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अपने जन्म के उद्देश्य को खोजना व उस पर क्रियान्वयन ही जीवन का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए!

जैसे-जैसे मनुष्य की आयु बढ़ती जाती है, उसके अन्दर संज़ीदगी आना स्वाभाविक है, खासतौर पर विचारशील बिरादरी के लोगों के चिंतन में यह सवाल ज़रूर उठता है कि आखिर उसका इस दुनिया में आने का उद्देश्य क्या है? वह इस बात से भली-भांति आश्वस्त होता है कि यह जीवन नश्वर है अर्थात हममें से कोई भी यहाँ हमेशा रहने वाले नहीं है। भले ही आयु सीमा का अंदाज़ा तो है पर कौन कब जायेगा, कैसे जायेगा इसका तनिक भी भान नहीं, लिहाज़ा चिन्ता करके भी कोई फायदा नहीं और कहीं विचार सागर की गहराई में जाने का प्रयास करें भी तो जीवन के गूढ़ रहस्यों की मीमांसा महज वक्त बर्बाद करने से ज्यादा कुछ नहीं, और अंत में किसी अर्थहीन तर्क के अलावा कुछ हासिल नहीं हो सकता। खैर जो भी हो पर सांसारिक जीवन में मन का स्थिर होना तो नामुमकिन है इसलिए वैराग्य भाव का अभ्यास करने के बावजूद, इस छोटी-सी जिंदगी में, हमने जो बड़ी-बड़ी योजनाएं बना रखी है, दबी ख्वाहिशें हैं, परिजनों, आत्मीय मित्रों के साथ इतने जुड़े हुए हैं कि उनसे अलग होने की या उन्हें छोड़कर जाने की भावना या कल्पना भी हमें बेहद भयभीत कर देती है।

 

परन्तु सच्चाई का सामना तो एक दिन करना ही है, बड़े से बड़ा प्रयास भी मृत्यु को नहीं टाल सकता। इसलिए अपने अस्तित्व को सार्थक बनाने के लिए अपने होने के उद्देश्य को खोजने की जिज्ञासा लाना और ज्ञात होने पर, उस पर क्रियान्वयन, ही जीवन का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए।

 

संसार के महान दार्शनिकों ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि संसार में प्रत्येक जीव को विशेष उद्देश्य के लिए ही निर्मित करके अवतरित किया गया है फलस्वरूप ईश्वर प्रदत्त इस अद्भुत काया को, मन-मस्तिष्क को स्वस्थ रखना तथा अपनी अंतरात्मा को पवित्र रखना, हमारी सर्वप्रथम ज़िम्मेदारी है। क्योंकि ध्यान रहे हमारा नहीं है, अंत में इसे सही-सलामत लौटाना भी है, ताकि परमात्मा में मिलने के बाद आत्मा को शांति की प्राप्ति हो सके।

 

ये जीवन सचमुच अद्भुत है और इसके कई रोचक पहलू हैं। यहां भान्ति-भान्ति के लोग हैं और अनेकों परिस्थितियों की चुनौतियां सबके समक्ष रखी जाती है। लेकिन इन्सान अपने जीने के अंदाज़ की वज़ह से उम्र भर अनेकों तकलीफ़ों का सामना करता है, दिल पर बोझ और मन में मैल लिए फिरता है, जबकि खुदा ने तो सबकी ज़िन्दगी आसान ही बनाया है, आते और जाते वक्त खाली हाथ रखने की सुविधा दी गयी है। फिर लोग इतने परेशान क्यों रहते हैं?

 

इसलिए बस यह समझना ज़रूरी है कि यहाँ हमको भेजने का उनका मक़सद क्या है? फ़िर बस उन्हीं के इशारे पर चलना है। और उनके साथ रहे फिर कुछ भी किया हुआ कभी बेकार हो ही नहीं सकता। हमारे जाने के बाद भी संसार में हमारा कुछ न कुछ रह जायेगा और फिर विदाई की बेला में शायद कोई मोह न रह जायेगा! अंत में चार पंक्तियों के साथ अपने कलम को विराम देती हूँ।

 

हम जो भी अच्छा काम करते हैं, 

वो खुदा की मर्ज़ी से ही होता है, 

लोग सोचते हैं कि हम कर रहे हैं 

पर सब “उनके” इशारों से होता है 

कोशिश है हमारी ऊपरवाले 

का हर मक़्सद मुकम्मल हो, 

रहें उनके वफ़ादार इतना जैसे 

उनकी इबादत में लीन हों।

 

 शशि दीप  मुम्बई 

shashidip2001@gmail.com