अभिव्यक्ति की विभिन्न विधाओं पर पाठक का दृष्टिकोण!

अक्सर देखने सुनने में आता है कि कवि, शायर व लेखकों की अभिव्यक्तियों की विभिन्न विधाओं को अधिकतर पाठक या तो रचनाकार के व्यक्तिगत जीवन की वर्तमान स्थिति या किसी परिचित के जीवन से जोड़कर अटकलें लगाते हैं या अपने जीवन से जोड़ लेते हैं। अब ऐसे में यदि अभिव्यक्ति सकारात्मक व प्रेरणादायी है तब तो सब ठीक है, लेकिन यदि दुःख, विरह, विषाद, क्रोध या उदासी से सम्बद्ध है तब पाठक उसमें निहित भाव को दुनिया के वृहद परिदृश्य का आइना न समझकर उसे लेखक के व्यक्तिगत परिस्थितियों से लिंक कर अटकलें लगाते हुए उसकी ज़िन्दगी को झांकने की कोशिश करने लगते हैं। और इसलिये कई बार समाज का आइना बनने की उसे भारी कीमत चुकानी पड़ती है। क्योंकि आज के युग में शब्द युद्ध, सशस्त्र युद्ध से कहीं अधिक संहारक हो गया है और उसमें हथियारों से कहीं अधिक शक्ति दृष्टिगत होती है। लोग लेखक/ शायर के मानवीय प्रवृत्तियों पर भी सवाल उठाना शुरू कर देते है। इस श्रेणी में पत्रकार, प्रखर राजनीतिक/ सामाजिक समीक्षक व शायर बिरादरी के लोग आते हैं। ऐसे लेखक रोज़ कलम चलाते समय, विनम्रता के साथ अपनी वीरता का परिचय देते हुए निर्भीक व निश्चिन्त होकर जनता का सामना करने के लिए खुद को पहले आश्वस्त करते हैं। ऐसे लेखकों की लेखनी को बारम्बार नमन है। शायरों की प्यार-मोहब्बत, जुड़ाव-बिखराव, रिश्ते, ज़िन्दगी का फलसफा, दुनिया की विडंबनाओं इत्यादि से संबंधित नाना प्रकार की शायरियों/नज्मों को पाठक महसूस न करके शायर के दरवाज़े को खटखटाने पहुंच जातें हैं कि कहीं वो किरदार वो खुद तो नहीं। सचमुच विचित्र दुनिया है, बहुत सूझबूझ से सामना करना पड़ता है।

 

दरअसल, पाठक को ये समझना चाहिए की अगर लेखक ने कुछ स्पष्ट नहीं किया है इसका मतलब वह दुनिया में बहुतायत पाई जाने वाली प्रवृत्तियों को अभिव्यक्त कर रहा है, और पाठक को उसकी अभिव्यक्ति, भावों को शब्दों के परिधान में संवारकर प्रकट करने की कला व मुख्य संदेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए तथा निहित विचारों को सुना व समझा जाना चाहिए।

मेरे लिखने की विधा काल्पनिक नहीं है मैं अक्सर कोई भी घटना अपने जीवन में अनुभूत करने के बाद ही लिख पाती हूँ और उन्हें ही ललित कहानियों का जामा पहनाकर पेश करती हूँ, शायद मेरे पाठक मुझे इसी विधा में माहिर होने के लिए स्नेह व आशीर्वाद प्रदान करते रहें हैं क्योंकि वे उन घटनाओं को अपने जीवन के इर्द गिर्द पाते हैं। ऐसी लेखनी सिर्फ कल्पना के आकाश में विचरण करते हुए उसमें विद्यमान हवाई कागज के ऊपर चलाया कलम नहीं लगता बल्कि लेखक के हृदय की गहराई को छूकर, विसरित होता मालूम पड़ता है। इसलिये मेरे सामने ज्यादा सवाल नहीं आते।

खैर, सभी प्रकार की लेखन सामग्रियों के अलग-अलग ग्राहक हैं और सबका अपना मज़ा है और निश्चित रूप से सुन्दर शब्दों में पिरोए भाव हमारे विचारों की आत्मा है। देश, काल, विभिन्न हालात, किरदार व विषयवस्तु के अनुसार अर्थ बदलते रहते हैं, इसलिए एक अच्छा लेखक अपनी भाव व्यंजना पर अपना इतनाअधिकार रखता है कि उसकी बात का गलत अर्थ न निकाला जाये लेकिन अगर पाठक भी उसे वृहद दृष्टिकोण से समझे, व्यक्तिगत न ले और रचनाकार के व्यक्तिगत जीवन को झाँके या उसकी मानवीय प्रवृत्तियों पर प्रहार न करे तो अभिव्यक्ति की विभिन्न विधाओं से देश, दुनिया, समाज अत्यधिक लाभान्वित हो सकती है।

शशि दीप ©विचारक/ द्विभाषी लेखिका मुंबई shashidip2001@gmail.com