व्यक्तित्व व कृतित्व का अनोखा सम्मिलन!

विगत रविवार को मेरे बिलासपुर आगमन पर साहित्यकार बिरादरी द्वारा एक भव्य व गरिमामय अभिनन्दन समारोह आयोजित किया गया उसमें अनेकों बुद्धिजीवियों, जाने-माने शिक्षाविद व साहित्यसाधकों ने शिरकत की। अब ऐसे विशेष आयोजन में पूरे कार्यक्रम में केन्द्रबिन्दु व्यक्तित्व के बारे में सबकी अपनी अलग अलग राय हो सकती है। जाहिर सी बात है किसी के सम्मान अभिनन्दन में उपस्थित रहने में दिलचस्पी उन्हें ही हो सकती है जो अभिनंदित के व्यक्तित्व व कृतित्व दोनों से प्रभावित हो, आश्वस्त हों और स्वयं भी उनसे जुड़े रहने पर गौरवान्वित हों। मैंने भी इस महत्वपूर्ण तथ्य के बारे में चिंतन तब किया जब इस अदनी सी विचारक के लिए आयोजित अभिनन्दन समारोह में कार्यक्रम के मध्य चरण में, सूत्रधार विनम्रता के पर्याय, वरिष्ठ साहित्यकार / प्रवर्तक डॉ राघवेंद्र दुबे जी ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में उपस्थित सहसाधकों के समक्ष मेरे बारे में रेखांकित किया। जिसे सुनकर विनम्र श्रोताओं ने करतल ध्वनि से स्वागत किया और वही मेरे लिए हृदयतल में सहेजने व कृतज्ञता के साथ प्रवाहमय बने रहने के लिए अनमोल पूँजी अर्जित हुआ।

 

ईश्वर से प्रार्थना है कि हम सब की चेतना सदैव जागृत हो, ईश तत्व अनुभूत करते हुए अपना आचरण, व्यवहार व लोगों से हम कैसे मिलते हैं, बात करते हैं, रहते हैं, आभा कितना प्रभावशाली रख पाते हैं तथा कृतित्व यानी अच्छा सृजन हो, रचनात्मक कार्य, निस्वार्थ भाव से सामाजिक सेवा, अन्य धर्म कार्य व सूत्रधार के रूप में अपनी सोच का कुशल निष्पादन करने में सक्षम इन दोनों का आपस में उत्कृष्ट संयोजन कर सकें व विश्व में शांति व भाईचारा स्थापित कर सकें।

  • – शशि दीप ©✍
  • विचारक/ द्विभाषी लेखिका
  • मुंबई
  • shashidip2001@gmail.com