रति अपने सकारात्मक दृष्टिकोण से हम इस दुनिया में आनंदमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं। यह किसी शॉपिंग मॉल में फ्लैट 50% बिक्री की तरह है लेकिन इस बिक्री में हमें मुफ्त उत्पादों/सेवाओं का लाभ उठाने के लिए अपनी सकारात्मक बुद्धि विवेक का निवेश करना होगा। आइए हम उन बेशकीमती चीजों को पहचाने जो किसी भी खरीद योग्य चीजों से अधिक मूल्यवान हैं। रात्रि में गगन के तारों को निहारें, भोर की रमणीयता को अनुभूत करने से न चूकें। क्या कभी बादलों में बनी आकृतियों को देखा है और उस अद्भुत घटना को देखा है जब आकाश सूर्योदय के पहले स्वागत के लिए रंगोली सजाता है? क्या समुद्र तट पर लहरों से मूक वार्ता कर पाये? ऐसी अनेकों गतिविधियाँ हो सकती है जिनमें खुशियां मुफ्त में निहित हैं, उन्हें हासिल करें। माॅल्स में सेल लगती है तो भीड़ होती है और कुछ पल की खुशी होती है लेकिन सभी बेशकीमती इनायतें जो प्रकृति में प्रचुर मात्रा में हैं और हमारे लिए मुफ्त में उपलब्ध है उनका स्टॉक क्लीयरेंस सेल नहीं है इसलिए इसके लिए दौड़ें नहीं बल्कि इसे आत्मसात करें और सुख, शांति और संतोष की भावना महसूस करें। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं नेक शुभकामनाओं के साथ हृदय से प्रार्थना।
शशि दीप ©✍
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई
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