राजनीतिक आलोचना हर नागरिक का मौलिक अधिकार है

डॉक्टर सैयद खालिद कैस लेखक, पत्रकार, आलोचक।

वर्तमान संदर्भ में जिस तरह हेट स्पीच का बोलबाला है, देश के प्रधान से लेकर सत्ताधारी और विपक्ष के नेता हेट स्पीच के माध्यम से देश की एकता अखंडता को कलंकित कर रहे हैं वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। इंडिया हेट लैब की रिपोर्ट बताती है कि 2024 में उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 242 हेट स्पीच की घटनाएं दर्ज की गईं। ये 2023 की तुलना में 132% की वृद्धि है। वहीं, नफ़रती भाषण देने वाले टॉप दस लोगों में वरिष्ठ भाजपा नेताओं के नाम शामिल हैं। इस सबके बावजूद हेट स्पीच पर लगाम न कसने वाली सरकार सोशल मीडिया पर अपनी नाकामियों को उजागर होने पर तिलमिलाकर कार्यवाही से बाज़ नहीं आती है। निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता पर हो रहे प्रहार के साथ जिस तरह विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले किए जा रहे हैं वह चिंताजनक हैं। देश भर में सोशल मीडिया पर प्रहार दिखाई दे रहे है। स्टैंड अप कॉमेडी के नाम पर अश्लीलता परोसने वाले जमकर समाज को, सामाजिक रीतियों को और हमारी संस्कृति, मान्यताओं को कलंकित करते रहे यह भी किसी से छिपा नहीं। सोशल मीडिया के माध्यम से फैल रही अश्लीलता पर सरकार का कोई अंकुश नहीं लेकिन सरकार की गलत और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ यदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आवाज उठाई जाए तो सरकार को नागवार गुजर जाता है और चवन्नी छाप कार्यकर्ता सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आघात करते हैं।

गत दिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट सोशल मीडिया पर हो रहे प्रहार पर चिंता जताते हुए कहा है कि सोशल मीडिया पर राजनीतिक दल की आलोचना से किसी की धार्मिक भावना आहत नहीं होती। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत राजनीतिक आलोचना हर नागरिक का मौलिक अधिकार है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सोशल मीडिया पर किसी भी राजनैतिक दल की आलोचना से किसी की धार्मिक भावना आहत नहीं होती है। प्रायः देखने में आ रहा है कि देश भर में पार्टी विशेष के नेता और कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर उनकी या उनके नेताओं की आलोचना को पचा नहीं पाते और उसको धार्मिक एंगल देकर पुलिस प्रशासन की आड़ में आवाज दबाने का प्रयास करते हैं।वह नहीं चाहते कि उनकी कारगुज़ारियों का खुले आम प्रदर्शन हो और उनकी महिमा मंडन को आघात पहुंचे।

भारत के संविधान में अनुच्छेद 19(1)(ए) के साथ अनुच्छेद 19(2) में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी के रूप में मौलिक अधिकार के रूप में प्रेस की स्वतंत्रता को लागू करने और बनाए रखने का अधिकार दिया है। उसी प्रकार आम जन को अपने विचारों को प्रदर्शित करने की स्वतंत्रता का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार है।

गौर तलब हो कि निष्पक्ष तथा स्वतंत्र पत्रकारिता के प्रदर्शन से घबराई सरकार अपनी जिम्मेदारी एजेंसियों के बल पर कलम के सिपाहियों का दमन करना चाहती है, दमन करती है, उनको कुचलना चाहती है। जहां एक ओर देश की सर्वोच्च न्यायालय निष्पक्ष पत्रकारिता की रक्षा करती है वहीं सरकार सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश के विपरीत आचरण करती है। गत दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने भी निष्पक्ष पत्रकारिता की रक्षा करते हुए कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। पत्रकारों के अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संरक्षित हैं। केवल इसलिए कि किसी पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में देखा जाता है, लेखक के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं चलाया जाना चाहिए। लेकिन सरकार फिर भी निष्पक्ष पत्रकारिता पर प्रहार से बाज़ नहीं आती।

इस प्रकार यह आशा की जाती हैं कि माननीय इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर हो रहे प्रहारों पर अंकुश लगेगा। देश भर के पत्रकार,सोशल मीडिया से जुड़े लोग निश्चिंत होकर सरकार की गलत नीतियों की आलोचना को अपना मौलिक अधिकार मानकर उसका उपयोग करें।

(लेखक प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स पंजीकृत का संस्थापक अध्यक्ष है)