पिछडे वर्ग की नाराजगी भारी पड़ सकती है शिवराज सरकार को?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर रही है सरकार
विजया पाठक,
मध्यप्रदेश में आदिवासी के हितैषी बनने की होड़ को लेकर चल रहा सियासी संग्राम अभी थमा भी नहीं था कि सत्ताधारी दल भाजपा इन दिनों पिछ़डा वर्ग समाज की अनदेखी को लेकर कटघरे में खड़ी दिखाई पड़ रही है। दरअसल बीते कुछ महीनों से प्रदेश में आदिवासी बाहुल्य इलाकों के विकास और आदिवासियों के पक्ष को लेकर प्रदेश सरकार ने अनेक योजनाओं की घोषणाएं की हैं। इनमें से कई योजनाओं का लाभ सीधे आदिवासी समाज के लोगों को मिलने भी लगा है। आदिवासी समाज को लेकर सरकार द्वारा खोले गए खजाने को लेकर अन्य वर्गों में विवाद की स्थिति बनती दिखाई पड़ रही है। लोगों का कहना है कि प्रदेश सरकार को सिर्फ आदिवासियों की चिंता है बाकी समाज व वर्ग के लोगों को उनकी कोई फिक्र नहीं है, ऐसे लग रहा है मानो शिवराज सरकार को सत्ता दिलाने में सिर्फ आदिवासी समाज का हाथ है।
हम जानते हैं कि प्रदेश में ओबीसी वर्ग की बहुत बड़ी जनसंख्या है। इस तरह से यदि इस वर्ग की अनदेखी होती रही तो आने वाले 2023 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सरकार को परेशानी हो सकती है। यह वहीं वर्ग है जिसका सपोर्ट बीजेपी को मिलता रहा है।
पिछड़े वर्ग को स्कॉलरशिप से भी वंचित होना पड़ा है
पिछड़ा वर्ग के कॉलेज में पढ़ाई में कर रहे लगभग 6 लाख छात्रों को सरकार द्वारा दी जाने वाली स्कॉलरशिप से वंचित होना पड़ रहा है। स्कॉलरशिप रोके जाने को लेकर सरकार का तर्क है कि बजट नहीं है। जबकि आदिवासी समाज के लिए सरकार द्वारा लाखों-करोड़ों रूपए खर्च कर कई कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सीधे उनको दिलवाया जा रहा है। गौरतलब है कि पिछड़ा वर्ग के इन छात्रों को सरकार द्वारा आईआईटी, आईआईएम, आईआईएफएम, मेडिकल सहित राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा में शामिल होने और परीक्षा पास करने के उपरांत पढ़ाई के दौरान सहायता दी जाती है। वर्ष 2019-20 से लेकर अभी तक स्कॉलरशिप के लगभग 1600 करोड़ रुपए छात्रों देना सरकार द्वारा शेष है।
आदिवासियों पर मेहरबानी की एक वजह यह भी
प्रदेश सरकार द्वारा आदिवासी समाज पर की जा रही इस मेहरबानी की बड़ी वजह वोटबैंक तैयार करना है। दरअसल प्रदेश के अधिकतर जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में लगभग 30 प्रतिशत से अधिक जनजातीय समाज का वोटबैंक है। शिवराज सरकार इन्हें साधने के लिए कोशिश कर रही है। आगामी विधानसभा चुनाव प्रदेश सरकार किसी प्रकार का रिस्क नहीं लेना चाहती है, इसीलिए भाजपा चुनाव के लगभग दो वर्ष पहले से ही आदिवासी वोटों को साधने के लिए जुट गई है।
अन्य वर्गों की अनदेखी पड़ सकती है भारी
विशेषज्ञों की मानें तो हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को अधिकतर सीट जनजातीय बाहुल्य इलाकों से प्राप्त हुई हैं। इससे पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को आदिवासी वोटों को न साधने के कारण हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में इस बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा किसी प्रकार का रिस्क नहीं लेना चाहते हैं। लेकिन अगर पार्टी ने अन्य वर्गों की अनदेखी अधिक की तो इसका खामियाजा भी सरकार को भुगतना पड़ सकता है। प्रदेश में पहले से मंहगाई की मार और उसके बाद आदिवासी समाज के लिए करोड़ों रूपए की योजनाओं से पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग बहुत अधिक संतुष्ट नहीं दिखाई पड़ता।
कुछ इस तरह है प्रदेश में जातीय गणित
2013 में 54% सवर्णों ने भाजपा को और 25% ने कांग्रेस को वोट दिया था। अब सवर्ण दोनों से नाराज हैं। राज्य में 115 के जादुई आंकड़े वाली विधानसभा में 82 रिजर्व सीटें हैं। 1957 मध्यप्रदेश के पहले चुनाव के समय हर पांचवां विधायक ब्राह्मण वर्ग से था, यानी 20%, 1972 में यह 25% हो गया पर इसके बाद हालात बदले। 1980 के बाद से अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह के जमाने में राजपूत हावी होते रहे। भाजपा के आने के साथ उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान के युग में ओबीसी को बढ़ा़वा मिला। लंबे समय तक आदिवासी और अनुसूचित जाति को कांग्रेस का तय मतदाता ही माना जाता था। भाजपा पहले ब्राह्मण और बनियों की पार्टी मानी जाती थी। ओबीसी का साथ मिलने से उसे बहुमत मिला और अब वो आदिवासी समाज को साधकर अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहती है।
शिक्षकों की भर्ती में 27 फीसदी ओबीसी रिजर्वेशन पर रोक
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर रही है सरकार
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण मामले में सरकार को आड़े हाथ लिया है। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार की तरफ से ओबीसी वर्ग के शिक्षकों की भर्ती पर 27 फीसदी आरक्षण देने वाले आदेश पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में प्रदेश सरकार से कहा है कि ओबीसी वर्ग को 14 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। हाईकोर्ट में लंबित प्रकरणों छोड़कर पूर्व में राज्य सरकार को 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के लिए अपना अभिमत दिया था। ओबीसी को 14 फीसदी से ज्यादा आरक्षण न देते हुए डबल बेंच ने राज्य सरकार को नोटिस जारी है। प्रदेश सरकार की ओर से शिक्षकों की भर्ती में ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी और ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण देने से आरक्षण की सीमा 73 फीसदी हो जाएगी। अनुसूचित-जाति को 20 फीसदी, अनुसूचित-जनजाति को 16 फीसदी और ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण देने प्रावधान है। इस प्रकार यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है।