केंद्र सरकार एक बार फिर देश में अघोषित आपातकाल की व्यवस्था पर आमादा

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस)की धारा 172 आम नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का साधन

डॉक्टर सैयद खालिद क़ैस एडवोकेट, समीक्षक, कानून का विधार्थी

 

भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में परिवर्तन करने के नाम पर देश की जनता पर नये कानून थोपने के उद्देश्य से 17वीं लोकसभा में पारित तीनों नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता 2023 (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 (बीएसए) 1 जुलाई से लागू हो चुके है। कानून लागू होने के पूर्व से ही इनका विरोध हो रहा है जो वर्तमान समय तक बदस्तूर जारी है।

विरोध करने वाला पक्ष कह रहा है कि तीनों कानूनों को संसद में विस्तृत बहस या ठोस चर्चा के बिना पारित कर दिया गया, उस दौरान विपक्ष के दर्जनों सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। “संसद में विधेयकों का पारित होना अनियमित था, क्योंकि कई सांसदों को निलंबित कर दिया गया था, विधेयकों के पारित होने में सदस्यों की भागीदारी बहुत कम थी।” नए कानून अस्पष्ट हैं, जमानत विरोधी हैं, पुलिस को व्यापक शक्तियां प्रदान करते हैं और यहां तक ​​कि गिरफ्तारी के दौरान हथकड़ी फिर से लगाने जैसे कुछ बिंदुओं पर “अमानवीय” भी हैं। इन कानूनों की वजह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर आम लोगों को परेशानी हो सकती है।

 

तीनो नये कानूनों के विरोध में भारत की सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं विचाराधीन हैं। याचिकाओं में व्यक्त किया गया संदेह इन नये कानूनों के अध्ययन से खुल कर सामने आ रहा है जिसके माध्यम से केंद्र सरकार एक बार फिर देश में अघोषित आपातकाल की व्यवस्था पर आमादा है पुलिस को शक्तिशाली करके विरोधियों के दमन का हथियार साबित हो रहा है नया कानून।

 

देश में लागू रही भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के स्थान पर बनाये गए नये कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 172 आम नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन का साधन साबित हो रही है।

 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 172 के प्रावधान अनुसार:

धारा 172 (1) सभी व्यक्ति इस अध्याय के अधीन अपने किसी कर्तव्य के पालन में पुलिस अधिकारी द्वारा दिए गए विधिपूर्ण निदेशों का पालन करने के लिए आबद्ध होंगे।

धारा 172 (2) पुलिस अधिकारी किसी ऐसे व्यक्ति को हिरासत में ले सकता है या हटा सकता है जो उपधारा (1) के अधीन उसके द्वारा दिए गए किसी निर्देश का पालन करने से इनकार करता है, उसका विरोध करता है, उसकी अनदेखी करता है या उसकी अवहेलना करता है और ऐसे व्यक्ति को या तो मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जा सकता है या छोटे मामलों में अवसर बीत जाने पर उसे छोड़ सकता है।

इस प्रकार भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 172 संवैधानिक अधिकारों के हनन का माध्यम है। यह धारा आम नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करती है। धारा 172 पुलिस को बिना किसी कारण बताए गिरफ्तारी करने का अधिकार देती है, जो भारतीय न्याय संहिता के विपरीत है। भारतीय न्याय संहिता के अनुसार, गिरफ्तारी के कारण स्पष्ट होना चाहिए। धारा 172 आम आदमी के अपने विचार प्रकट करने के अधिकार का हनन है। साधारण भाषा में यदि समझा जाए तो नये कानून के अमल मे आने के बाद यदि कोई व्यक्ति, संस्था, संगठन शासन प्रशासन के नीति विरोधी किसी कार्य का विरोध प्रदर्शन शांति पूर्वक भी कर रहा होगा जो सरकार को नागवार गुज़रे तो पुलिस अधिकारी बिना किसी कारण के व्यक्ति, संस्था, संगठन को धारा 172 (1) के अधीन उनको रोकेगा तथा धारा 172 (2) के अंतर्गत पुलिस अधिकारी किसी ऐसे व्यक्ति को हिरासत में ले सकता है या हटा सकता है जो उपधारा (1) के अधीन उसके द्वारा दिए गए किसी निर्देश का पालन करने से इनकार करता है, उसका विरोध करता है, उसकी अनदेखी करता है या उसकी अवहेलना करता है और ऐसे व्यक्ति को या तो मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जा सकता है या छोटे मामलों में अवसर बीत जाने पर उसे छोड़ सकता है। यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है सबन्धित पुलिस अधिकारी बिना किसी अपराध के जब तक चाहे हिरासत में रखकर छोड़ सकता है उसको यह ज़रूरी नही की मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाए। इस प्रकार पुलिस तानाशाही पर आमादा होगी और संवैधानिक अधिकारों का खुला उल्लंघन होगा। विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के संवैधानिक अधिकार अनुच्छेद 19 के साथ खिलवाड़ होगी।