एक दिव्य मानवीय रिश्ते की अनोखी मिसाल!
आत्मीय मित्र कला रमेश जी का गत मंगलवार अमरनाथ हेलीकाप्टर क्रैश में दुखद निधन : अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि
कल अमरनाथ पवित्र भूमि में एक अत्यंत हृदयविदारक घटना ने मुझे ही नहीं पूरे देश को बेहद विचलित किया। श्रद्धालुओं को दर्शन पश्चात वापस ले जाने वाले एक हेलीकाप्टर के दुर्घनाग्रस्त हो जाने से मेरी आत्मीय दोस्त/ मार्गदर्शक/बड़ी बहन कला रमेश जी भगवान महादेव के चरणों में विलीन हो गयीं। गौरतलब हो कि उन्होंने कल घटना से कुछ घंटे पहले ही मुझे वीडियो कॉल किया था और अमरनाथ भूमि तक पहुँच पाने का उत्साह उनके चेहरे पर देखते ही बन रहा था। उसमें सवार सभी यात्रियों व पायलट का दुखद निधन हो गया।
यह मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति तो है ही लेकिन दुनिया ने भी एक शुद्धात्मा को खो दिया। ईश्वरीय कृपा से मैं ये दावे के साथ कह सकती हूँ कि वे एक दुर्लभ व्यक्तित्व की धनी थीं, जिनकी सकारात्मक आभा में एक अद्भुत आकर्षण था। मेरी मित्रता उनके साथ सिर्फ 7 साल पुरानी थी लेकिन उस सात में हम दोनों ने एक दिव्य मानवीय रिश्ते की ऐसी मिसाल कायम की, ईश्वर कृपा से साथ मिलकर इतने सारे नेक कामों में संलग्न रहे कि आज उनके जाने पर लोग मेरे व उनके परिवार के साथ दुःख में ऐसे शुमार हैं जैसे भले प्रत्यक्ष न मिलें हों पर सभी जान-पहचान के लोग उनके वाइब्स को अनुभूत कर पाते थे। इसलिए कहा गया है कि “ज़िन्दगी लम्बी न हो तो कोई बात नहीं पर बड़ी होनी चाहिए।” आज बहुत से मेरे मित्रों के हृदयस्पर्शी सांत्वना संदेशों ने मुझे अत्यंत अभिभूत व आश्चर्यचकित किया और मुझे ये एहसास दिलाया कि इस पुण्यात्मा के अंदर ऐसी क्वालिटीज थीं कि उनसे मिलते ही औरों पर एक अद्वितीय प्रभाव पड़ता था।
दरअसल उनके सानिध्य में रहते हुए मैंने देखा कि वे ऐसी दुर्लभ सिद्धांत-प्रेमी गुणीजन-मंडली में शुमार रहीं जो बढ़ती उम्र, जीवन की परिस्थितियों या बदलते परिवेश से लगभग अप्रभावित उसी रूप में बने रहने के लिए अडिग होते हैं, जिस रूप में परमात्मा ने हम सभी को निर्मित किया है। दिलचस्प बात यह है कि ऐसे अतिसाधारण लोग कभी वैसे विचार के बीज मन में अंकुरित नहीं करते कि उनके जीवन जीने का यह अंदाज़ उन्हें महत्ता के शिखर पर पहुँचानेवाला, सबसे बड़ा तप है। उनका असत्य व छल-प्रपंच जैसे विषैले तत्वों से दूर-दूर का वास्ता नहीं होता व संसारिक जीवन जीते हुए भी उनकी आत्मा प्रदीप्तमान, हृदय निर्मल व मन शांत होता है। वे अपनी साँसों में मुख्य रूप से सिर्फ़ प्रेम ही एक्सहेल व इनहेल करते हुए पाये जाते हैं। वे एक और सबसे गूढ़ जीवन दर्शन आत्मसात करते प्रत्यक्ष देखी जा सकती थीं, जो उनके सच्चे आध्यात्मिक होने का प्रमाण भी है वो यह कि औरों से जब मिलती तो ऐसे जैसे जल में जल मिल जाता है और पृथक होना है तो ऐसे जैसे पत्थर का टुकड़ा पानी से अलग होने के बाद, कुछ देर नमी लिए फिर सूख जाता है। उन्हें इस बात का भान ही नहीं होता था कि वे दुनिया में असाधारण कहलाने लायक गुणों की धारक हैं, ये मेरा सौभाग्य रहा कि मैं उनके सदगुणों को पहचान सकी। जाहिर सी बात है इस प्रकार का आभामंडल कष्टप्रद व कठिन साधना का परिणाम होता है पर ऐसे व्यक्तित्व सहजता के साथ प्रकृति व पेड़-पौधों की भांति सिर्फ अपना सर्वश्रेष्ठ देने, कर्तव्यपरायण रहने व धर्म के मार्ग से विमुख नहीं होने के प्रति स्वयं से वचनबद्ध होते हैं। उपरोक्त घटना में मृत तमाम श्रद्धालुओं के परिवारों के प्रति साहहभुति प्रकट करते हुए अपनी मार्गदर्शक व आत्मीय मित्र (बड़ी दीदी) के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ जिनकी अच्छाइयों को लोग बिना बताये ही अनुभव कर पाते थे। और इसीलिए अपने महान कर्मों से वे बरसों तक दुनियां में मरणोपरांत भी जीवित रहेंगी।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥
ॐ शांति।
– शशि दीप ©✍
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई
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