संसार के दुर्लभ सिद्धांत-प्रेमी गुणीजन!
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संसार में कई सरल-सीधे, विनम्र व सत्य के प्रति पूर्णतः निष्ठावान इंसान ख़ामोशी से कई ऐसे कार्य कर रहे होते हैं, जो भेड़चाल प्रवृत्ति वाले सोच भी नहीं सकते। उनके सानिध्य में रहते हुए गहराई से अवलोकन करने पर स्पष्ट होता है कि दरअसल ऐसे दुर्लभ सिद्धांत-प्रेमी गुणीजन-मंडली बढ़ती उम्र, जीवन की परिस्थितियों या बदलते परिवेश से लगभग अप्रभावित बिल्कुल उसी रूप में बने रहने के लिए अडिग होते हैं, जिस रूप में परमात्मा ने हम सभी को निर्मित किया है। दिलचस्प बात यह है कि ऐसे अतिसाधारण लोग कभी वैसे विचार के बीज मन में अंकुरित नहीं करते कि उनका ऐसा जीवन जीना उन्हें महत्ता के शिखर पर पहुँचानेवाला, सबसे बड़ा तप है। उनका असत्य व छल-प्रपंच जैसे विषैले तत्वों से दूर-दूर का वास्ता नहीं होता व संसारिक जीवन जीते हुए भी उनकी आत्मा प्रदीप्तमान, हृदय निर्मल व मन शांत होता है। वे अपनी साँसों में मुख्य रूप से सिर्फ़ प्रेम ही एक्सहेल व इनहेल करते हुए पाये जाते हैं। इसी तरह वे एक और सबसे गूढ़ जीवन दर्शन आत्मसात करते प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं जो सच्चे आध्यात्मिक होने का प्रमाण भी है वो यह कि औरों से जब मिलें तो ऐसे जैसे जल में जल मिल जाता है और पृथक होना है तो ऐसे जैसे पत्थर का टुकड़ा पानी से अलग होने बाद, कुछ देर नमी लिए फिर सूख जाता है। उन्हें इस बात का भान ही नहीं होता कि वे दुनिया में असाधारण कहलाने लायक गुणों के धारक हैं जिन्हें पहचनाने वाले भी दुर्लभ होते हैं। उनका इस प्रकार का आभामंडल कष्टप्रद व कठिन साधना का परिणाम होता है पर वे सहजता के साथ प्रकृति व पेड़-पौधों की भांति सिर्फ अपना सर्वश्रेष्ठ देने, कर्तव्यपरायण रहने व धर्म के मार्ग से विमुख नहीं होने के प्रति स्वयं से वचनबद्ध होते हैं। और फिर भी सत्याचरण के लिए कई लोग उन्हें “ज़माने को न समझने वाला”(अनसोफिस्टिकेटेड) की उपाधि प्रदान कर चुकी होती है पर वे अपनी अंतरात्मा की अनुभूतियों तथा निर्देशों को समझने वाले होते हैं इसलिए किसी के कष्ट पहुंचाने पर भी वे अडिग रहने की ताकत रखते हैं और शायद इसीलिये वे अलौकिक आंतरिक सुख के स्वामी होते हैं। अंत में इस चिंतन से यही निष्कर्ष निकलता है कि विधाता के बनाए नैसर्गिक रूप में बने रहना एक कठिन साधना है और जो लोग सफल होते हैं वे कालान्तर में असाधारण व महान कहलाते हैं, और उनके स्वांत: सुखाय जीवन जीने के बावजूद ईश्वरीय सत्ता के दिव्य सूक्ष्मदर्शी से वे दृष्टिगत हो जाते हैं, और फिर उन्हें शिखर तक पहुँचाने की कोई न कोई व्यवस्था भी ईश्वर ज़रूर करते हैं!– शशि दीप ✍
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