प्राकृतिक ईश्वरीय न्याय का नाम है सार्वलौकिक मां का अनुसरण
विभिन्न धर्मों के हर त्यौहार के पीछे सामाजिक कारण होता है। मनुष्य तो सामाजिक प्राणी है ही लेकिन इतना जन-सैलाब है जिसके भीतर न जाने कितनी विचारधाराओं का समागम है कि युगों-युगों से मानव समाज के भीतर फैली अनगिनत बुराईयों के प्रति सजग रहना, संघर्ष करना और उनका अंत करना अनवरत चलता रहा है और संभवतः चलता रहेगा। अभी इन दिनों हमारी असीम आस्था व श्रद्धा भक्ति की पराकाष्ठा, देवियों की देवी, मां दुर्गा अपने 9 दिवसीय वार्षिक प्रवास में पृथ्वीलोक पधारे हैं। सार्वलौकिक माँ को मानने वालों का परम विश्वास है कि दुर्गा माँ प्रतिवर्ष अपने भक्तों की खोज-खबर लेने स्वर्गलोक से आतीं हैं और अपने साथ दिव्य शक्ति का खज़ाना लाती है। जो लोग सच्ची श्रद्धा रखते हैं और माँ के समक्ष अपनी समस्या निवेदित करते हैं माँ उनकी ज़रूर सुनती हैं व उनकी अन्तश्चेतना को जगा कर उन्हें अवश्य शक्ति व सामर्थ्य देतीं हैं कि वे अपने
जीवन की परेशानियों के निवारण या विषम परिस्थितियों से उपजित कष्टों का डटकर मुकाबला कर सकें।
दुर्गा पूजा मनाने के पीछे भी सामाजिक कारण है। इसे सार्वजनिक रूप से मनाने के पीछे सामूहिक शक्ति के लिए प्रार्थना करना जो समाज से बुराईयों के उन्मूलन में चमत्कारी प्रभाव डाले। हालाँकि समस्त आवाम में से एक-एक के व्यक्तिगत उन्नयन के परिणामस्वरूप ही सामाजिक बुराईयां शनैः शनैः कम होती जाती है। वास्तव में बुराई में लिप्त मनुष्य अपने अहंकार से ग्रसित होता है व समाज में किसी न किसी रूप में मानसिक, शारीरिक या आर्थिक शोषण में व्यस्त रहता है। वह अपने अन्दर के राक्षस को नहीं देख पाता और समाज ऐसे असामाजिक तत्वों से दूषित होता है।जैसे कि अत्यंत दुर्गंधयुक्त कूड़ाकरकट को किसी साफ-सुथरी जगह के बीच में फेंक दिया गया हो, इसकी दुर्गंध अत्यधिक हानिकारक हो सकती है और बीमारियों का कारण बन सकती है। ठीक उसी प्रकार ऐसे तत्वों की मौजूदगी से हर प्रकार का अहित होना निश्चित है। ऐसे लोग समाज के शोषक हैं जो अपने झूठे अभिमान के कारण ऊपर से सुखी व संपन्न प्रतीत हो सकते हैं और सरल साधारण लोगों को भ्रम हो जाता है कि प्राकृतिक ईश्वरीय न्याय जैसा कुछ भी नहीं होता क्योंकि ऐसे अधर्मी अपने दुष्कर्मों से अर्जित धन की शक्ति से राजनीति या समाज में ऊँची पदवी पा लेते हैं लेकिन मनुष्य के कलंक और पाप उससे नहीं छुप संपत्ति व झूठी मान प्रतिष्ठा से मनुष्य के अन्दर के राक्षस को छुपा पाना सर्वथा भ्रामक है। बुराई का दृश्टिगत होना व उसका संहार होना निश्चित है। इसी इसी यथार्थता को प्रमाणित करते हुए दुर्गापूजा उत्सव अनीति, अत्याचार, तामसिक प्रवृत्तियों तथा सभी बुरी शक्तियों के नाश के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है।
माँ हम सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनायें रखें ताकि दुर्गा पूजा के वास्तविक महत्व को समझकर सभी भक्त स्वयं के भीतर से व संसार में फैली तमाम बुराईयों का नाश करने में अपना अहम योगदान दे सकें। अंतर्मन से यही प्रार्थना यही शुभकामना।
– शशि दीप ©✍
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई
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